Monthly Archives: March, 2020
दोहे- आशा दिनकर
कली-कली अब खिल उठी, बहने लगी बयार
मन सबके मचलन लगे, फगुना गई बहार
अंग-अंग में जोश से, तरंग उठें हजार
गीत मधुर सब लग रहे, मन...
मेरे मन की बगिया में- शुचिता श्रीवास्तव
मेरे मन की बगिया में
जब तुम्हारी यादो के फूल खिलते है
क्यों तब पंछी सी कल्पनाये
उड़ जाती है अनंत आकाश में
क्यों मृगशावक सी तुम्हारी नजरे
घेर...
नेता गिरा रे, सड़क जाम के बाजार में- नवेन्दु उन्मेष
शहर में एक बड़े नेता का आगमन होने वाला था। पुलिस वाले लोगों को सूंघ-सूंघ कर रास्ते में जाने दे रहे थे। चौक-चौराहे पर...
कोलाहल- हरेश कानानी
बच्चे
नदी के किनारे
बालू का घर बनाते हैं
डूबता सूरज दो चार पल
खिल उठता है
आज की रात काटने के लिए
एक घर तो मिल गया...
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लगातार
मन...
कौन-सा रंग- प्रीति शर्मा
कान्हा,
तुम्हें कौन-सा रंग लगाऊं
सूरज की,
लाली को
हाथों में भर,
गालों को भर जाऊं
कान्हा,
तुम्हें कौन-सा रंग लगाऊं
या फिर
काले-काले बादल को,
आँखों में भर जाऊं
कान्हा,
तुम्हें कौन-सा रंग लगाऊं
सात रंग...
नमस्कार का चमत्कार- निशा नंदिनी
कोरोना वायरस आया है हमें
सीख देने
अपनी सभ्यता संस्कृति की याद
दिलाने
पांच अंगुलियों में बसते हैं हमारे पांच तत्व,
दो कर जोड़ नमस्कार की मुद्रा से
पंच तत्वों...
प्रीत बावरी- राजश्री
भोली-सी ये प्रीत बावरी,
मन मेरा भरमाती है।
पी’ आयेंगे, चुपके-चुपके,
कानों में कह जाती है।
स्वप्निल नैना द्वार निहारें,
मुख पर लाली छाती है।
हवा प्रेम के नये नये-से
किस्से...
हरा गुलाबी नीला पीला- वीरेन्द्र तोमर
हरा गुलाबी नीला पीला
रंगो ने कर दिया गीला
फूलों से बनाये सारे रंग
खेले राधिका कृष्णा संग
सबसे गहरा प्यार का रंग
मस्ती होवे भांग के संग
आयी गर्मी,...
गंगा- वीरेन्द्र तोमर
हिम है उद्गम, बनकर कर प्रपात
मैं गंगा बनकर आई हूँ
टेढ़े-मेढ़े रस्ते चल कर,
मैं देवलोक से आई हूँ
अति निर्मल-शीतल-तरल,
स्वच्छ जल लाई हूँ
औषधियों का भँडार समेटे,
सोना-हीरा,...
महिला दिवस विशेष: नारी को अधिकार- वीरेन्द्र तोमर
देश के सारे बैंक मिल जायें
सभी कर्मचारी मूल घर को लौटें
घर पर रह शाखा को खोलें
सभी गाँव के होयें मूल निवासी
चल-अचल का ब्यौरा लेकर
सभी...
महिला दिवस विशेष: जननी है वह- रकमिश सुल्तानपुरी
जननी है वह भार नहीं है
महिला है लाचार नहीं है
माता बेटी बहन बिना यह
जंगल है, संसार नहीं है
महिलाओं से जीत तुम्हारी
इनसे तेरी हार नहीं...
महिला दिवस विशेष: लिखो मेरी कहानी- अंजना वर्मा
लिख सकते हो तो
लिखो मेरी कहानी
पर नहीं लिख पाओगे
क्योंकि मैं जिंदगी हूँ
जिसे परिभाषित न कर पाया कोई
यद्यपि जीते हैं सब
सह सकते हो तो
सहकर देखो...