Tuesday, October 22, 2024
Homeसाहित्यसबक नई ज़िन्दगी का- वन्दना कुमारी

सबक नई ज़िन्दगी का- वन्दना कुमारी

आज खौफ़ है उस अदृश्य का,
जिसने सिखा दिया सबक नई ज़िन्दगी का

हो गया था विकट अंहकार हमें अपने काबिलियत पर,
आज हैं हम बेबस, लाचार उस अदृश्य के समक्ष
जिसको हम भुला बैठे थे वो आज याद दिला रहा है,
अब मकान घर बन गए हैं, अजनबीपन को
मिटाकर वो अपनत्व का पाठ पढ़ा रहा है

जो बात स्वतंत्रता सेनानी कह गए थे,
उसको आज फिर दोहरा रहे हैं,
लघु उद्योग और स्वदेशी व्यापार की चर्चा हो रही है,
कृषि-विज्ञान और ग्रामीण रोज़गार को अपना रहे हैं

जो थे अर्थव्यवस्था के स्तम्भ,
उनको तुमने प्रवासी क़रार दिया,
वे लौट गए जब अपने जन्म भूमि पर,
फिर तुम्हें अपने घाटे का डर सताने लगा

बेतहाशा दौड रहे थे काल्पनिक ऐश्वर्य के लिए,
निगल लिया था जिसने शिष्टाचार, मानवता को,
खो दिया था संयम, धैर्य, विनम्रता को,
आज वो वैमनस्य को मिटाकर
इंसानियत का पाठ पढ़ा यहां है

स्वार्थ की लताएं इस कदर हैं फैली,
कि हमें नहीं सुनाई देती है धरती की हलचल,
अब वो है असमर्थ है हमारे पापों के ढोने में,
बार-बार दे रही है दस्तक सुधरने की भूकम्प में

वक्त है सुधरने का, अब भी सुधर जाओ,
अगर अब नहीं सुधरे तो, फिर कभी नहीं सुधरे

-वन्दना कुमारी
सहायक प्राध्यापिका,
देवकी देवी जैन मैमोरियल कॉलेज फॉर वूमेन,
लुधियाना,

संबंधित समाचार

ताजा खबर