मां दुर्गा की आराधना का त्यौहार वर्ष में 4 बार आता है। दो बार गुप्त नवरात्रि और दो बार नवरात्रि के रूप में। विक्रम संवत के वर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की परिवा से होता है और इसी दिन से चैत्र मास की नवरात्रि भी प्रारंभ होती है। ऐसा माना जाता है कि चैत्र शुक्ल पक्ष के नवमी के दिन भगवान राम का धरती पर अवतरण हुआ था। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 2 अप्रैल 2022 को पड़ रही है। इसी तिथि से विक्रम संवत 2079 प्रारंभ होगा इस नवरात्रि को वासंतिक नवरात्रि कहते हैं।
दूसरी नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहते हैं तथा यह अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से प्रारंभ होता है। इस वर्ष यह 26 सितंबर से प्रारंभ होगी। इस प्रकार वर्ष में आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होने वाली है नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि और चेत्र तथा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से क्रमशः वासंतिक और शारदीय नवरात्रि प्रारंभ होती है।
विभिन्न ग्रंथों के अनुसार नवरात्रि पूजन के कुछ नियम है। देवी भागवत के अनुसार अगर अमावस्या और प्रतिपदा एक ही दिन पड़े तो उसके अगले दिन पूजन और घट स्थापना की जाती है। विष्णु धर्म नाम के ग्रंथ के अनुसार सूर्योदय से 10 घटी तक प्रातःकाल में घटस्थापना शुभ होती है। रुद्रयामल नाम के ग्रंथ के अनुसार यदि प्रातःकाल में चित्र नक्षत्र या वैधृति योग हो तो उस समय घट स्थापना नहीं की जाती है, अगर इस चीज को टालना संभव ना हो तो अभिजीत मुहूर्त में घट स्थापना की जाएगी। देवी पुराण के अनुसार देवी की देवी का आवाहन प्रवेशन नित्य पूजन और विसर्जन यह सब प्रातः काल में करना चाहिए। निर्णय सिंधु नाम के ग्रंथ के अनुसार यदि प्रथमा तिथि वृद्धि हो तो प्रथम दिन घटस्थापना करना चाहिए।
नवरात्रि के वैज्ञानिक पक्ष की तरफ अगर हम ध्यान दें तो हम पाते हैं कि दोनों प्रगट नवरात्रों के बीच में 6 माह का अंतर है। चैत्र नवरात्रि के बाद गर्मी का मौसम आ जाता है तथा शारदीय नवरात्रि के बाद ठंड का मौसम आता है। हमारे महर्षियों ने शरीर को गर्मी से ठंडी तथा ठंडी से गर्मी की तरफ जाने के लिए तैयार करने हेतु इन नवरात्रियों की प्रतिष्ठा की है। नवरात्रि में व्यक्ति पूरे नियम कानून के साथ अल्पाहार एवं शाकाहार या पूर्णतया निराहार व्रत रखता है। इसके कारण शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन होता है, अर्थात शरीर के जो भी विष तत्व है वे बाहर हो जाते हैं। पाचन तंत्र को आराम मिलता है। लगातार 9 दिन के आत्म अनुशासन की पद्धति के कारण मानसिक स्थिति बहुत मजबूत हो जाती है।जिससे डिप्रेशन, माइग्रेन, हृदय रोग आदि बिमारियों के होने की संभावना कम हो जाती है। वर्ष के बीच में जो हम एक-एक दिन का व्रत करते हैं,उससे मानसिक स्थिति मजबूत नहीं हो पाती है, केवल पाचन तंत्र पर ही उसका प्रभाव पड़ता है।
देवी भागवत के अनुसार सबसे पहले मां ने महिषासुर की सेना का वध किया था, उसके बाद उन्होंने महिषासुर का वध किया। महिषासुर का अर्थ होता है ऐसा असुर जो कि भैंसें के गुण वाला है, अर्थात जड़ बुद्धि है। महिषासुर का विनाश करने का अर्थ है समाज से जड़ता का संहार करना। समाज को इस योग्य बनाना कि वह नई बातें सोच सके तथा निरंतर आगे बढ़ सके। समाज जब आगे बढ़ने लगा तो आवश्यक था कि उसकी दृष्टि पैनी होती तथा वह दूर तक देख सकता। अतः तब माता ने धूम्रलोचन का वध कर समाज को दिव्य दृष्टि दी। धूम्रलोचन का अर्थ होता है धुंधली दृष्टि। इस प्रकार माता जी माता ने धूम्र लोचन का वध कर समाज को दिव्य दृष्टि प्रदान की।
समाज में जब ज्ञान आ जाता है उसके उपरांत बहुत सारे तर्क-वितर्क होने लगते हैं। हर बात के लिए कुछ लोग उस के पक्ष में तर्क देते हैं और कुछ लोग उस के विपक्ष में तर्क देते हैं। समाज की प्रगति और अवरुद्ध जाती है। चंड-मुंड इसी तर्क और वितर्क का प्रतिनिधित्व करते हैं। माता ने चंड-मुंड की हत्या कर समाज को बेमतलब के तर्क-वितर्क से आजाद कराया। समाज में नकारात्मक ऊर्जा के रूप में मनोग्रंथियां आ जाती हैं। रक्तबीज इन्हीं मनोग्रंथियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस प्रकार एक रक्तबीज को मारने पर अनेकों रक्तबीज पैदा हो जाते हैं, उसी प्रकार एक नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने पर हजारों तरह की नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है। जिस प्रकार सावधानी से रक्तबीज को मां दुर्गा ने समाप्त किया, उसी प्रकार नकारात्मक ऊर्जा को भी सावधानी के साथ ही समाप्त करना पड़ेगा।
नवरात्रि में रात्रि का दिन से ज्यादा महत्व है। इसका विशेष कारण है। नवरात्रि में हम व्रत संयम नियम यज्ञ भजन पूजन योग साधना बीज मंत्रों का जाप कर सिद्धियों को प्राप्त करते हैं। राज्य में प्रचलित के बहुत सारे और रोज प्रकृति स्वयं ही समाप्त कर देती है। जैसे कि हम देखते हैं अगर हम जिनमें आवाज दें तो वह कम दूर तक जाएगी, परंतु रात्रि में वही आवाज दूर तक जाती है। दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों को, रेडियो तरंगों को रोकती है। अगर हम दिन में रेडियो से किसी स्टेशन के गाने को सुनें तो वह रात्रि में उसी रोडियो से उसी स्टेशन के गाने से कम अच्छा सुनाई देगा और शंख की आवाज भी। घंटे और शंख की आवाज भी दिन में कम दूर तक जाती है, जबकि रात में ज्यादा दूर तक जाती है। दिन में वातावरण में कोलाहल रहता है, जबकि रात में शांति रहती है। नवरात्रि में सिद्धि हेतु रात का ज्यादा महत्व दिया गया है।
हमारे शरीर में 9 द्वार हैं- 2 आंख, दो कान, दो नाक, एक मुख, एक मलद्वार तथा एक मूत्र द्वार। नौ द्वारों को सिद्ध करने हेतु पवित्र करने हेतु नवरात्रि का पर्व का विशेष महत्व है। नवरात्रि में किए गए पूजन अर्चन तप यज्ञ हवन आदि से यह नौ द्वार शुद्ध होते हैं। नवरात्रि हमें यह भी संदेश देती है कि सफल होने के लिए सरलता के साथ ताकत भी आवश्यक है, जैसे माता के पास कमल के साथ चक्र एवं त्रिशूल आदि हथियार भी है। समाज को जिस प्रकार कमलासन की आवश्यकता है, उसी प्रकार सिंह अर्थात ताकत, वृषभ अर्थात गोवंश, गधा अर्थात बोझा ढोने वाली ताकत तथा पैदल अर्थात स्वयं की ताकत सभी कुछ आवश्यक है।
पं अनिल कुमार पाण्डेय
सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता
प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री
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