धनतेरस के दिन वस्तु खरीदने से होती है तेरह गुणा वृद्धि, जाने शुभ मुहूर्त

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय
प्रश्न कुंडली एवं वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ

दीपावली पांच पर्वों का समूह है जोकि धनतेरस से प्रारंभ होता है। भारतीय परंपरा के पावन त्यौहार धनतेरस को धनत्रयोदशी, धन्वंतरि जयंती या यम त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस को मनाने के लिए के बारे में दो अलग-अलग कथाएं हैं। पहली कथा के अनुसार इसी दिन समुंद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत लेकर प्रकट हुए थे। अर्थात इस दिन मानव जाति को अमृत रूपी औषध प्राप्त हुई थी। इस औषध की एक बूंद ही व्यक्ति के मुख में जाने से व्यक्ति की कभी भी मृत्यु नहीं होती है। अगर हम आज के संदर्भ में बात करें एक ऐसी वैक्सीन की खोज हुई थी, जिसके एक बूंद में मात्र से व्यक्ति को कभी कोई रोग नहीं हो सकता है।

दूसरी कथा के अनुसार यमदेव ने एक चर्चा के दौरान बताया है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को रात्रि के समय पूजन एवं दीपदान को विधिपूर्वक पूर्ण करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है। इसमें दीपक और पूजन का महत्व बताया गया है। अगर हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यम देव ने संभवत एक ऐसे तेल का आविष्कार किया था, जिसका दीप बनाकर प्रयोग करने से उस दीप की लौ से निकलने वाले गैस को ग्रहण करने से अकाल मृत्यु से व्यक्ति को छुटकारा मिलता था। अगर हम ध्यान दें तो इन दोनों कथाओं का संबंध व्यक्ति के स्वास्थ्य से है ।

अगर हम इस त्योहार को सामान्य दृष्टिकोण से देखें तो हम पाते हैं कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तक वर्षा ऋतु समापन पर आ जाती है और इस दिन भी प्रकार की पूजा पाठ करने से तथा दीपक जलाने से विभिन्न प्रकार के कीट पतंगों का जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हैं नष्ट करने में हमें मदद मिलती है। जैन आगम में धनतेरस को ‘धन्य तेरस’ या ‘ध्यान तेरस’ भी कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूँकि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोक मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनियाँ के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं। धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी, गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं। आप सभी को यह जानकर प्रसन्नता होगी की धनतेरस को भारत सरकार ने राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मान्यता दी है।

धन त्रयोदशी रात्रि का त्यौहार है, इस वर्ष जबलपुर के भुवन विजय पंचांग के अनुसार त्रयोदशी 22 अक्टूबर को सायंकाल 4:04 बजे से प्रारंभ हो रही है और अगले दिन अर्थात 23 तारीख को दिन के 4:35 बजे तक रहेगी। इससे यह स्पष्ट है दीपदान हेतु समय 22 अक्टूबर को सायंकाल 4:04 बजे के बाद ही प्रारंभ होगा। उज्जैन के पुष्पांजलि पंचांग के अनुसार त्रयोदशी 22 तारीख को सायंकाल 5:56 बजे से प्रारंभ हो रही है जो अगले दिन 23 तारीख को सायंकाल 5:58 बजे तक रहेगी। जबलपुर के समय के अनुसार 23 तारीख को 4:30 बजे से 4: 33 बजे रात्रि अंत तक भद्रा रहेगी। 22 तारीख को सायंकाल का मुहूर्त ही उपयुक्त है। धनतेरस की खरीदारी 22 तारीख को सायंकाल उज्जैन के समय के अनुसार सायंकाल 5:56 से 7:29 तक तथा इसके उपरांत रात्रि 9:03 बजे से रात्रि के 25:46 बजे अर्थात रात्रि 1:46 बजे तक की जा सकती है।

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