Daily Archives: Apr 8, 2020
आइटम गर्ल कोरोना का नागिन डांस- नवेन्दु उन्मेष
‘आरा हिले, छपरा हिले, बलिया हिलेला, हमरी लचके जब कमरिया तो जिला हिलेला’ के तर्ज पर जब कोरोना का डांस चीन के बुहान शहर...
हर इंसान कुछ-न-कुछ रचता है- जसवीर त्यागी
हर इंसान
कुछ-न-कुछ रचता है
कोई गीत-गजल
तो कोई कविता-कहानी
कोई रंगत और रूप
कोई सुर-सरगम
कोई मूर्ति-महल
और कोई आदर्श-ऊंचाईयां रचता है
कुछ लोग
स्वप्न-संघर्ष रचते हैं
जो इनमें से
कुछ भी नहीं रच...
जग में निराली थी माँ- वीरेन्द्र तोमर
नन्हा था जब
तब खिलाती थी माँ
मेरी प्यारी सी माँ
जग में निराली थी माँ
पैरो पे चला
कभी गोदी उठा
खुद भुखी रहे पर
खिलाती थी माँ
जब पढ़ने लगा
स्कूल जाने लगा
स्वयं...
रात का दीपक- जयलाल कलेत
मुझे एक दीपक बनाने दे,
एक बार दिवाली मनाने दे।
बिजली को विराम देना है,
जरा पांच अप्रैल को आने दे।
मकसद जो भी है नौ मिनट की,
इतवार...
आपका दीदार- शैली अग्रवाल
आज तबीयत मेरी नासाज थी,
ना दवा काम आयी,
ना दारु कुछ कर पायी
उन्होंने जब हमारा हाल पूछा,
बिगड़ी तबीयत सुधरने लगी,
दवा, दारू, नर्स सब मुझसे चिढ़ने...
स्वस्थ्य रहना भी एक कर्तव्य है- सुनील माहेश्वरी
जहां तक में जानता हूं कि अच्छे स्वास्थ्य की चाहत तो सबको रहती है, पर क्या उसको पाने के लिये हम सभी वो सारे...
प्रकृति और पुरुष- शिवम मिश्रा
वो इश्क़ का मौसम था,
आसमां में काले मेघ उमड़ आए थे
गेहूं की बालियां खेत में लहलहा रही थी
सरसो का फ़ूल प्रकृति के गोद में...
प्यार- दीपक क्रांति
प्यार-
किसी चित्रकार के लिए;
सैकड़ों एक जैसे पेड़ों में से
एक-एक के हिलते-डुलते
सामूहिक पत्तों में से
उन पेड़ों के खिलखिलाहट में से
रूह को छूनेवाले ठूँठपन के
दर्द के...
दर्द को हँसकर छिपाते रहे- तारांश
आफ़तों में भी उत्सव के गीत हम गाते रहे
हर सितम के दर्द को हँसकर छिपाते रहे
चलने को मजबूर पैदल आज हज़ारों मील वो
कामगार जो...
नारी के विविध रूप- अमरेन्द्र कुमार
नारी तेरे विविध रूपों से
जग का होता रहा कल्याण है
तू विधाता की अनमोल देन है
जिससे सृष्टि का निर्माण हुआ,
अगर तू ना होती,
तो संसार में...
इश्क का मारा- सत्यम भारती
स्वप्न अवनी से निकल अब जाग तू,
मेहनत की चिंगारी से लगा आग तू
नफरतें-मर्सिया पपीहा गाता इधर,
बुलबुल सुना अमन का राग तू
जीत का मजा संघर्षों...
कई सवाल मन में- पंकज चौहान
कई सवाल मन में
सहमे-सहमे से रहते हैं,
हर तरफ की खामोशी
कुछ न कहने को कहती हैं
क्या हजारों सोचते हैं यहीं?
या दफ़न हैं सवाल उनके भी
इस...