Tuesday, October 22, 2024

Daily Archives: Apr 11, 2020

दीपों को जलना होगा- भुवनेश्वर चौरसिया

दीपों को और जलना होगा पथिक अभी और चलना होगा चांद पर पहुंचे पहुंच गए मंगल पर सूरज पर चढ़ने को सूरज को ढ़लना होगा पथिक अभी कुछ और...

करोना वाइरस- राम सेवक वर्मा

भयभीत हुई सारी दुनिया, कोरोना के जीन से ऐसा वाइरस कभी न देखा, जैसा आया चीन से चिकित्सा कोई उपलब्ध नहीं, रोज़ बहुत से मर रहे देख...

आप कैमरे की निगाहों में हैं- मनोज शाह मानस

राहों में दोराहों में या चौराहों में हैं आप सदा कैमरे की निगाहों में है कौन बनेगा प्रधान सेवक अबकी, किसके साथ किसके बाहों में हैं चुनावी बिगुल...

ठंडी हवाओं का- जयलाल कलेत

ठंडी हवाओं का इस कदर रूक जाना, समंदर के लहरों का इस कदर थम जाना, प्रतीत होता है कोई बड़ी उथल-पुथल की। श्रृद्धा के चौखटों का इस...

कुछ आशाओं के- सचिन मिश्र

यह जीवन की रचना है इसकी भी एक रवानी है यह कष्टों का संसार बना संघर्षों से बीती जवानी है एक प्रलय सा छाया जीवन में...

बनारस की गली में- आलोक कौशिक

बनारस की गली में दिखी एक लड़की देखते ही सीने में आग एक भड़की कमर की लचक से मुड़ती थी गंगा दिखती थी भोली सी पहन के लहंगा मिलेगी वो फिर से दाईं...

तुम हताश मत होना- डॉ एस. शेख

अभी लंबी है लड़ाई, तुम हताश मत होना, भरोसा बनाए रखना खुद पर, उदास मत होना दूरियां लोगों से रखना, उनके दिलों से नहीं, सब इसी मिट्टी के फूल हैं, किसी...

आईना- शिवम मिश्रा

आईना- शिवम मिश्रा अक्सर मैं देखता सुनता रहा हूं किस्से और कहानियों में, कोई जादुई आईना जो रखा होता है किसी बन्द कमरे में जिसे छूने से...

याद आएगा ये ख़त- जुगेश कुमार गुप्ता

ये गुमनाम सा ख़त, याद दिलाएगा एक दिन, जब लोग थक हार कर, अपनी- अपनी मौत को गले लगाने लगेंगे! याद बाकी रहेगी, उन फिज़ाओं की नमी में, जब आंखों...

खबर उड़ी है- रविशंकर पांडेय

खबर उड़ी है आज भेड़िए के फिर आने की घर घर में अफरा तफरी है जान बचाने की ! धीमी पड़ी रोशनी जलती हुई मशालों की रात-रात भर जाग रही बस्ती संथालों की, हिम्मत नहीं किसी की...

पंखुरी- दीप्ति शुक्ला

पंखुरी नरम मुलायम पंखुरी रसभरी, रंगभरी पंखुरी जो किरण देख मुस्काये पंखुरी जो देख अँधियारा कुम्लाये पंखुरी नाजुक पर चुभती नहीं पंखुरी काँटों से डरती नहीं पंखुरी स्वप्नपरी सी सुन्दर पंखुरी तरुवर को बनाती सुन्दर पंखुरी बिखरी तो धूल पंखुरी खिली तो फूल -दीप्ति...

बढ़ रहा है चाँद- निधि भार्गव मानवी

देखो बढ़ रहा है चाँद कई दिनों से आधा जो था आधेपन के इस दर्द को बखूबी जानता है वो... कहने को कितना विशाल है न ये आकाश, विस्तार की...

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