पुस्तक समीक्षा- समय से संवाद करती कविता: वंदना पराशर

समीक्षक- वंदना पराशर
कविता संग्रह- दो औरतें
कवयित्री- चित्रा पंवार
प्रकाशक- आपस पब्लिकेशन, अयोध्या-224001

साहित्य समाज का आईना होता है। एक सच्चा रचनाकार वहीं होता है जो अपने समय और समाज में घटित हो रही घटनाओं का मूल्यांकन तटस्थ होकर पूरी ईमानदारी से करता है। वह अपनी लेखनी के माध्यम से उन तमाम बिंदुओं पर बातें करती है जिसे प्रायः नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है या फिर उन पर बहुत कम चर्चा होती है।

हाल ही में प्रकाशित चित्रा पंवार का पहला काव्य-संग्रह ‘दो औरतें’ आपस पब्लिकेशन से प्रकाशित हुई है, जिसे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की प्रकाशन अनुदान योजना के अंतर्गत शामिल होने का गौरव प्राप्त हुआ है। ‘दो औरतें’ स्त्री जीवन की जीवंत दास्तान है। अपनी छोटी-छोटी कविताओं में कवयित्री स्त्रियों के दुःख- दर्द को गहराई से महसूस करती है। यहां जो ख़ास बात है वह यह कि यहां स्त्रियां पीड़ा सहन कर चुप नहीं रह जाती है वह संघर्ष करती है। अपने कर्तव्य का निर्वाह जितने सुचारू रूप से करती है उतनी ही सजग अपने अधिकारों के लिए भी है। ‘स्त्री पृथ्वी है’ कविता में कवयित्री कहती है-

जब दोनों हाथों से
लूटी खसोटी जाओ
दबा दी जाओ
अनगिनत जिम्मेदारियों के तले
तुम्हारे किए को उपकार नहीं
अधिकार समझा जाने लगे
तब हे स्त्री-
डोल जाया करो न
तुम भी
अपनी धूरी से
पृथ्वी की तरह।

चित्रा की कविता संवाद की कविता है। इस आधुनिक होते समाज में मनुष्य की संवेदना शुष्क होती जा रही है। लोग आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। दूसरों की दुःख-तकलीफ़ सुनने और समझने के लिए लोगों के पास समय नहीं है। मनुष्य यंत्रवत होते जा रहे हैं। ‘आंकड़े’ कविता छोटी है मगर धारदार। व्यक्ति के मौत पर शोक व्यक्त करने के बजाय उस पर राजनीतिक बहसों का होना कवि को व्यथित करता है।वे कहती है-

‘क्योंकि व्यक्ति की मौत पर शोक होता है
आंकड़ों पर केवल बहस’

व्यवस्था के बनाए हुए मकड़जाल में लोग इस कदर उलझ जाते है कि मौत के बाद भी उसे चैन नहीं है।

कवयित्री कहती है कि-
अब वो फाइलों में बंद
त्रासदी के आंकड़े बन गए
सफेद, काले आंकड़े।

कभी जाति तो कभी धर्म के नाम पर बांटने वाले राजनीति तंत्र पर तंज़ कसते हुए कवयित्री का मानना है कि यह शासन तंत्र हमेशा ग़रीबों का ही शोषण करती है।
‘आदमी की गंध’ कविता कीअंतिम पंक्ति देखिए-

लाइन से आगे आओ
जो गंधा रहे हैं खून से
वो अपने-अपने झंडे का रंग बताकर
एक-एक कर बाहर निकलते जाएं
अंत में एक घबराई सी चीख सुनाई दी
तुमने सबको आजाद कर दिया है
अरे मुझे भी निकालो
मैं यहां अकेला रह गया हूं
नहीं
तुम्हें यहीं मरना होगा
मगर क्यों भाई
मूर्ख हो क्या
देखते नहीं
तुम्हारी देह से रोटी की महक आती है
तुम आदमी हो।

यह विडंबना ही है कि आदमी होना ग़रीब के लिए अभिशाप है।

चित्रा की कवितायें पढ़ते हुए एक बात बहुत शिद्दत से महसूस होती है कि उनकी कविताएं किसी एक फ्रेम में बंधी हुई नहीं है। उनके यहां विविधता है। जहां वह अपनी कविताओं में स्त्रियों,ग़रीबों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाती है वहीं प्रकृति संबंधी कविताओं में प्रकृति के लिए उनकी चिंता साफ झलकती है-

“ज्यादा कुछ नहीं
जाते समय दुनिया से
छोड़कर जाना चाहती हूं मैं
साफ आकाश, हरी-भरी धरा
उजले तालाब
बस इतनी सी इच्छा है।”

चित्रा की प्रेमपरक कविताओं में कोरी भावुकता या भावनाओं का बहाव नहीं है। उनके यहां प्रेम ईश्वर का सबसे खूबसूरत वरदान है। प्रेम में पवित्रता , स्थिरता और एक- दूसरे के प्रति सम्मान और समर्पण का भाव होना बेहद ज़रूरी है। कवि प्रेम में पक्षी होना पसंद करती है। उनका मानना है कि

पक्षी मनुष्य की अपेक्षा
एक – दूसरे का अधिक लम्बा
और समर्पित साथ निभाते हैं
क्योंकि
उनके साथ होने की शर्त है मात्र प्रेम
और हम मनुष्यों की
प्रेम से इतर उपरोक्त सब।

प्रेमपरक ऐसी कई छोटी किंतु गहन भावों की कविताएं है जहां कवयित्री प्रेम को उसके मूल्यों के साथ अपनाने की बात कहती है। वास्तव में मनुष्य और मनुष्यता को बचाने के लिए प्रेम की सत्ता को बचाने की ज़रूरत है। यह तभी संभव है जब मनुष्य प्रेम के मूल्यों को समझें।

अपनी ‘चाय’ कविता में कवयित्री बेहतर रिश्तों के लिए चाय की तरह ही रिश्तों में ताज़गी और उष्णता की बात कहती है जो कि एक बेहतर रिश्तों के लिए बेहद ज़रूरी है। अपनी बात कहने के लिए किसी विशेष बिषय- वस्तु की आवश्यकता कवि को नहीं होती है।वो अपने आसपास हो रही रोजमर्रा की मामूली बातें जो असल जीवन का हिस्सा होती है उन्हें अपने कविताओं के माध्यम से कहती है। इसी तरह’ स्त्री मन’, ताला और चाबी, व्यापक भाव- बोध की कविता है।

कहना न होगा कि चित्रा पंवार भले ही नई कवयित्री हैं किन्तु उनका दृष्टिकोण व्यापक है। अपनी कविताओं में वे अपने समय और समाज को गौर से देखने की कोशिश करती है। उनकी कविताएं वास्तविक जीवन के बेहद करीब है। उनकी भाषा शैली सहज और सरल है। यही कारण है कि उनकी कविताएं पाठकों को अपनी सी लगती है। संवेदनशील कवि होने के साथ ही चित्रा एक कुशल चित्रकार भी हैं। उनके द्वारा बनाए गए कुछ चित्र इस संग्रह में कविता के साथ ही छपे हुए हैं। चित्रों को गौर से देखने पर ऐसा लगता है मानों रेखाएं बोल उठी है।

चित्रा पंवार का कविता-संग्रह ‘दो औरतें’ पठनीय है।
कवयित्री को अनंत शुभकामनाएं।