Wednesday, September 18, 2024
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पितृपक्ष 2024: गरुड़ पुराण में है पितरों की महिमा का वर्णन, जाने श्राद्ध की विधि और महत्व

ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव

हमारे सनातन धर्म में पितरों की मुक्ति, उनकी प्रसन्नता हेतु किये जाने वाले कर्मों का लंबा विधान है। भारतीय वांग्मय में पितरों के प्रति सम्मान, उनकी मुक्ति और उनकी प्रसन्नता के लिए किए जाने वाले कार्य हमारे दैनिक जीवन की दिनचर्या में शामिल हैं।

हमारे सभी संस्कारों में पितरों हेतु किये गए विधानों को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। पितरों को देवताओं के ही समकक्ष रखा गया है। लगभग सभी पुराणों, विशेष कर गरुड़ पुराण में पितरों की महिमा का वर्णन है, पूरा पुराण उन्हें ही समर्पित है। सूक्ष्म जगत में एक पूरा लोक यानी पितृलोक ही उनके लिए मौजूद है।

हम सभी मनुष्यों पर अपने पितरों का ऋण होता है, उससे मुक्ति के लिए प्रत्येक मनुष्य का पितरों का श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण बहुत आवश्यक होता है। बिना पितरों के आशीर्वाद के इहलोक में हमें सुख-सम्पन्नता और शांति नहीं प्राप्त हो सकती। यहां तक कि स्वयं भगवान श्रीहरि के अवतारों भगवान श्री राम, श्री कृष्ण तक नें अपने पूर्वजों और पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण श्राद्ध आदि किये हैं। इसके महात्म्य को देखते हुए हमारे मनीषियों ने वर्ष के 15 दिनों के पक्ष को पितरों के निमित्त समर्पित कर दिया।

इस वर्ष कब है पितृपक्ष

हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष पितृपक्ष बुधवार 18 सितंबर, पूर्णिमा तिथि से प्रारम्भ हो रहा, जो कि सोमवार 2 अक्टूबर अमावस्या तक चलेगा। कुछ विद्वान ज्योतिषियों के अनुसार चूंकि पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ 17 सितंबर को दोपहर से हो रहा और सूर्य की  कन्या राशि में संक्रांति भी 17 सितम्बर को हो रही तो पितृ पक्ष की शुरुआत 17 सितंबर को ही मानी जायेगी। लेकिन उदया तिथि के अनुसार 18 सितंबर को ही पितृ पक्ष की शुरुआत सर्वमान्य है। हालांकि जिनके परिजन पूर्णिमा तिथि को स्वर्गलोक सिधारे, वे 17 और 18 दोनों दिन पिंड दान, तर्पण, विसर्जन कर सकते हैं।

क्या होता है पितृपक्ष

भागवत पुराण, ब्रह्म पुराण और गरुड़ पुराण के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक जो 16 दिनों का पक्ष होता है उसे पितृपक्ष या श्राद्धपक्ष बोला जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस समय सूर्य कन्या राशि में होते हैं इसलिए इस समय को कनागत भी बोला जाता है। कहा जाता है कि इन दिनों में मृत परिजन अपने सूक्ष्म रूप में मृत्यु लोक में आकर अपने वंशजों से मिलने के लिए आते हैं और जब उनके वंशज उनके निमित्त कोई दान पुण्य, पूजन और तर्पण करते हैं तो वह बहुत प्रसन्न हो जाते हैं और उनको आशीर्वाद देकर अमावस्या के दिन वापस अपने लोक लौट जाते हैं।

क्या होता है तर्पण

जल जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है, चाहे वह स्थूल जगत हो या सूक्ष्म जगत ,जल से ही  मुक्ति का मार्ग खुलता है। ऐसे में पितृपक्ष में प्रतिदिन पितरों को काला तिल मिश्रित जल अर्पित किया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जल से पितरों को तृप्ति मिलती है। जल अर्पण की भी एक विशेष विधि होती है।

श्राद्ध क्या होता है

हमारे पूर्वज किसी भी महीने की जिस तिथि को मृत्यु को प्राप्त होते हैं, उसी तिथि को पितृपक्ष में अपनी श्रद्धानुसार उनके निमित्त दान-पुण्य और हवन किये जाते हैं और खास रूप में उन पूर्वजो के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान किया जाता है। श्राद्ध का उद्देश्य पितरों को उनके प्रति अपनी श्रद्धा और सम्मान प्रकट करके, उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना है। 

पितृ पक्ष के सरल उपाय

पत्रिकाओं और सोशल मिडिया में पढ़ने में आता है कि लोग अपने जीते जागते अपने माता-पिता का, घर के बड़े बुजुर्गों का अनादर और तिरस्कार करते हैं, मगर उनके मरणोपरांत पूरे आडम्बर से पितृ पूजन और भोज आदि आयोजित करवाते हैं। सच पूछा जाय तो कुछ हद तक बात सही है। मगर दूसरा पक्ष ये भी है श्राद्ध और तर्पण को क्यों न हम एक प्रायश्चित समझ कर करें, हमारे उन पूर्वजों के प्रति,जिनका हम ऋण चुकता ना कर सके और जाने अनजाने में हमने उनकी उपेक्षा और तिरस्कार किया।  एक तरह से ये हमारा आभार प्रकटी करण भी है, हमारे उन पूर्वजों के प्रति, जिनके आज हम वंशज हैं।

देखा जाय तो श्राद्ध शब्द श्रद्धा से उपजा है, अतः हम अधिक आडम्बर न करते हुए, श्रद्धा स्वरुप पितरों का ध्यान करते हुए सामर्थ्य अनुसार जो कुछ भी दान-भोज तर्पण  करें तो उसका भी पूर्ण फल प्राप्त होगा।

विधि

प्रतिदिन किसी साफ़ लोटे से, दक्षिण दिशा की तरफ मुंह कर के जल में काला तिल डाल कर पितरों का ध्यान करते हुए, सर के ऊपर तक लोटा उठाते हुए अर्घ्य दें।

प्रतिदिन अपने भोजन की थाली में से खाने से पूर्व प्रत्येक पदार्थ का थोडा सा हिस्सा अलग प्लेट में निकाल लें और छत या बारजे पर रख दें।

यदि घर के एक पीढ़ी पूर्व के मृतक की मृत्यु की तारीख याद है तो कैलेण्डर से उस दिन की हिन्दू तिथि ज्ञात कर लें फिर पितृपक्ष में उक्त तिथि किस दिनांक को पड़ रही ये ज्ञात कर लें। फिर पितरों को जल अर्घ्य देने के बाद गाय, कुत्ता व पंक्षी के लिए रोटी, बिस्कुट या ब्रेड रख लें। उस दिन थोडा कष्ट उठाते हुए उन्हें ढूंढ कर खिलाएं।पक्षी के लिए खाना छत या बारजे पर रखदें। कोई आवश्यक नहीं कि कौआ ही खाद्य सामग्री ग्रहण करे। यदि तिथि ज्ञात नहीं तो ये उपाय सर्व पितृ अमावस्या के दिन करें।

पुण्य तिथि या अमावस्या वाले दिन किसी एक गरीब, ज़रूरत मंद व्यक्ति को यथाशक्ति भोजन या भोजन सामग्री ज़रूर प्रदान करें। साथ में पानी की एक बोतल देना अनिवार्य है। गरीब मजदूर, या भिखारी को भी दान , भोजन आदि दिया जा सकता है।

श्रीमद्भागवत गीता के 7 वे अध्याय पूरी तरह से पितरों की मुक्ति, उनकी प्रसन्नता से सम्बंध रखता है। जो लोग पूरी व्यवस्था से श्राद्ध आदि नहीं कर सकते, वे कम से कम 16 दिनों तक गीता जी के सातवें अध्याय का पाठन संकल्प के साथ करें।

ज्योतिषीय उपचार

कुंडली में शनि अथवा राहू- केतु भाव अनुसार पितृ दोष उत्पन्न करते हैं। कौआ, कुत्ता , गरीब मजदूरों और भिखारी के ये तीनों ग्रह कारक या प्रतिनिधि ग्रह हैं। अतः पितृपक्ष में इन उपायों को करने से पितृ दोष की शान्ति होती है। (दोष दूर नहीं होते) यहाँ एक आवश्यक बात ये भी बताना चाहूंगी कि अक्सर लोग सोचते हैं कि यदि हमारे माता-पिता जीवित तो हम पितृ पक्ष क्यों मनाएं? जबकि ये एक भ्रान्ति है। दूसरी भ्रान्ति ये है कि लडकियाँ श्राद्ध नहीं कर सकतीं। मेरे नज़रिए से सभी श्राद्ध कर सकते हैं, क्योंकि ये हमारे लिए अपने पूर्वजों के लिए श्रद्धा का विषय है। जिनके माता पिता जीवित हों, वे ददिहाल और ननिहाल पक्ष के पूर्वजों के लिए श्राद्ध सम्बन्धी उपर्युक्त उपाय करें। अविवाहित लडकियाँ अपने पिता के पूर्वजों के लिए उपर्युक्त उपाय करें। जबकि विवाहिताएं अपने श्वसुर कुल और मायके दोनों पक्ष के पूर्वजों के लिए कर सकतीं हैं।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो, गेहूं की रोटी- सूर्य कारक, पीली दाल, हल्दी, कढ़ी- गुरु ग्रह कारक, हरी सब्जी- बुध ग्रह, मिठाई- मंगल ग्रह, खीर और दही- शुक्र ग्रह, उड़द के बड़े- शनि, जल- चन्द्रमा के कारक हैं। इन सबका दान सभी नवग्रहों का भी आशीष दिलवाता है। अतः आप सब इन सरल उपायों को अपनाएँ। पितरों का आशीष पाकर जीवन को सुखी बनाएं।

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