Friday, October 25, 2024

Yearly Archives: 2020

ख्वाहिश- शिवम मिश्रा

मैनें कभी कुछ नहीं माँगा तुमसे लेकिन एक ख्वाहिश हमेशा से रही है एक तमन्ना, जब मेरा आखरी वक्त हो कुछ पल के लिये ही सही तुम मेरे...

आवाज़ के रहने तक- अमित कुमार मल्ल

खटखटाउँ किस चौखट पर आवाज़ दूँ किस चौराहे पर इस शहर की हवा बहरी है चीखती, कांपती, गूँजती आवाज़े सहमाती है मेरे आइने को किसको पुकारूँ, इस शहर के आइने मे, अक्श...

कालजयी मूर्ति- जसवीर त्यागी

एक दिन हत्यारा निपट अकेला रह जायेगा उसके अनंत हाथ टूट जायेंगे चरमराकर खत्म हो चुकी होगी बदले की भावना हताश-निराश ह्रदय में पश्चाताप आँखों में होंगे आँसू वह आयेगा कलाकार के पास रोना...

समय और प्रतीक्षा- किरण सिंह

गज़ब प्रेम है न समय और प्रतीक्षा की भी समय निष्ठुर मगरूर या फिर आदत से मजबूर चलने को रहता है विवश और भावुक जिद्दी प्रतीक्षा अपनी ही आदत से मजबूर दिन रैन अनवरत ठहरी हुई सी पलक बिछाए रहती...

प्रकृति परायण बन जाएँ- रश्मि अग्रवाल

आओ प्रकृति परायण बन जाएँ मानव ने एक दुनिया, कृत्रिम बना ली। प्रकृति के विपरीत, अनचाहे परिवर्तन, नए-नए परिवेश सीमेंट के रास्ते, गगनचुम्बी इमारतें, ई-कचरा, तेज़ाबी वर्षा, जहरीली खाद, प्रदूषित जल, प्लास्टिक का बोलबाला रासायनिक बहिस्राव विकास और...

शब्द- भावना सक्सेना

शब्द अपने आप में होते नहीं काबिज़, सूखे बीजों की मानिंद बस धारे रहते हैं सत्व उभरते पनपते हैं अर्थों में बन जाते हैं छाँवदार बरगद या सुंदर कँटीले कैक्टस, उड़ेला जाता...

पता मत पूछो- राजकुमार धर द्विवेदी

पता मत पूछो, जाने दो, लंबा सफर। मैं राही बस इतना जानो, तुम भी यार पराया मानो। पता मत पूछो, जाने दो, लंबा सफर। मस्ती छूटी, महफिल छूटी, बेदर्दी...

हल्के में मत लेना- मीरा सिंह

नाम जिसका है कोरोना इसे हल्के में मत लेना । कुछ खाने से पहले भैया सेनाटाइजर से हाथ धोना। शक्ल सूरत ना कोई इसकी घूम रही पर कोना कोना। लोग...

काल के पास कल नहीं होता- जसवीर त्यागी

बहुत सारे काम जिन्हें आज ही निपटाया जा सकता हैं फिर भी बड़ी सहजता से कल के कंधों पर लटका देते हैं हम कल देखेंगे कल का कलरव कानों में बजता...

लेकिन लिखना- अमित कुमार मल्ल

अखबार नवीसों लिखना यह स्थान लिखना यह वक्त लिखना यह पहर लिखना मेरा नाम लिखना मैंने ही यह ऐलान किया है यह भी लिखना सामने दिख रहा गुलाब का फूल खुशबू वाला है सुन्दर है अच्छा है लेकिन लिखना इसकी...

बासंती यादें- किरण मिश्रा

इन फागुनी हवाओं में लिपटी तेरी यादों की बासन्ती-खुशबू छूकर मेरे लबों को मेरी साँसों में उतर जाती है गूँजती है मेरे कर्णों में कोयल की मादक-पुकार बन, तो कभी रसीली आम्र-मंजरी...

चेहरा उदास चाँद का- डॉ भावना

सुनता नहीं है कुछ, न ही कहता है आजकल चेहरा उदास चाँद का रहता है आजकल आँखों में रखके दर्द का जलता हुआ चिराग़ चुपचाप ग़म की...

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