लागा झुलनिया का धक्का- नवेन्दु उन्मेष

वैलेंटाइन डे का स्वरूप समय के साथ बदलता चला गया है। एक जमाना था जब प्रेमी जोड़े पेड़-पौधे की आड़ में छिपकर अपने प्रेम का इजहार किया करते थे और गांव-मुहल्ले के लोगों को इसकी जानकारी भी नहीं होती थी। ऐसे जोड़े कभी-कभी नदी या तालाब के किनारे मिल-बैठकर शांति से अपने प्यार का इजहार कर लिया करते थे। उस वक्त उनमें मां-बाप, भाई और गांव-मुहल्ले के लोगों से डर लगता था किं कही कोई देख न ले प्यार करते हुए। लेकिन अब ऐसी बात नहीं रह गयी। अब तो मोबाइल, वाट्सएप और फेसबुक के जमाने में प्यार का इजहार हो जाता है और किसी को पता भी नहीं चलाता। जब बात शादी तक पहुंच जाती है तो प्रेमी या प्रेमिका अपने घर वाले या समाज को बताते हैं कि हमारा प्यार सोशल मीडिया के सहारे परवान चढ़ा।
कभी वह दौर भी था जब ’लागा झुलनिया का धक्का, बलम कलकत्ता पहुंच गये’ गीत बजते थे। जाहिर है उनदिनों झुलनिया का धक्का लगते ही बलम कलकत्ता पहुंच जाया करते थे। मैं सोचता हॅूं कि उस वक्त झुलनिया के धक्के में कितना दम होता था कि बलम अपना घर-परिवार छोड़ करके कलकत्ता पहुंच जाते थे। अब न वह झुलनिया रही और न वह दम रहा। अब तो पता चलेगा कि झुलनिया का धक्का लगने के बाद भी बलम घर में निठल्ला बैठा हुआ है और झुलनिया का धक्का खा रहा है। इसके बावजूद घर से बाहर नहीं निकल रहा है। उस वक्त झुलनिया का धक्का
लगने के बाद बलम जब कलकत्ता पहुंच जाते थे तब यह गीत भी गाया जाता था कि ’कलकतवा में मोर पिया बारे लालटेन।’ जाहिर है वहां जाकर बलम को अगर कोई काम नहीं मिलता था तो वह दुकान में लालटेन जलाने का भी काम कर लेता था।
अब तो मुआ बिजली ने बलम का लालटेन जलाने का काम भी छीन लिया है। अब तो प्रेम में कई बाधाएं हैं। मेरठ की वह घटना आपको याद होगी जिसमें पार्क में बैठे प्रेमी जोड़ों पर पुलिस ने लाठिया बरसाई थी। पुलिस वाले लाठियां
ऐसे बरसा रहे थे मानों उन्हें प्यार का मर्म ही नहीं मालूम हो। मेरा मानना है कि पहले झुलनिया का धक्का लगने पर बलम कलकत्ता पहुँच जाया करते थे लेकिन अब झुलनिया का धक्का लगने के बाद कई लोग पुलिस की नौकरी में आ जाते हैं। उनकी प्रेमिका घर में रहती है और इसका खीझ वे लोग दूसरे प्रेमी जोड़ों पर उतारते हैं। यही हाल कई संगठनों का भी है। वे भी वैलेंटाइन डे के दिन लाठी-डंडे लेकर तैनात रहते हैं कि देखते हैं कैसे करते हो प्यार। ऐसे लोगों को क्या मालूम प्यार-व्यार क्या होता है। उन्हें तो सिर्फ अपने संगठन के आलाकमान का इंतजार रहता है कि आदेश हो और वे निकल पड़े प्यार पर पहरा देने के लिए।
उन्हें लगता है कि प्यार करने के लिए भी उनके आदेश की जरूरत है। ऐसे लोग कभी बरेली के बाजार में नहीं गये। उन्हें नहीं मालूम की बरेली के बाजार
में झुमका कैसे गिरता है। उन्होंने कभी वह गीत नहीं सुनी- ’झुमका गिरा रे
बरेली के बाजार में।’ मुझे लगता है कि बरेली में प्यार का दुनिया का सबसे
बड़ा बाजार हुआ करता है। यही कारण है कि वहां झुमका बराबर गिरता है। लगता है कि उस बाजार में झुमका गिराने वाले भी आते हैं और झुमका चुनने वाले भी। जिन्हें झुमका मिल जाता होगा वह खुशी-खुशी अपने घर चला जाता होगा और वैलेंटाइन डे के दिन अपनी प्रेमिका के समक्ष प्रेम का इजहार करते हुए कहता होगा कि यह लो मैं तुम्हारे लिए बरेली के बाजार से झुमका चुनकर लाया हॅूं। शायद प्रत्येक प्रेमिका को बरेली के बाजार के झुमके की तमन्ना भी रहा करती होगी। हालांकि मैं कभी उस बाजार में नहीं गया, लेकिन सोचता हूूं कि अगर उस बाजार में मुझे जाना पड़े तो मैं वहां झुमका जरूर खोजूंगा। शायद मुझे भी एक झुमका मिल जाये। वैसे मुझे घर में पत्नी का डर लगा रहता है।
एक दिन वह मुझसे बोल भी रहीं थी कि वैलेंटाइन डे आने वाला है तुम बरेली मत चले जाना। मैं समझ गया कि पत्नी डर गयी है कि कहीं बरेली के बाजार से
कोई सौतन न ले आयें। पत्नी को यह भी डर लगा रहता है कि अगर मेरा बलम बरेली के बाजार से सौतन ले आया तो उसे कहना पड़ेगा मेरा क्या होगा कालिया। अब तो शोले फिल्म वाले कालिया भी नहीं रहे। अब तो समाज में ऐसे कालिया है। जो प्रेम में जरा सी चूक हो जाने पर प्रेमिका की जान पर आफत तक बन जाते हैं। यही कारण है कि आये दिन प्यार में असफल प्रेमी द्वारा प्रेमिका पर सरेराह तेजाब फेंक देना और सिर कलम करने देने जैसी घटनाओं को अंजाम देने से नहीं घटनाएं समाने आ रही हैं। लेकिन समाज में अब ऐसी भी प्रेमिकाएं है जो अपने प्रेमी से कहती है आ जा मेंरे बालमा, तेरा इंतजार है। अगर तू नहीं तो दूसरा तैयार है। मतलब साफ है प्रेमिकाएं भी अब गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर होने लगी हैं। उन्हें प्रेमी से नहीं प्रेमी के जेब से मतलब है। जो मेरी अपनी जेब जितना ढीला कर सकता है प्रेमिकाएं भी उस पर उतना ही मरती है।

-नवेन्दु उन्मेष
वरिष्ठ पत्रकार, दैनिक देशप्राण
रांची, झारखंड
संपर्क-9334966328

नवेन्दु उन्मेष का परिचय-
नवेन्दु उन्मेष रांची, झारखंड के निवासी हैं और विगत चालीस वर्षो से
व्यंग्य लेखन के कार्य में संलग्न हैं। इनका जन्म और दीक्षा-दीक्षा रांची
में हुई। इनके पिता रामकृष्ण उन्मन झारखंड और बिहार के प्रसिद्ध हिन्दी
कवि रहे हैं। परिवार में साहित्यिक माहौल होने के कारण इन्होंने व्यंग्य
लेखन का कार्य आरंभ किया। इनके व्यंग्य प्रत्येक सप्ताह देश के
प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं। श्री उन्मेष झारखंड के
प्रसिद्ध हिन्दी पत्रकार हैं। वर्तमान में हिन्दी दैनिक देशप्राण में
सीनियर पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं। ये हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी और
रूसी भाषा के जानकार और अनुवादक हैं।