कचहरी के प्रांगण के अन्दर चहारदीवारी के कोनचट्टी में टीने के छपरा के नीचे बने चाय-पान, मिठाई के दुकान में लकड़ी के बेन्च पर बैठ कर टूटे हुए दांत से मुँह में रसगुल्ला दबावत, रस पेटे तक गिरावत बब्बाजी अपने बेटवा कक्काजी के तरक्क़ी में सहयोग करत प्रफुल्लित रहलें।
बब्बाजी अपने बेटवा कक्काजी के तरक्क़ी में चमत्कार तथा कर्ज के उद्धार में दो बीघा जमीन टिकूँ चाचा के हाथे आज बैनामा कइलें तथा बब्बाजी के पढ़ले-लिखले के बावजूद भी अंगूठा में नीली स्याही के निशान लागी गइल।
बब्बाजी के बेटवा कक्काजी के अरमान रहल कि दो बीघा ज़मीन बेचले से जवन रूपया मिली उ रूपया से बैंक के लोन तथा बाबुसाहब के बट्टा चूकवले के बाद शेष रूपया से विद्यालय खोली के शिक्षा के क्रान्ति में अलख जगाके देश के तरक्क़ी में योगदान दिहल जाई तथा शिक्षा के व्यवसायिक करण के लाभ उठावल जाई।
बब्बाजी के बेटवा कक्काजी के इ जमीन बेचले के अरमान अब पूरा हो गइल तथा एक नया तरक्क़ी के शुरूआत शुरू हो गइल। बब्बाजी जी अपने जवानी के दिन में आधा पेट खाके एड़ी-चोटी के जोड़ लगाकर अपने बाप के विरासत इ जमीन बचवले रहलें।
बब्बाजी जी अपने छानी के छप्परा में अपने पत्नी, दुई बेटी तथा एगो बेटवा के साथ रहत रहलें। कौनोऽ नौकरी-चाकरी न होने से जीवन के आधार तीन बीघा ज़मीन ही रहलऽ।
साथ ही पत्नी के बार-बार बिमारी के परेशानी तथा ऊपर से पड़ोसियन के संगे जमीनी विवाद के मुकदमा जीवन में औरी परेशानी बढ़ावत रहे ।
बब्बाजी ने जमीन का मुकदमा देखने के लिए तारीख पर पैंत्तीस किलोमीटर दूर साइकिल से कचहरी आवत-जात रहलें।
बब्बाजी ने कई बार अपने रिश्तेदारों के शादी-विवाह में जाने के लिए आर्थिक हालात से मजबूर होने के कारण गांव के फूफाजी से धोती एक-दो दिन के करार पर लेकर पहने थे किन्तु अपनी जमीन गिरवी तक भी न रखा था।
फूफाजी ठहरे दयालु प्रवृति के इंसान जो गांव के किसी भी व्यक्ति के कुछ माँगने पर कभी मना नहीं करते थे,तथा साथ ही गाँव के सामाजिक कार्यों व लोगों के अंतिम दाह-संस्कार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे।
बब्बाजी के बेटियों ने भी फट्टे-पुराने समीज-सलवार पहनकर जीवन यापन की थी परन्तु कभी भी अपने पिता बब्बाजी से अपने ख्वाइशों की फरमाइशी नहीं की थी। साथ ही अपने पिताजी का भरपूर सहयोग तथा उत्साहवर्धन करती थी।
बब्बाजी के किस्मत का दुर्भाग्य कहें या भाग्य का खेल भरी जवानी में श्रीमतीजी ने रोग से जर्जर होकर काल का ग्रास बनते हुए परलोक सिधार ली थी।
बब्बाजी ने अपने बच्चवन के अच्छे परवरिश खातिर एकांकी जीवन बिताया किन्तु दुबारा अपनी शादी नही किया। बब्बाजी ने अपने बाजुओ के मेहनत के बल से अपने दोनों बेटियों के बड़े होने पर अच्छा घर-वर देखकर धूम-धाम तथा दान दहेज़ देकर अहमक-दहमक से विवाह किया था ताकि बेटियों के दिल में माँ की कमी का अहसास न हो।
बब्बाजी ने अपने बेटवा कक्काजी के वंश के इकलौते चिराग होने के कारण उसके प्यार-दुलार में कभी भी कोई रत्तीभर भी कमी नहीं किया था तथा बेटवा के प्रत्येक अरमानों को पूरा किया था।
बब्बाजी के बेटवा कक्काजी ने भी अपने ग्रेजुएशन की शिक्षा पूरी करने के बाद अपने तरक्क़ी के कर्म पथ का ढिढोरा पिटने तथा शान-शौकत तथा खान-पान में कोई कसर नहीं छोड़ा था। अगर कोई कसर था तो बिना योजना के जल्दी से जल्दी मंजिल के शिखर पर पहुँचना, जो कभी पूरा नहीं हो सका।
इस जल्दी के प्रयास में कक्काजी ने शान-शौकत की फटफटिया व मटन-चिकन के खान-पान से लेकर तथा व्यवसाय में दुकान-दौरी से लेकर ठेकेदारी तथा गाड़ी-घोड़ा तक बैंक से कर्ज तथा बाबुसाहब साहब से बट्टा पर रूपये लेकर कर लिया था। परन्तु अभी तक सफलता हाथ नहीं लगा था। कक्काजी ने रहने के लिए दो कमरा मकान भी सरकारी अनुदान तथा ससुर के दान से बनवाया था।
इसी तरक्क़ी के चलते बब्बाजी तथा कक्काजी का बेटी-दामाद तथा बहन-बहनोई से संम्बध विच्छेद हो गया था।
बब्बाजी के लिए अगर कोई अपना खास रह गया था तोऽ वंश के इकलौते चिराग कक्काजी और उनका परिवार।
इसबार भी बब्बाजी ने अपने बेटवा कक्काजी के कहने पर बेटवा के तरक्क़ी में हाथ बंटाते हुए दो बीघा ज़मीन के बैनामा के कागज पर निशान लगाकर बेटवा के अरमान पूरा कर दिया था। गाँव के लोगों तथा सगे-संबंधियों के द्वारा जमीन बेचने के सम्बन्ध में पूछने पर बब्बाजी कहते थे कि गांव का जमीन बेचकर बेटवा ने कछार में पांच बीघा ज़मीन खरीद लिया है, जमीन खरीदने वाली बात का झूठ-सच बब्बाजी ही जानें।
किन्तु कक्काजी ने जमीन के बेचने से मिले रुपयों से बैंक तथा बाबुसाहब का कर्ज चुकाने के बाद बच्चे हुए कुछ रुपयों से शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्ति का मशाल जलाते हुए शिक्षा के व्यवसायिक करण के लाभ उठाने के लिए विद्यालय का निर्माण शुरू करवा दिया था।
कक्काजी के जल्दबाजी के इस निर्णय को देखते हुए विद्यालय बनें या न बनें, भूसवला तोऽ बन ही जायेगा तथा बब्बाजी के समक्ष बेटवा के तरक्क़ी का एक और मिशाल पेश हो जायेगा।
-त्रिवेणी कुशवाहा ‘त्रिवेणी’