Monthly Archives: May, 2020
तन्हाईयों में- मनोज कुमार
अकेला चला हूँ तन्हाईयों में,
ख़ुद को खुद से मिलाने को,
रास्ते वीरान नही है ये,
शांत से लग रहे है ये,
पर चुप है इस कदर की,
मेहनत...
प्रकृति से प्यार- निधि तिवारी
प्रकृति, जो है अपने नाम में ही है परिपूर्ण
सुख, प्रेम, दया, छाया, संतृप्ति है जिसके गुण
परोपकार है जिसके संस्कार,
लेती नहीं किसी के उपकार
सेवा ही...
सभ्यता का पैमाना- अरुण कुमार
रोज के रोज दंगे होते जा रहे हैं,
सभ्यता के नाम पर हम नंगे होते जा रहे है
कल नहीं था उसका रोना रो रहे थे,
आज...
देशवासियों के नाम प्रधानमंत्री मोदी का पत्र, पढ़िए क्या कहा
मेरे प्रिय स्नेहीजन,
आज से एक साल पहले भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक नया स्वर्णिम अध्याय जुड़ा। देश में दशकों बाद पूर्ण बहुमत की...
जरुरत है समझदारी की पर्याप्त दूरी बनाए रखने की- सुजाता प्रसाद
चाहे दवा की बात हो या वैक्सीन बनाने की बात, इनमें से अभी तक सफल रूप से कुछ भी सामने नहीं आया है। हालांकि...
30 मई पत्रकारिता दिवस पर विशेष: बदलते परिवेश में पत्रकारिता और उसका दायित्व
आज विश्व के क्षितिज पर जो कुछ भी घटित होता है उसका प्रभाव किसी न किसी रूप से प्रत्येक देश पर पड़ता है। इसलिए...
घटकर 3.1 प्रतिशत पर आई भारत की जीडीपी
कोरोना वायरस के चलते देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। सरकार द्वारा शुक्रवार को जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2019-20...
रहस्य- अनामिका वैश्य
गगन से लेकर प्रकृति-पृथ्वी आभारी
बेहद रहस्यमयी है ये दुनिया सारी
जाने कितने रहस्य छुपे रहते हैं
नभ की नाभि में ही दबे रहते हैं
अनजान है अबतक...
बस्तर- ममता रथ
आदिम संस्कृति की पहचान है बस्तर
छत्तीसगढ़ की जान है बस्तर
फिर क्यो?
बीहड़ वनांचल में, बारूदी सुरंग?
दहशत के माहौल में, परेशान हैं बस्तर
देखती हूँ कितना अनजान...
हे गिरधर तेरी बाट निहारूँ- गरिमा गौतम
हे गिरधर तेरी बाट निहारूँ
हर पल तेरा नाम पुकारूँ
बागों से मैं फूलों को लाऊँ
चुन चुन तेरे लिये हार बनाऊँ
माखन मिश्री का भोग लगाऊँ
करमारो खीचड़ो...
भूख- प्रीति चतुर्वेदी
भूख की तड़प हर किसी को है
पर महसूस अंदरूनी किसी-किसी को है
किसी को कुछ पाने की भूख है
किसी को खाने की भूख है
किसी को...
तपन- राम सेवक वर्मा
आग बरसती आसमान से,
लू लगते गर्म थपेड़े
झुलस रहे हैं बाग-बगीचे,
खाली बैठे घरों में कमरे
खेत-खलियान पड़े सब सूने,
मानुष तन की व्यथा पुरानी
सूख गए सब ताल-तलैया,
दिखता...