राज कपूर, जबलपुर और नर्मदा: पंकज स्वामी

पंकज स्वामी

आज 2 जून को हिन्दी सिनेमा के सबसे बड़े शो मेन राज कपूर की पुण्यत‍िथ‍ि है। अपने देश ही नहीं चीन व रूस तक में लोकप्रिय रहे राज कपूर का जबलपुर व नर्मदा नदी से विशेष लगाव था। राज कपूर की 1946 में राय कर्तारनाथ की बेटी और प्रेमनाथ की बहिन कृष्णा से विवाह रीवा में हुआ था। राय कर्तारनाथ व उनके बेटे प्रेमनाथ ने जबलपुर में एम्पायर टॉकीज को स्थापित किया था। इसी एम्पायर टॉकीज से लगा हुआ नाथ परिवार का बंगला था। यह बंगला ही राज कपूर की ससुराल थी। कृष्णा और राज कपूर दोनों के परिवार पेशावर से क्रमश: रीवा व जबलपुर और बंबई आए थे।

कृष्णा बच्चों के साथ छुट्टी में आती थीं जबलपुर

राज कपूर का कृष्णा से विवाह होने के उपरांत उनका एक तरह जबलपुर से जुड़ाव व लगाव हो गया। कृष्णा अपने पांचों बच्चों रणधीर, रीतू, ऋष‍ि, रीमा व राजीव को ले कर गर्मियों व सर्द‍ियों की छुट्टी में प्राय: जबलपुर आया करती थीं। राज कपूर का जबलपुर प्रवास विशेष कुछ मौकों जैसे राय कर्तारनाथ व प्रेमनाथ के परिवार में विवाह अवसर पर होता था। पांचवे दशक में नाथ परिवार में एक विवाह के अवसर पर राज कपूर के साथ उनके छोटे भाई शम्मी कपूर भी जबलपुर में एम्पायर टॉकीज के बंगले में आए थे। दोनों भाईयों ने नाथ परिवार के विवाह में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेकर मेहमानों का स्वागत किया था। बाद में राज कपूर लोगों से गर्व से कहते थे कि वे तो जबलपुर के दामाद हैं।

बंबई जाती थी खोवे की जलेबी

कृष्णा छुट्ट‍ियों के बाद जब जबलपुर से वापस बंबई जाती थीं तब परंपरा के अनुसार उनके साथ मायके वाले काफी कुछ सामान रखते थे। उनमें जबलपुर की प्रसिद्ध खोवे की जलेगी भी हुआ करती थी। राज कपूर ने मीठा कम खाया करते थे लेकिन एक खोवे की जलेबी वे अवश्य खाते थे। कृष्णा एक बार खोवे की जलेबी लेकर आरके स्टूड‍ियो पहुंची। उस समय एक गाने को लेकर राज कपूर व लता मंगेशकर के बीच गंभीर विचार विमर्श हो रहा था। लता मंगेशकर कृष्णा कपूर को भाभी कहती थीं। कृष्णा कपूर ने लता मंगेशकर को भी खोवे की जलेबी पेश की। संभवत: लता मंगेशकर ने अपने जीवन में पहली व आखि‍री बार जबलपुर की खोवे की जलेबी खायी तो वे आनंद से भर गईं।

नर्मदा के प्रति आस्था

राज कपूर ने जबलपुर प्रवास के दौरान प्रेमनाथ के साथ नर्मदा तट के सुंदर दृश्यों को निहारा था। नर्मदा के दर्शन से वे कृत कृतार्थ हो गए थे। नर्मदा के प्रति उनकी आस्था जाग गई थी। उस समय भेड़ाघाट उन्हें ऐसा भाया कि उन्होंने वर्ष 1960 में आरके बैनर की ‘जिस देश में गंगा बहती’ के एक गाने का दृश्यांकन भेड़ाघाट की संगमरमरी चट्टानों में किया। इस दृश्य में साउथ की पद्म‍िनी पर एक गाना ‘ओ बंसती पवन पागल’ फिल्माया था। गाने को लता मंगेशकर ने शंकर-जयकिशन के मधुर संगीत में पूरी तन्यमता के साथ गाया था। वह पहला मौका था जब बंबई की किसी फिल्म में भेड़ाघाट की सुंदरता को देश-विदेश में लोगों ने देखा था।

राज कपूर की खासियत थी कि वे अपनी किसी भी फिल्म की धुन को वर्षों बाद पूरे गानों में उपयोग करते थे। ऐसे ही कई विषय उनके दिमाग वर्षों तक घूमते रहते थे और समय आने पर वे उन्हें फिल्म का विषय बना कर प्रस्तुत करते थे। भेड़ाघाट में ‘जिस देश में गंगा बहती’ के गाने को शूट करते वक्त राज कपूर के मन में नदियों को लेकर विचार तैरने लगे थे।

नर्मदा को फोकस कर फिल्म बनाने का था विचार-आठवें दशक की शुरुआत में राज कपूर ने गंगा नदी को केन्द्रि‍त कर ‘राम तेरी गंगा मैली’ बनाई थी। ‘सत्यम श‍िवम सुंदरम’ में उन्होंने कथा सूत्र में नदी और उसकी बाढ़ को चित्रित किया था। राज कपूर की योजना थी कि ‘नर्मदा’ को केन्द्र में रख कर फिल्म बनाएंगे लेकिन जब उन्हें भारतीय सिनेमा में योगदान देने के लिए दादा साहब फालके सम्मान से नवाजा जा रहा था, उस समय अचानक अस्थमा का दौरा आया। एक माह अस्पताल में इलाज के बाद उनका 2 जून 1988 को निधन हो गया। इसी के साथ राज कपूर, कृष्णा कपूर और जबलपुर का अध्याय समाप्त हो गया।