Yearly Archives: 2020
कुछ बात बन जाये- जितेन्द्र कुमार
रात में पसरती ठण्ड के बाद सूर्योदय होते ही
प्रकाश तीव्र वेग से जमा लेता है आधिपत्य अपना
हॉस्टल के बरामदे में...
तब निकलतें है झोला डाले...
इन्सानियत की बात- डॉ एस शेख
धर्म जाति की बात को छोड़,
इन्सानियत की बात कर
फिरका परस्ती ले डूबेगी,
यक्सानियत की बात कर
मंदिर मस्जिद की बात को छोड़,
रोटी कपड़े की बात कर
नफ़रत...
नीला आसमां- अनिल कुमार मिश्र
ये जो
नीला आसमां
दिख रहा है
अपनी बाहें फैलाये
ये ऐसा ही नहीं है
कूट कूट कर भरी हैं
शैतानियाँ,
छतरी के नीचे की
हर गतिविधियों को
इसने अपनी नग्न आँखों से
जी...
तुमसे प्यार है- मनोज कुमार
सोचा नहीं है कि तुमसे
कह भी न पाऊंगा ,
कि तुमसे प्यार है इतना,
तेरे बिन रह न पाऊंगा,
तुम रहो मेरे पहलू में ऐसे,
कि मैं बस...
सभ्यताओं के छोर से- जुगेश कुमार
सीढ़ियों पर पड़े सुखे पत्ते,
जलाशय में सड़ रहे पानी,
उम्र की सिलवटों को पार कर रहे हैं,
सभ्यताओं के छोर से लेकर
सांस्कृतिक विरासत की ओर तक
मै...
बचपन की यादें- मनोज शाह
कोई लौटा दे मेरा वो बीते दिन वो बचपन की यादें
कागज के नाव मिट्टी के घरौदें सच्ची की कसमे वादे
स्कूल जाने से पहले माँ...
मेरा ख़त छुपा कर- राम सेवक वर्मा
मेरा ख़त छुपा कर,
क्यों तुमने मुझे सताया।
तुम्हें प्यार हो गया तो,
फिर क्यों न मुझे बताया
पलकें झुकी तुम्हारी,
बेबस सा हो गया मैं
कलियों के बीच रहकर,
भौंरे...
मेरी कलम से- पंकज कुमार
उठ गई है यह कलम, अब आग बरसेगी।
हर गली, हर घर, हर जुबां पर, अब बस यही हुंकार गुजेगी।
रौंदा है तूने कोरे कागज को,...
दर्द, आँसू और अहसास- त्रिवेणी कुशवाहा
दर्द आँसू और अहसास
जीवन के हैं सब खास,
क्या लिखूँ मैं आज।
गरीबों का आस लिखूँ
अमीरों का विलास लिखूँ
पाखण्डीयों का जाल लिखूँ
लिखूँ भ्रष्ट नेताओं का दास्तान
क्या...
दौर- सोनल ओमर
ये वो दौर है जो जिन्दगी को जीने के मायने सीखा रहा है
ये वो दौर है जो बनाये हमारे समाज के कई नियमों को...
जानता हूँ आजकल- रकमिश सुल्तानपुरी
दर्द अच्छा, रोज की ये मयकशी अच्छी नहीं
जानता हूँ आजकल की आशिक़ी अच्छी नहीं
जानने वाले बहुत हो पर न ख़िदमत हो जहां
बेवज़ह उन महफ़िलों...
अँजुरी भर प्रेम- निधि भार्गव
कहाँ कहाँ से ढूँढ लेती हो मुझे 'मानवी'?
तुम्हें ढूँढने की जरूरत है क्या, मानव?
पा भर लेना ही तो मौहब्बत का अंजाम नहीं होता है...