Friday, December 13, 2024

आदेश: वंदना मिश्रा

वंदना मिश्रा

उठो!
कहा तुमने मेरे बैठते ही
जबकि बैठी थी मैं
तुम्हारे ही आदेश पर

डाँटा तुमने इस बेमतलब की
उठक बैठक पर,
फरमाया दार्शनिक अंदाज में
कितनी प्यारी लगती हो
डाँट खाती हुई तुम
मैं खिल उठी

देखा सिर से पाँव तक तुमने
और कहा ‘क्या है ही प्यार करने लायक तुम में’

मैं सिमट गई
सारी जिंदगी देखा
मैंने खुद को
तुम्हारी नजर से
और खुद को
कभी प्यार ना कर सकी

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