बाल दिवस महोत्सव: डॉ निशा अग्रवाल

डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर राजस्थान

बाल दिवस बच्चों के प्रति स्नेह, दुलार, सम्मान प्रदर्शित करने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। अलग अलग देश में बच्चों के लिए ये उत्सव अलग अलग तारीख को मनाया जाता है। कुछ देशों में 1 जून को अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस के रूप में, तो कुछ देशों में 20 नवंबर को विश्व बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।

भारत में भी 1959 से 20 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाना शुरू हुआ और 1964 तक बाल दिवस 20 नवंबर को ही मनाया जाता था, लेकिन  पंडित जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु (1964) के बाद से भारत में 14 नवंबर को बाल दिवस मनाने की शुरुआत हुई। नेहरू जी के जन्म दिन को ही पूरे देश में बाल दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

चाचा नेहरू का बच्चों के प्रति स्नेह एवं लगाव को प्रदर्शित करने के लिए हर वर्ष 14 नवंबर को बाल दिवस मनाते हैं। बाल दिवस पर भाषण, निबंध, आयोजित किए जाते हैं। बाल दिवस की शुरुआत किए जाने का मूल कारण बच्चों की जरूरतों को स्वीकार करने, उनको पूरा करने, उनके अधिकारों की रक्षा करने और उनके शोषण को रोकना था, ताकि बच्चों का समुचित विकास हो सके। 

लेकिन बाल दिवस स्कूलों, सरकारी और निजी संस्थानों, सरकारी विभागों के लिए एक औपचारिकता भर बनकर रह गया है, जिसके चलते पढ़ने-खेलने की उम्र में भारतीय बच्चों का एक बड़ा हिस्सा शोषण का शिकार है, बालश्रमिक कारखानों, दुकानों, होटलों आदि में मजबूरी में मजदूरी करते देखे जा सकते हैं।

अबोध बचपन बाल तस्करी की भेंट चढ़ रहा है। जब तक सरकारी नियमों का कड़ाई से पालन नहीं होता और ऐसे बच्चों के राहत और पुनर्वास के कदम नहीं उठाए जाते, तब तक देश में बाल दिवस के अवसर पर औपचारिक आयोजनों के जरिए खानापूर्ति होती रहेगी और मूलभूत सुविधाओं से वंचित, शोषित बचपन सिसकता रहेगा। बाल दिवस को सार्थक बनाने के लिए समाज के सभी वर्गों और सरकारी तंत्र को संवेदनशील बनना होगा और देश के भविष्य को बेहतर बनाने की दिशा में योगदान करने के लिए आगे आना होगा।