चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से चैत्र नवरात्र का शुभारम्भ होता है। नौ दिनों तक चलने वाले चैत्र नवरात्र में माँ दुर्गा के नौ रूपों आराधना की जाती है। चैत्र नवरात्र का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इसी तिथि को गुड़ी पड़वा भी है, इसे सृष्टि का जन्म दिन भी कह सकते हैं। इसके साथ ही हिन्दू नवसंवत्सर का भी आरंभ होता है।
गुड़ी पड़वा से जुड़ी एक पौराणिक मान्यता है कि इस दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। ये भी मान्यता है कि इसी दिन से सतयुग की शुरुआत भी हुई थी। महाराष्ट्र में धूमधाम से मनाए जाने वाले गुड़ी पड़वा को देश भर में हिन्दू नववर्ष या नव संवत्सर के रूप मनाया जाता है। इस दिन से विक्रम संवत का आरंभ और ऋतु परिवर्तन के साथ ही ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है।
वहीं मान्यता है कि चैत्र नवरात्र में माँ दुर्गा की आराधना करने से हर मुश्किल से छुटकारा मिलता है और दुःखों का नाश हो जाता है। चैत्र नवरात्र का एक विशेष महत्व और है चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमीं को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्मोत्सव पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है, इसी दिन भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम पृथ्वी पर अवतरित हुए थे।
इस वर्ष शनिवार 2 अप्रैल को माँ दुर्गा की आराधना के महापर्व चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ होगा। चैत्र नवरात्रि की घटस्थापना शनिवार 2 अप्रैल 2022 को की जाएगी। 2 अप्रैल को घटस्थापना का पहला मुहूर्त सुबह 6:10 बजे से 8:31 बजे तक रहेगा। घटस्थापना के लिए कुल 2 घण्टे 21 मिनट का समय मिलेगा। घटस्थापना का दूसरा मुहूर्त दोपहर 12 बजे से 12:50 बजे तक रहेगा। इस मुहूर्त की कुल अवधि 50 मिनट की रहेगी।
प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 1 अप्रैल 2022 को सुबह 11:53 बजे बजे से हो जाएगी। प्रतिपदा तिथि की समाप्ति 2 अप्रैल को 11:58 बजे बजे होगी। चैत्र नवरात्रि पर रवि पुष्य नक्षत्र के साथ सर्वार्थ सिद्धि व रवि योग का शुभ योग बन रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग का संबंध मां लक्ष्मी से होता है। माना जाता है कि इस योग में किए गए कार्य का आरंभ में सफलता हासिल होती है।
चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों तक माँ दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपों की आराधना की जाती है। माँ दुर्गा के नौ रूप माँ शैलपुत्री, माँ ब्रह्मचारिणी, माँ चंद्रघंटा, माँ कुष्मांडा, माँ स्कंदमाता, माँ कात्यायनी, माँ कालरात्रि, माँ महागौरी और माँ सिद्धिदात्री की आराधना के माँ के भक्त मनचाहे वर प्राप्त करते हैं।
माँ दुर्गा के पहले स्वरूप को शैलपुत्री कहा जाता हैं। नवरात्र के पहले दिन माँ शैलपुत्री की आराधना की जाती है। माँ शैलपुत्री का पूजन और आराधना बेहद ही शुभ फलदायी माना जाता है। माँ शैलपुत्री का स्वरूप बहुत ही मनोहारी और ममतामयी है, माँ के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल धारण किए माँ वृषभ पर विराजमान है।
नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री को गाय का शुद्ध घी अर्पित करने से आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है तथा शरीर निरोगी रहता है। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की आराधना में साधक अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है।
माँ शैलपुत्री की आराधना के दौरान इस श्लोक के जाप भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है-
वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।