
प्रश्न कुंडली एवं वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ,
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पितृ दोष से संबंधित बातें जन्म कुंडली और कर्म के गहरे रहस्यों से जुड़ी होती हैं। आज मैं आपको पितृ दोष के सभी पहलुओं को स्पष्ट रूप से बताऊंगा। सबसे पहले मैं मैं आपको यह समझाने का प्रयास करूंगा कि पितृदोष क्या होता है।
पितृ दोष का अर्थ है- जब हमारे पूर्वजों (पितरों) की आत्मा असंतुष्ट रहती है या उनके कर्मों का कोई ऋण शेष रहता है और वह हमारी कुंडली में ग्रहों के दोष के रूप में प्रकट होता है। यह केवल पूर्वजों के ऋण से नहीं, बल्कि हमारे स्वयं के कुछ पिछले जन्मों के कर्मों से भी जुड़ा हो सकता है।
पितृ दोष को कुंडली से पहचानने के लिए कुछ योगों पर विशेष रूप से ध्यान देना पड़ेगा
- सूर्य, चंद्रमा, राहु या केतु का पितरों के भावों (9वां, 5वां, 1वां) से सम्बन्ध।
- सूर्य या चंद्रमा पर राहु या केतु की दृष्टि या युति।
- नवम भाव में राहु, केतु या शनि का प्रभाव।
- पंचम भाव में राहु या केतु का होना (संतान और पूर्व जन्म से संबंध)।
- कुंडली में सूर्य और राहु की युति (ग्रहण योग)।
- कुलदेवता या पितरों की दिशा से सम्बंधित ग्रहों की पीड़ा।
- दशम भाव में अशुभ ग्रहों का प्रभाव (पिछले कर्म)।
मैं आपसे अभी कहना चाहूंगा की पितृ दोष को समझने के लिए संपूर्ण कुंडली का विश्लेषण आवश्यक होता है, केवल एक-एक ग्रह को देखकर निष्कर्ष निकालना उचित नहीं है।
पितृ दोष से होने वाली संभावित हानि
- पितृ दोष वाले व्यक्ति के यहां संतान उत्पत्ति में बाधा या संतान सुख में कमी रहती है।
- विवाह में देर या वैवाहिक जीवन में कष्टहो सकता है।
- बार-बार नौकरी या व्यवसाय में बार-बार असफलता प्राप्त होती है।
- आप सदैव मानसिक तनाव, भय या अवसाद की स्थिति में रहते हैं।
- अचानक दुर्घटनाएँ या स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएँ आती हैं।
- पितृदोष के कारण घर में क्लेश, अशांति या आर्थिक हानि बार-बार होती रहेगी।
- पितृ दोष के कारण यह भी संभव है कि पितरों के सपने आना या पूजा में बार-बार विघ्न पड़ना।
पितृ दोष निवारण के उपाय
पहले और मुख्य उपाय है कि आपको अपने पूर्वजों का श्राद्ध और तर्पण करना चाहिए, भले ही आप अपने घर में मँझले भाई हों, अर्थात सबसे बड़े या सबसे छोटा ना हो। यह कार्य मुख्य रूप से हर साल पितृ पक्ष (भाद्रपद अमावस्या से शुरू) में किया जाता है। तर्पण और श्राद्ध के उपरांत किसी योग्य ब्राह्मण को ब्राह्मण को भोजन और दक्षिणा अवश्य प्रदान करें।
आपको चाहिए कि आप अपने पितरों का पिंडदान करें। पिंडदान गया, बद्रीनाथ, प्रयागराज, नासिक या त्र्यंबकेश्वर जैसे तीर्थों में करवाना अत्यंत शुभ माना गया है। परंतु ध्यान रखें कि पिंडदान के उपरांत भी आपको हर पितृपक्ष में अपने पितरों का तर्पण करना आवश्यक है।
रुद्राभिषेक करने से भी पितृ दोष दूर होता है। विशेष रूप से महाशिवरात्रि, सोमवती अमावस्या या श्रावण सोमवार को शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना चाहिए।
पितृ दोष निवारण के मंत्र
“ॐ नमः भगवते वासुदेवाय पितृदोष विनाशाय स्वाहा।”
(इस मंत्र का 108 बार जप करें) जाप करने से पितृ दोष आराम मिल सकता है ।
“ॐ पितृदेवाय नमः”
(सावधानीपूर्वक 108 बार प्रतिदिन अमावस्या तक)
अगर आप इन उपायों को करेंगे तो आपको पितृदोष से राहत मिल सकती है।
पितृदोष के संबंध में यह एक सामान्य जानकारी है। अगर आप पितृदोष या कुंडली के अन्य दोषों के बारे में विशेष जानकारी चाहते हैं तो आपको चाहिए कि आप कुंडली की विवेचना करवाएं।