गिरते रुपये की कहानी: मुकेश चौरसिया

मुकेश चौरसिया
गणेश कालोनी, केवलारी,
सिवनी, मध्य प्रदेश

भाइयों और बहनों। मेरा नाम रुपया है। मेरी ऐसी हैसियत नहीं रही कि मैं इस देश की जनता से आंख मिलाकर भी बात कर सकूं। लेकिन मेरी स्थिति सब दिन से इतनी खराब नहीं थी। एक जमाना था कि मैं अकेला सोलह आने के बराबर था। और जब नया जमाना आया तो मैं सौ पैसे के बराबर हो गया। नई पीढ़ी मुझसे परिचित नहीं हैं। मेरे बारे में जानना हो तो अपने घर के बड़े-बूढ़ों से पूछो। वो बताएंगे कि मैं उनके लिए क्या अहमियत रखता था।

आह वो भी क्या दिन थे। आपमें से कुछ लोगों को याद होगा जब मैं अपने अमेरिकी डॉलर भाई से हर मामले में बराबर था। आजादी का नए सूरज में मेरी चमक ज्यादा थी। मेरी तमन्ना थी कि मैं डॉलर और पौंड सबको पीछे छोड़ दूं। आखिर गुलामी की स्याह रात में देखे गए सपनों मे एक सपना यह भी था। लेकिन धीरे-धीरे वो जोश, वो जुनून खोने लगा और साथ-साथ मैं भी अपनी चमक खोने लगा। दूसरे देशों के मेरे भाई मुझसे ज्यादा ताकतवर होने लगे और मैं निरंतर कमजोर होने लगा।

जिन हाथों को आपने ताकतवर बनाया वही हाथ मुझे कमजोर बनाने लगे। क्योंकि अगर मैं ताकतवर होता तो ये देश ताकतवर होता, यहां की जनता ताकतवर होती, हमारे सपनों का लोकतंत्र ताकतवर होता। इस देश की आवाज इतनी खनकदार हो जाती कि दुनिया इस आवाज को सुनने के लिए तरसती। लेकिन तब वे लोग कमजोर हो जाते जा अपने आप को आपका हितैषी बताते है, अपने आप को आपका मसीहा, लोकतंत्र का रक्षक और संविधान का पहरुआ बताते हैं।

आज मैं गिर रहा हूं। हर दिन गिर रहा हॅू और आजादी के सत्तर साल के बाद मुझे इस बात का अहसास हुआ कि देश तो आजाद हो गया लेकिन मैं डॉलर का गुलाम हो गया, उसका बंधुआ मजदूर हो गया। आज मेरी कीमत तय करने का अधिकार इस देश को नहीं सात समुंदर पार बैठे लोगों को है।

भाइयो और बहनो, ये सच है कि मैं गिर रहा हूॅ क्योंकि हर दिन मेरे गिरने की चर्चा हो रही है लेकिन मैं पूरी विनम्रता से बताना चाहता हॅू कि न तो मैं अकेला नहीं गिर रहा हॅू और न ही सबसे पहले गिर रहा हॅू।

आपको बुरा लगेगा पर सबसे पहले आप गिरे जब आपने एक भ्रष्ट आदमी को अपना वोट दिया। जब आपने देश के ऊपर जाति, धर्म और मजहब को माना। भारत से पहले अपने प्रदेश और अपने क्षेत्र को प्राथमिकता दी और ऐसा आपने एक बार नहीं बार-बार किया। सच्चे धर्म के ऊपर अंधश्रद्धा को महत्व दिया। अपनी भाषा और संस्कृति को ठेंगा दिखाकर पराई भाषा और पराई संस्कृति की हिमायत की। सबके बारे में सोचने से पहले केवल अपने बारे में सोचा। आपको अपने देश की हर चीज बुरी लगी और हर विदेशी चीज आपके लिए आदर्श हो गई। मैं जानता हॅू आपको बुरा लगेगा। लेकिन सच इससे अलग नहीं है।

आपके बाद गिरे इस देश के नीति नियंता और कर्णधार। आजादी के सैनानियों का नाम लेकर सत्ता की रोटी सेंकने वाले इन नेताओं ने मेरा बेड़ा गर्क कर दिया। सत्तर साल का इतिहास जो विकास का इतिहास बन सकता था, घोटालों और भ्रष्टाचार का इतिहास बनकर रह गया। ये लोग आत्मनिर्भरता की बात करते रहे और विदेशों के आगे कटोरे फैलाए रखे। विदेशी सौदों में लाखों करोड़ों का वारे न्यारे किए और विदेशी बैंकों को मालामाल करते रहे। ये आपको कभी गरीबी हटाओ का, कभी सुशासन का और कभी सस्ते अनाज को सपना दिखाते रहे। आप सोते रहे क्योंकि आप सोएंगे नहीं तो सपना कैसे देखेंगे।

हां मैं गिर रहा हॅू परंतु अपनी अंतरआत्मा से पूछिए कि क्या मैं सचमुच गिर रहा हॅू या कोई और चीज है जो बहुत पहले से गिर रही है मैं तो गिरावट का प्रतीक बस हॅू और यदि मैं सचमुच गिर भी रहा हूँ तो सबसे आखिर में गिर रहा हॅू-

मुझसे पहले इस देश का स्वाभिमान गिर गया।
मुझसे पहले तो इस देश का चरित्र गिर गया।
मुझसे पहले तो इस देश का सत्य गिर गया।
मुझसे पहले तो इस देश का साहस गिर गया।
मुझसे पहले तो इस देश का धर्म गिर गया।
मुझसे पहले तो इस देश की गंगा जमुनी संस्कृति गिर गई।
मुझसे पहले तो इस देश की ईमान गिर गया।
मुझसे पहले तो इस देश का आत्मबल गिर गया।

क्या-क्या गिनाऊं दोस्तो जब मुझे थामने वाले सारे हाथ गिर गए तो मुझे कौन थामता? और अंतिम बात,
मैं इतना तो कभी नहीं गिरुंगा जितना आज का मनुष्य गिर गया है।