Tuesday, October 22, 2024

Monthly Archives: March, 2020

आओ प्रकृति परायण बन जाएँ- रश्मि अग्रवाल

आओ प्रकृति परायण बन जाएँ मानव ने एक दुनिया, कृत्रिम बना ली। प्रकृति के विपरीत, अनचाहे परिवर्तन, नए-नए परिवेश। सीमेंट के रास्ते, गगनचुम्बी इमारतें, ई-कचरा, तेज़ाबी वर्षा, जहरीली खाद, प्रदूषित जल, प्लास्टिक का बोलबाला रासायनिक बहिस्राव विकास और...

आज फिर- राजीव कुमार

आज फिर कितना अकेला रोज अब किस धूप में तपता शाम को दीपक जलाता प्रेम का मंदिर किस एकांत में सबको बुलाता सुबह की प्रार्थना के फूल रात्रि में किस...

ज़िन्दगी यूँ दर्द के आग़ोश में- रकमिश सुल्तानपुरी

ज़िन्दगी यूँ दर्द के आग़ोश में सहमी पड़ी है ख़्वाहिशें सब ढह गई की आरजू बिखरी पड़ी है एक पत्त्ते सा तपिस में ख़ाक होता रह...

जिस पल- डॉ उमेश कुमार राठी

जिस पल याद गुहार करेगी पागल मन बहला लेंगे बादल बूँद फुहार बनेगी आकुल तन नहला लेंगे साथ तुम्हारा हम माँगे थे लेकिन वो भी मिला नहीं कह देंगे हम...

एनएसजी कमांडो भारत के नागरिकों के लिए सुरक्षा की भावना का पर्याय बन चुके हैं- गृह मंत्री

कोलकाता में आज राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के रीजनल हब के परिसर के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह...

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में प्रतिष्ठित महिलाओं के नाम पर 11 चेयर्स की घोषणा

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर कल सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में युवा महिलाओं को प्रोत्‍साहन, महिला सशक्तिकरण और युवा महिला अनुसंधानकर्ताओं को उचित...

माँ- नरेश शांडिल्य

मंदिर की देहरी भजन गाती मंडली दाना चुगती चिड़िया तुलसी का बिरवा पीपल का पेड़ छड़ी वॉकर अस्पताल का स्ट्रेचर... जब-जब भी दिखते हैं याद आने लगती है- माँ... सब छोड़ गई माँ- अपना हॉल सा...

तुम- प्रीति असीम शर्मा

सारी कायनात, तुम में सिमट जाती है। मैं आसमां देखता हूँ मुझे तू नजर आती है। सारी कायनात, तुम नजर आती है। वैसाख के खेतों की, रंगत में, तेरा चेहरा पाता हूँ तेरी...

समाधि- डॉ सुषमा गजापुरे

अकेली मैं कहाँ रहती हूँ अकेली? जब सोचती हूँ तुम्हें, तुम्हारे स्पर्श का अहसास, वो बोलती आँखों की चमक, सरल दृष्टि के पीछे से झाँकती निरागस प्रेम की याचना, तुम्हारी नेह-ताप...

ज़िन्दगी के खेल- अनिता कुमारी

खेल-खेल में ज़िन्दगी, कुछ ऐसे खेल, खेल गई। अरमानों के बेशकीमती मोती, कच्चे धागे में पिरो गई।। चन्द कदमों के राह तले, मन के, मनके बिखर गए। धागे की हकिकत...

तुम्हारे सहारे- रुपाली दळवी

तुम्हारा हाथ, हाथों में हो तो दुनिया की हर मुश्किल से लड़ पाएंगे छुट भी जाए सारा जहाँ तो कोई गम नहीं बस साथ हो तुम्हारा हर कठिनाई...

मन पतंग- सुमन ढींगरा दुग्गल

उड़ जाने दो मन पतंग को दूर कहीं नील गगन की ओर भावों की डोर मे बंधकर करने दो स्वच्छंद अठखेलियाँ इस जीवन की सुलझी हैं...

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