संध्या कुमारी
लुधियाना, पंजाब
क्योंकि मैं नारी हूँ
मैं नारी हूँ, इस जहाँ में सबसे प्यारी हूँ
तुम कहते हो ना, मैं जग से न्यारी हूँ
अरे! तुम्हें नहीं पता, मैं बेचारी हूँ
क्योंकि मैं नारी हूँ
मै बहन हूँ, बेटी भी हूँ
तुम कहते हो ना, मैं जगत जननी हूँ
अरे! तुम्हें नहीं पता, मैं टूटी छुई छननी हूँ
क्योंकि मैं नारी हूँ
मैं देवी हूँ, पति की अर्धांगिनी हूँ
तुम कहते हो ना, मैं गृहस्वामीनी हूँ
अरे! तुम्हें नहीं पता, मैं दुख भरी कहानी हूँ
क्योंकि मैं नारी हूँ
मैं लक्ष्मी हूँ, दूर्गा भी हूँ
तुम कहते हो ना, मैं काली हूँ
अरे! तुम्हें नहीं पता, मैं समाज के हाथों की कठपुतली हूँ
क्योंकि मैं नारी हूँ
मैं धरती माँ हूँ, भारत माँ हूँ
तुम कहते हो ना, मैं हर जगह पूजी जाती हूँ
अरे! तुम्हें नहीं पता, मैं पुरुषों के पैरों तले रौंदी जाती हूँ
क्योंकि मैं नारी हूँ