कहानी संग्रह प्रलय में नाव का विमोचन: सार्वभौमिकता, सार्वजनिकता, समकालीनता व किस्सागोई के कथाकार हैं तरुण भटनागर

‘पहल’ के तत्वावधान में गत दिवस रानी दुर्गावती संग्रहालय की कला वीथ‍िका में कथाकार तरुण भटनागर के कहानी संग्रह ‘प्रलय में नाव’ का विमोचन वरिष्ठ आलोचक व ‘अक्सर’ के संपादक सूरज पालीवाल, युवा आलोचक शश‍िभूषण मिश्र व ज्ञानरंजन ने किया। विमोचन कार्यक्रम के लिए जयपुर से आए सूरज पालीवाल ने कहा कि एक कथाकार के लिए कथ्य और शिल्प का तालमेल बैठा पाना कठिन होता है। यह काम तरुण भटनागर बखूबी करते हैं। वे अपनी कहानियों में शिल्प का नया प्रयोग करते हैं। 

‘प्रलय में नाव’ कहानी संग्रह की आठों कहानियों में शिल्प का अलग-अलग प्रयोग है। कहानियों का कथ्य ज्ञान बोझिल नहीं है। उसमें किस्सागोई है जिसमें अद्भुत सूक्ष्म जानकारी है, जो साफगोई के साथ कहानी को आज के संदर्भों से जोड़ देती है। तरुण भटनागर की लम्बी कहानियाँ बार-बार पाठ की मांग करती हैं। इन कहानियों में सार्वभौमिकता, सार्वजनिकता और समकालीनता देखने को मिलती है। इन कहानियाँ में शोषितों, उत्पीड़ितों, उपेक्षितों, दमितों के प्रति पक्षधरता मिलती है और अप-संस्कृति पर तीखा प्रहार भी साफ़तौर पर दिखाई देता है। पात्रों के प्रति उनकी तटस्थता उनकी कहानियों को बड़ा बनाती है।

युवा और चर्चित आलोचक शशिभूषण मिश्र ने विस्तार से तरुण भटनागर की कहानियों पर चर्चा करते हुए कहा कि इक्कीसवीं सदी की हिन्दी कहानी में विषयों के अंतरानुशासन को संभव करने, कहानी के भूगोल का विस्तार करने और नवतामूलक कहन भंगिमाओं से समृद्ध करने वाले कथाकार तरुण भटनागर का ‘प्रलय में नाव’ संग्रह कई दृष्टियों से रेखांकनीय है। उन्होंने संग्रह का अधिकतर रकबा घेरे दो

कहानियों, ‘प्रलय में नाव’ और ‘जख़्मे-कुहन’ की विस्तार से चर्चा की। शश‍िभूषण मिश्र ने कहा कि इन दो कहानियों से क्या इक्कीसवीं सदी की मुकम्मल पहचान उभरती है और उसमें तरुण भटनागर की उपस्थिति के क्या मायने हैं, इसे देखा जाना चाहिए। ये दोनों कहानियाँ पर्यावरण और पारिस्थितिकी के विनाश और मनुष्य की बेमुरव्वती को लक्षित करती हैं। ‘प्रलय में नाव’ जहाँ ‘काराबारी सभ्यता की विनाशलीला’ का बहुआयामी पाठ है तो ‘जख़्म-ए-कुहन झूठ और फरेब में लिपटी हमारी शिक्षा व्यवस्था की धुंधवाती समझ का प्रतिपाठ है।’ उन्होंने कहा कि तरुण भटनागर इक्कीसवीं सदी में आदिवासी जीवन, जंगल और विशेष तौर पर बस्तर के आदिवासी जीवन के विश्वस्त कथाकार हैं।

कथाकार तरुण भटनागर ने कहा कि ‘पहल’ पत्रिका के रूप में जबलपुर की साहित्यिक-सांस्कृतिक पहचान रही है और उससे मुझे लिखने का हौसला मिला है। एक रचनाकार धारा के विपरीत लिखता है। अपनी रचना प्रक्रिया पर संक्षेप में बोलते हुए उन्होंने कहा कि आपसी तालमेल, जुड़ाव और सहयोग से हमारी यह दुनिया कितनी खूबसूरत हो सकती है। कार्यक्रम में जबलपुर के साहित्यिक- सांस्कृतिक और कला से जुड़े महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्वों ने शिरकत की। कार्यक्रम का संचालन और आभार प्रदर्शन कथाकार पंकज स्वामी ने किया। आयोजन के निर्देशन, संचालन, व्यवस्था आदि में राजेन्द्र दानी, मनोहर बिल्लौरे, अवधेश वाजपेयी, शरद उपाध्याय व मुकुल यादव की भूमिका महत्वपूर्ण रही।