Monday, November 25, 2024
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बिजली कंपनी में 16000 नियमित पद स्वीकृत, फिर भी बिना फौज के सेनापति हैं बिजली अधिकारी

मैनपावर की कमी से जूझ रहीं बिजली कंपनियों में नियमित पदों पर भर्ती की मांग लगातार की जा रही है, लेकिन न ही सरकार और न ही ऊर्जा विभाग इस ओर कोई ध्यान दे रहा है। जबकि मैदानी स्तर पर कर्मचारियों की अत्याधिक कमी के कारण मेंटेनेंस से लेकर उपभोक्ता सेवा तक, पूरा विद्युत तंत्र बुरी तरह चरमरा चुका है, यही कारण है कि हिंदुओं के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व शारदीय नवरात्रि के दौरान सुबह से लेकर रात तक कई बार बिजली गुल होने से लोगों में आक्रोश है।

यूं तो मध्यप्रदेश की सभी बिजली कंपनियों में मैदानी स्तर पर लाइन कर्मचारियों की बेहद कमी है और सभी कंपनियों में नियमित भर्ती के हजारों पद स्वीकृत भी हैं, लेकिन पता नहीं क्यों इन पदों पर भर्ती नहीं की जा रही है। पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी में वर्तमान में लगभग 4500 नियमित कर्मचारी हैं, इनमें से भी अधिकांश अगले दो-तीन वर्षों में सेवानिवृत्त हो जायेंगे। वहीं पूर्व क्षेत्र कंपनी में सभी श्रेणी के बिजली उपभोक्ताओं की संख्या लगभग 66 लाख है, इतनी बड़ी संख्या में विद्यमान बिजली उपभोक्ताओं के अनुपात सिर्फ कुछ हजार नियमित कर्मचारी किस तरह सेवा देते होंगे ये मंथन करने का विषय है।

विश्वस्त विद्युत सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पूर्व क्षेत्र कंपनी में 16000 नियमित पद स्वीकृत हैं, इसी तरह मध्यप्रदेश की अन्य दोनों विद्युत वितरण कंपनियों में भी हजारों पद स्वीकृत होंगे, लेकिन प्रदेश का ऊर्जा विभाग नियमित पदों भर्ती करने की बजाए आउटसोर्स के माध्यम से ही नियुक्ति को प्राथमिकता दे रहा है। ये बात सर्वविदित है कि मैदानी स्तर पर लाइन कर्मचारियों की कमी के कारण अधिकारियों की स्थिति बिना फौज के सेनापति की तरह हो गई है। अधिकारी अपनी विवशता किसी से कह भी नहीं सकते और उन्हें उपलब्ध मैनपावर से ही समस्त कार्य करवाने की मशक्कत करनी पड़ रही है, वहीं इससे लाइन कर्मचारियों पर कार्य का बोझ बढ़ने के साथ ही मानसिक तनाव भी बढ़ रहा है, जिससे कंपनी की ही हानि हो रही है। वहीं गुणवत्तापूर्ण विद्युत आपूर्ति नहीं होने और उपभोक्ता सेवा में खामियां होने के कारण कंपनी की साख धूमिल हो रही है।

विद्युत जानकारों का कहना है कि दो-तीन साल बाद जब नियमित पदों पर पदस्थ अधिकांश अनुभवी अधिकारी एवं कर्मचारी सेवानिवृत्त हो जायेंगे तब स्थिति बहुत ही भयावह हो जायेगी, इस स्थिति में विद्युत तंत्र को सुचारू रूप से चलायमान रखना असंभव हो जायेगा, तब शायद सरकार बिजली कंपनियों का निजीकरण कर दे और शायद सरकार की मंशा भी यही है।

इस संबंध में मध्यप्रदेश तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रांतीय महासचिव हरेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि ये साबित हो चुका है कि ग्रामीण क्षेत्रों में निजी कंपनियां विद्युत सेवा में असफल हो चुकी हैं। जबकि प्रदेश के अधिकांश घरेलू और कृषि उपभोक्ता छोटे शहरों और गांवों में ही हैं, जिन्हें गुणवत्तापूर्ण विद्युत आपूर्ति के लिए सरकारी बिजली कंपनियों का अस्तित्व में रहना और नियमित पदों पर भर्ती किया जाना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि बिजली कंपनियों में वर्षों से काम कर रहे आउटसोर्स कर्मियों का बिजली कंपनियों में संविलियन कर अनुभवी कर्मचारियों की कमी दूर की जा सकती है, साथ ही नियमित पदों पर नई भर्ती कर भविष्य के लिए अनुभवी कर्मचारियों की टीम तैयार की जाए ताकि विद्युत तंत्र निर्बाध संचालित होता रहे।

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