भारतीय वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम सिनैप्टिक डिवाइस बनाई है जो मानव मस्तिष्क में स्थित ‘सिनैप्स’ की तरह ही कार्य करके कहीं अधिक बेहतरीन कंप्यूटिंग मॉडल के माध्यम से सूचना प्रौद्योगिकी को रूपांतरित करने में सक्षम है। उन्होंने एकल चिप पर जैविक मस्तिष्क से प्रेरित संयोजन, जिसे न्यूरोमॉर्फिक संयोजन भी कहा जाता है और तर्क करने संबंधी कार्य को एकीकृत करने के लिए ऑक्साइड विषम संरचनाओं में द्वि-आयामी इलेक्ट्रॉन गैस का उपयोग किया है।
आधुनिक कंप्यूटर स्वाभाविक रूप से मेमोरी और कम्प्यूटेशन कार्य को ‘वॉन न्यूमैन कंप्यूटिंग’ के आधार पर स्वतंत्र भौतिक इकाइयों के रूप में अलग-अलग कर देते हैं- यह दरअसल एक ऐसी प्रणाली है जो अनगिनत निर्देशों की तरह होती है जो कंप्यूटर को यह बताती है कि विभिन्न जानकारियों को कैसे संभालना है और विभिन्न कार्यों को कैसे करना है। इसके लिए जटिल कार्यों को समझने और पूरा करने के लिए अलग-अलग इकाइयों की आवश्यकता होती है, और फिर संबंधित परिणामों को मेमोरी में वापस करना पड़ता है, जिससे कंप्यूटिंग कार्य धीमा हो जाता है। इससे ‘अड़चन’ उत्पन्न हो सकती है। खास तौर पर यदि कंप्यूटर को ठीक एक ही समय में ढेर सारे निर्देशों और डेटा को संभालने की जरूरत होती है, तो यह धीमा हो सकता है क्योंकि सभी को एक ही पथ पर चलना होता है।
वहीं दूसरी ओर मानव मस्तिष्क सही मायनों में एक परिष्कृत, गतिशील, पुनर्संयोज्य प्रणाली है जिसमें सीधे मेमोरी एक्सेस होती है और जिसमें न्यूरॉन्स सटीक तरीके से कम्प्यूटेशन का कार्य पूरा करते हैं। जैविक मस्तिष्क की जटिल कार्यप्रणाली से प्रेरित न्यूरोमॉर्फिक इलेक्ट्रॉनिक्स में कहीं अधिक बेहतरीन कंप्यूटिंग मॉडल के माध्यम से सूचना प्रौद्योगिकी को रूपांतरित करने की क्षमता होती है।
भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (INST) मोहाली (पंजाब) के वैज्ञानिकों ने ‘वॉन न्यूमैन कंप्यूटिंग’ की चुनौतियों से पार पाने के लिए मानव मस्तिष्क के कार्य सिद्धांत का अनुसरण करते हुए एक नया नजरिया अपनाया। उन्होंने एक ऐसी चिप विकसित करने के लिए ईयूओ-केटीएओ3 (केटीओ) ऑक्साइड की विषम संरचना के भीतर द्वि-आयामी इलेक्ट्रॉन गैस (2डीईजी) का उपयोग किया जिसने न्यूरोमॉर्फिक गुणों को दर्शाया और इसके साथ ही प्रतिरोधकता में व्यापक बदलाव दर्शाया जिसे प्रतिरोधक स्विचिंग व्यवहार के रूप में जाना जाता है।
ईयूओ-केटीएओ3 इंटरफेस पर प्रकाश की चमक के कारण करंट उत्पन्न होता है और यह प्रकाश के बंद हो जाने के बाद भी बना रहता है (जो उच्च सतत फोटोकंडक्टिविटी को दर्शाता है) जिसके परिणामस्वरूप ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक गुण उत्पन्न होते हैं जो संवेदी धारणा, सीखने, और स्मृति जैसे संज्ञानात्मक कार्यों को दोहराने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। विकसित चिप न केवल जैविक सिनैप्स में होने वाले अल्पकालिक और दीर्घकालिक लचीलेपन को संभव कर देती है, बल्कि तर्क करने संबंधी कार्य भी बखूबी करती है, जिससे उन्नत न्यूरोमोर्फिक सिस्टम में एकीकरण के लिए इसकी बहुमुखी प्रतिभा और क्षमता काफी हद तक बढ़ जाती है।
एक परिष्कृत, विशिष्ट रूप से निर्मित उपकरण, जिसे कॉम्बिनेटोरियल पल्स्ड लेजर डिपोजिशन सेटअप कहा जाता है, के रूप में डीएसटी के नैनोमिशन और सीएसआईआर से प्राप्त सहयोग से आईएनएसटी, मोहाली (पंजाब) के प्रोफेसर सुवनकर चक्रवर्ती ने इंटरफेस पर 2डीईजी को तैयार किया है जो ईयूओ और केटीएओ3 नामक रसायनों से बना है और जो न्यूरोमॉर्फिक गुणों को दर्शाते हुए कृत्रिम सिनैप्टिक डिवाइस के रूप में कार्य करता है। यह शोध ‘एप्लाइड फिजिक्स लेटर’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
ऑक्साइड इंटरफेस में न्यूरोमॉर्फिक डिजाइन कम ऊर्जा की खपत संभव कर सकता है, और इसके साथ ही त्वरित सूचना प्रोसेसिंग, बेहतरीन एआई क्षमताओं, और बेहतर डिवाइस लघुकरण की सुविधा प्रदान कर सकता है। ये सिस्टम समय के साथ सीख सकते हैं और बदल सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कहीं अधिक निजीकृत और उत्तरदायी प्रौद्योगिकी प्राप्त होगी। इसके अलावा, उनकी उत्कृष्ट मजबूती और दोष संबंधी सहिष्णुता उन्हें ऐसे महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों के लिए एकदम सटीक बनाती है जो अंततः स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, और सतत पर्यावरण सहित रोजमर्रा की जिंदगी को बेहतरीन कर देंगे।
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