एमपी की बिजली कंपनियों पर भारी पड़ रहा ऊर्जा विभाग का मौन, एक कर्मी पर सैकड़ों उपभोक्ताओं की जिम्मेदारी

मध्य प्रदेश सरकार की अनदेखी और ऊर्जा विभाग का मौन बिजली कंपनियों पर भारी पड़ता जा रहा है। वर्तमान में प्रदेश की विद्युत वितरण कंपनियों में मैदानी कर्मचारियों की इतनी कमी हो चुकी है कि एक कर्मचारी पर सैकड़ों उपभोक्ताओं को सेवा प्रदान करने की जिम्मेदारी आ गई है। साथ ही इन्हीं कर्मचारियों के जिम्मे मेंटेनेंस, राजस्व संग्रहण जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी हैं। कार्य के अत्याधिक बोझ के चलते मैदानी कर्मचारी तनाव में बीमार पड़ रहे हैं या दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं।

आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2002 में मध्य प्रदेश विद्युत मंडल का छह कंपनियों में बंटवारा हुआ था। उस समय कर्मचारी एवं अधिकारियों की संख्या 72 हजार के करीब थी, जो आज 19 वर्षों में घटकर लगभग 38 हज़ार ही रह गई है, जिनमें संविदा कर्मचारी भी शामिल हैं। जबकि इस अवधि में प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं की संख्या में तिगुनी से ज्यादा वृद्धि हो चुकी है। जिस अनुपात में बिजली उपभोक्ताओं की संख्या में वृद्धि हुई है, उस अनुपात में कर्मचारियों की संख्या बढ़ने की बजाए घटती चली गई। जिससे संभावना व्यक्त की जा रही है कि यही स्थिति रही तो प्रदेश के विद्युत तंत्र को ठप्प होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। हालात ये हैं कि जहाँ फील्ड में मैदानी अधिकारियों-कर्मचारियों की बेतहाशा कमी है, वहीं कार्यालयों में भी बाबुओं की खासी कमी हो चुकी है।

मध्य प्रदेश विद्युत मंडल तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रांतीय महासचिव हरेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि वर्तमान में बिजली कंपनियां मैनपावर की कमी से जूझ रही है। इस कमी को जल्द से जल्द पूरा किया जाना अतिआवश्यक है। उन्होंने इसका समाधान देते हुए कहा कि 1998 से 2012 तक विद्युत मंडल व कंपनियों में सेवाकाल के दौरान मृत हुए विद्युत कर्मियों के आश्रितों को बिना शर्त अनुकंपा नियुक्ति देकर और अनुभवी हो चुके आउटसोर्स कर्मियों का विद्युत कंपनियों में संविलियन कर इस कमी को तत्काल पूरा किया जा सकता है।

हरेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि बिजली कंपनियों के 2,400 अनुकंपा आश्रित वर्षो से नियुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इन्हें अनुकंपा नियुक्ति प्रदान कर वर्षो पुरानी मांग पूरी होने के साथ ही कर्मचारियों की कमी भी दूर हो सकेगी। इसके अलावा वर्तमान में सभी बिजली कंपनियों में लगभग 30,000 आउटसोर्स कर्मी कार्यरत हैं, जो काफी अनुभवी हो चुके हैं। इन सभी आउटसोर्स कर्मियों का संविलियन कर कर्मचारियों की कमी को काफी हद तक पूरा किया जा सकता है।

हरेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि इन 19 वर्षों में मध्य प्रदेश के 52 जिलों में एलटी लाइन एवं एचटी लाइन में सैकड़ों किलोमीटर की वृद्धि हुई है। साथ ही ट्रांसमिशन कंपनी के द्वारा 400 केवीए, 132 केवीए, 200 केवीए के अनेक सब स्टेशन स्थापित किये गए हैं। तीनों वितरण कंपनियों द्वारा भी 33 केवी के सैकड़ों सब स्टेशनों का निर्माण किया गया, जिसमें कंपनी प्रबंधनों को एवं ऊर्जा विभाग को नियमित कर्मचारियों की भर्ती करना था, लेकिन इनमें आउट सोर्स कर्मियों को नियुक्त कर दिया गया। जिन्हें सब स्टेशन के संचालन का नियमानुसार प्रशिक्षण नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण के अभाव और कार्य के दबाव के चलते अनेक नियमित, संविदा और आउटसोर्स कर्मी असमय मौत के मुंह में समा चुके हैं। विद्युत तंत्र को चलाने के लिए नियमित कर्मचारियों की भर्ती किया जाना आवश्यक है।

संघ के एसके मौर्या, रमेश रजक, केएन लोखंडे, एसके शाक्य, जेके कोष्टा, मोहन दुबे, अजय कश्यप, राजकुमार सैनी, राम शंकर, ख्यालीराम, अरुण मालवीय, टी डेविड, इंद्रपाल, सुरेंद्र मिश्रा, आजाद सकवार, विनय सिंह ठाकुर, शशि उपाध्याय, महेश पटेल, दशरथ शर्मा, मदन पटेल आदि के द्वारा कंपनी प्रबंधन एवं ऊर्जा विभाग से मांग की गई है कि अनुकंपा आश्रितों को नियुक्ति दी जावे। साथ संविदा कर्मियों को नियमित एवं आउटसोर्स कर्मियों का संविलियन किया जाये।