वंदना मिश्रा
प्रोफ़ेसर, GD बिनानी पीजी कॉलेज,
मिर्ज़ापुर-231001
समीक्ष्य कविता संग्रह- हैं न…
कवि- मुकेश कुमार सिन्हा
हैं न… कविता संग्रह पढ़ कर एक बात दावे से कहा जा सकता है कि कवि ने साइंस की पढ़ाई बहुत अच्छे से की और प्रेम भी।
काश ! साइंस का ऐसा कोई शिक्षक मिला होता तो इतना कठिन ना लगता विज्ञान और गणित विषय।जिन्होंने अपने बचपन में विज्ञान विषय रुचि से न पढ़ा हो तो ‘है ना’… कविता संग्रह जरूर पढ़ें, अध्यापकीय शैली समझाने की कला। नरेश सक्सेना जी का वक्तव्य याद आता है जिसमें वे कहते हैं “अगर मेरा काम पानी बालू मिट्टी, गिट्टी सीमेंट का है तो मैं उसे कविता में आने से कैसे रोक सकता हूँ।”
मेरी एक परिचित गणित की शिक्षिका व्यक्तियों के लिए भी इस तरह की शब्दावली बोलती थी, ”इसे ऐड कर दो इस कार्यक्रम से इसे माईनस करो, ये प्रॉब्लम को मल्टी प्लाई कर देता है।”
कहने का तात्पर्य यह कि मुकेश जी जब जो करते हैं पूरे मन से, जिस शिद्दत से विज्ञान और गणित पढ़ा उसी तरह प्रेम को भी समझते समझाते हैं।
इनकी कविताएं इसीलिए मौलिक कविताएं हैं और भिन्न आस्वाद वाली भी। बीच-बीच में योग्य शिक्षक की तरह पूछ भी लेते हैं ‘है ना‘ या ‘है कि नहीं‘ ठीक है ना?
“दो दूनी चार का मतलब मत निकाल लेना बेवकूफ,
संवाद चलता रहता है तुम्हारी स्मृतियां से भी रोया था समझे ना!“
गणित प्रेम और विज्ञान का मेल, कुछ हवा से हल्की कुछ ‘मृत्यु’ कविता जैसी अनदेखी और उपेक्षित विषय पर, गम्भीर कविता।
उनके यहां स्वप्न और यथार्थ इतने मिले-जुले स्नेहासिक बोसा कोलेस्ट्रॉल पिघला देने वाला। प्रेमी-प्रेमिका को फिजिक्स केमिस्ट्री सिखा देते हैं कहना और कहने में सहमति भी लेना, यह नहीं कि कहते ही जाए आप समझे या न समझे।
कोमल भाव है यही विज्ञान और साहित्य का मिलन बिंदु है साहित्य आपको दूसरों की राय लेने उसका सम्मान करने योग्य बनाता है दो और दो का जोड़ हमेशा चार नहीं होता प्रेम को गणितीय अंदाज में रखते हुए भी वह शुष्क नहीं होते।
प्रेम की कोमल संवेदनशीलता मिलती है उनके यहाँ दो कप चाय की उष्णता में, प्रेम का क्रिस्पी होना, हृदय की धड़कनों का बढ़ना और चाय की पत्ती की तरह उबलना, कहना ना होगा कि अब तक पढ़ी कविताओं से कुछ तो भिन्न है उनकी कविताएं।
“है ना“ जहां आशा भरी नजर से स्वीकृत पाने की चाह है वही ‘सुनो ना‘ में कोमल और मधुर आग्रह है और दूसरों की राय को महत्व देना भी उनकी कविता की विशेषता है।
प्रिज़्म में दिखते रंगों की तरह उनकी कविताएँ प्रेम के अनेक रूप ले कर आती हैं। कभी कभी लगता है कि एक ही प्रेम की विविध छाया है उनके यहाँ। ‘अजीब लड़की‘ कविता, बेहद खूबसूरत कविता है। जिसे पढ़ कर अनायास ‘परवीन शाक़िर‘ याद आ जाती हैं- लड़कियों के सुख अजीब होते हैं और दुःख उससे भी अजीब हँस रही हैं और काजल भीगता है साथ ही।
“मेरी आँखों में डाल कर आँखें
खिलखिलाती हो और उसी समय
टपक पड़ते हैं आँसू…”
बेशक यह संवेदनशीलता की पराकाष्ठा है, पर बेबसी के आलम में कवि के पास बसपर “मेरे पास बस होता है, एक शब्द चुप भी हो जाओ न बेवकूफ़ “
बिछड़ते समय वह एक चाँदी का सिक्का जेब में डालती है और कहती है इसे स्नेह व दुआ का यंत्र समझना।
“बेशक मत मानो
प्रेम है तुमसे !
जियो, क्योंकि ज़िंदगी है!“
कहना न होगा यह प्रेम ही तो दुआ की तरह है।
प्रेम क्षणभंगुर हो तो प्रेम ही क्या! बाहरी आकर्षण तो खत्म हो सकता है समय के साथ। यादों को सँजोना और व्यक्त करना ही शायद प्रेम है।
“लव यू से ज़्यादा बहता है प्रेम
‘स्टिल आई लव हर’ में“
इसी तरह की एक प्यारी कविता है ‘रूमानियत से भरी डायरी‘ एक रूमानी कथा की तरह चलती यह कविता बचपन से शुरू होती है, जिसमें कम पढ़ने और ज़्यादा ईमानदारी रखने वाली लड़की है, जो किसी भी तरह पूछ कर नहीं अपने मन से लिखने की ज़िद्द करती है, उसे किसी तरह मनुहार करके लिखवाना, जिससे वो साथ-साथ चले उसकी जल्दी शादी हो गई तो बाल विवाह को कोसते हुए कवि उसका नाम हर परिचित की बेटियों के लिए सुझाते हैं-
“चाह जगी ज़िन्दगी की
चाहत एक बिटिया की
जिसे पुकारूँ उस नाम से।”
कितना पवित्र से प्रेम है! फ़राज़ के शब्दों में कहें तो-
“और फ़राज़ चाहिए कितनी मोहब्बतें तुझे,
माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया”
खूबसूरत कविताओं से भरा यह संग्रह विज्ञान, गणित और प्रेम की आवाजाही से पूर्ण होकर भी, प्रेम में गणित करने वालों से अलग मिजाज़ रखता है।