इतिहास: संध्या कुमारी

संध्या कुमारी
लुधियाना

विक्रमादित्य जब सूर्य-सा पराक्रम दिखाता है
कालीदास जब उनके दरबार की शोभा बढाता है
इतिहास भी जब चन्द्रगुप्त के शौर्य को दोहराता है
चाणक्य भी जब अपनी कूटनीति सूक्ष्मता से समझाता है
कवि चन्दवर जब पृथ्वी का यशोगान सुनाता है
गर्वित हो, तब मेरा मन वन्देमातरम गाता है

सूर के सगुण और कबीर के निर्गुण का जब मिलन हो जाता है
तुलसी जब समन्वय कर सगुण और अगुण का अभेद बतलाता है
ऐसे भक्तिरस में जब सम्पूर्ण जगत डूब जाता है
भक्ति मग्न हो, तब मेरा मन वन्देमातरम गाता है

नारी सशक्तिकरण का नारा जाने कैसे मुखरित हो जाता है
कैसे हमारी वीरांगनाओं का जौहर भूला जाता है
लक्ष्मीबाई की वीरता से जब शत्रु भी घबरा जाता है
वीररस में, तब मेरा मन वन्देमातरम गाता है

सात शहीद गोली खा कर जब तिरंगे का मान बढाता है
जालियावाला बाग में लाशों के ऊपर भी तिरंगा ऊँचा रह जाता है
भगत, राजगुरू, सुखदेव को जब फाँसी पर झुलाया जाता है
गाँधी, सुभाष और शेखर का जब संग्राम सफल हो जाता है
चारों ओर जब भारत मां की जय स्वर गूँज जाता है
द्रवित हो, तब मेरा मन वन्देमातरम गाता है

अपने पूर्वजों की वीरता को सुन मेरा हौसला बढ जाता है
भारत का हर कोना मुझे भारतीय होने पर गर्व कराता है
भारत पर अभिमान कर, मेरा रोम-रोम भारत माता की जय बोलने लग जाता है
तब मेरा मन वन्देमातरम गाता है