पंकज स्वामी
अद्भुत शहर है जबलपुर। इसकी कुछ खूबियों पर लोगों का ध्यान, नज़र, बतकही कम ही रही। एक खूबी है जिसे इंजीनियरिंग या अभियांत्रिकी कहा जाता है। संदर्भ सिर्फ इतना है कि 15 सितंबर को मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या का जन्मदिवस है। उनके जन्मदिवस को जबलपुर सहित पूरे देश में अभियंता दिवस या इंजीनियर डे के रूप में मनाया जाता है।
विश्वेश्वरय्या व जबलपुर का आपसी संबंधी इसलिए महत्वपूर्ण है कि यहां गांधी, नेहरू, सुभाष की जितनी मूर्तियां नहीं है उतनी विश्वेश्वरय्या की मूर्तियां हैं। विश्वेश्वरय्या की जबलपुर में आठ मूर्तियां विभिन्न स्थानों में स्थापित की गईं हैं। जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में विश्वेश्वरय्या की मूर्ति सबसे पहले स्थापित की गई।
विश्वेश्वरय्या की अन्य मूर्तियां कला निकेतन पॉलीटेक्निक कॉलेज, इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स, पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर आफिस, सिंचाई विभाग बरगी हिल्स, हितकारिणी इंजीनियरिंग कॉलेज, नर्मदा मंडल पचपेढ़ी व लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) आफिस में स्थापित हैं। नौंवी मूर्ति का अनावरण 15 सितंबर को मध्यप्रदेश विद्युत अभियंता संघ के रामपुर कार्यालय में होने जा रहा है। संभवत: यह गिनीज बुक का रिकार्ड होगा कि किसी शहर में मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या की 9 मूर्तियां हैं। वैसे मध्यप्रदेश देश का एकमात्र ऐसा प्रदेश है, जहां मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या की सर्वाधिक मूर्तियां हैं।
जबलपुर की नस-नस में कुछ अच्छी और कुछ खराब चीजों की तरह अभियांत्रिकी या इंजीनियरिंग के बीज पड़े हुए हैं। जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज को भारत का दूसरा इंजीनियरिंग कॉलेज होने का गौरव प्राप्त है। जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना देश स्वतंत्र होने के पूर्व 7 जुलाई 1947 को हो गई थी। जबलपुर इंजीनियरिंग के प्राचार्य डॉ. एस.पी. चक्रवर्ती की दूरदृष्टि थी कि उन्होंने राबर्टसन कॉलेज के छोटे कमरे से इसे वट वृक्ष में परिवर्तित करने में अहम् भूमिका निभाई।
देश व प्रदेश का सबसे पुराना इंजीनियरिंग कॉलेज होने के कारण जबलपुर में इंजीनियरिंग और इससे सीधे रूप से संबद्ध शिक्षा, पेशा, नौकरी, रोजगार का खूब फले फूले। उसी समय यानी कि स्वतंत्रता के बाद लगभग 15 सालों के भीतर जबलपुर में शास्त्री ब्रिज, मेडिकल कॉलेज, जबलपुर विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, साइंस व महाकौशल कॉलेज और टेलीकॉम ट्रेनिंग सेंटर (टीटीसी) के विशाल ढांचे व भवन बने।
ये सब भवन निर्धारित समय अवधि में गुणवत्ता के साथ किए गए। शास्त्री ब्रिज की अभियांत्रिकी ऐसी थी कि उसके ढांचे में कहीं भी लोहे का एक टुकड़ा नहीं लगा। महाकौशल व साइंस कॉलेज में आज भी भवन निर्माण के समय के सीमेंट पाइप लगे हुए हैं। ये सब काम स्थानीय स्तर पर सरकारी इंजीनियरों द्वारा उच्च स्तरीय ढंग से किया गया।
जबलपुर में बाद के वर्षों में इंजीनियरिंग व आर्किटेक्चर के नायाब नमूने के तौर पर बिजली बोर्ड का मुख्यालय शक्तिभवन बना। शक्तिभवन की अभियांत्रिकी व आर्किटेक्चर की सराहना देश व विदेश में हुई। जबलपुर में तिलवारा पुल पर बना हुआ नर्मदा एक्यूडक्ट एशिया ही नहीं पूरे विश्व में चर्चा का विषय रहा लेकिन हम लोगों ने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया।