लखनऊ (हि.स.)। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर में त्रिदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय ज्योतिष सेमिनार के दूसरे दिन रविवार को पंचांग की एकरूपता और पंचांग साधन, विवाह विलम्ब विचार, रोग विचार, हृदयरोग विचार, कर्मजरोग आदि विषयों पर गहन चर्चा हुई।
प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए ज्योतिष विभाग के वरिष्ठ आचार्य और परिसर निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा ने कहा कि पौराणिक मंत्रों के जाप से हृदय रोग जैसे गम्भीर संकट टल जाते हैं। उन्होंने कहा कि अरिष्ट निवारण हेतु मृत्युंजय स्तोत्र का पाठ किया जाता है। इसे अपने नित्य कर्म में जोड़कर प्रतिदिन पाठ किया जा सकता है। इससे ग्रहजन्य पीड़ा तथा प्राकृतिक उत्पातों से भी मुक्ति मिलती है।
प्रो. सर्वनारायण झा ने कहा कि जीविका की प्राप्ति करते-करते अधिकांश लोगों का विवाह विलम्ब से होने की सम्भावना बन जाती है। विवाह में विलम्ब होने से वैवाहिक जीवन का भय इतना आक्रान्त करता है कि लोग वैवाहिक जीवन के प्रति विमुख हो जाते हैं और यह रोग समाज में बहुत तेजी से फैल रहा है। ऐसी स्थिति में शास्त्रीय विधि से ईश्वरीय आराधना या ईश्वर भक्ति करने से विवाह विलम्ब दोष का शमन होता है और वैवाहिक जीवन के भय से मुक्ति मिलती है तथा विवाह के बाद सौहार्दपूर्ण जीवन प्राप्त होता है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के डऍ. सुभाष पाण्डेय ने हृदय रोग जैसे गम्भीर संकट से मुक्ति के लिए ईश्वर उपासना और मन्त्र जप पर गम्भीर चिन्तन किया और लोगों को सूचित किया।
पंचांग की एकरूपता आवश्यक
कवि कुलगुरू कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय नागपुर के ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर कृष्ण कुमार पाण्डेय ने कहा कि पंचांग की एकरूपता आवश्यक है। धर्मशास्त्र की दृष्टि से मतान्तर तो सम्भव है, लेकिन गणित में अन्तर आना चिन्ता का विषय है। इसलिये सभी को मिलकर कार्य करना चाहिए ताकि समाज को एक शुद्ध पंचांग मिल सके।
इसके अतिरिक्त अनुज कुमार शुक्ल, साक्षी जैन, विवेक त्रिपाठी, डा. हरिनारायणधर द्विवेदी आदि ने भी विवाह विलम्ब और रोग विचार पर चर्चा की। इस अवसर पर प्रो. मदनमोहन पाठक, डऍ. मीनू खरे प्रो. भारतभूषण त्रिपाठी, प्रो. धनीन्द्र कुमार झा, डाॅ. नीरज तिवारी, डॉ. अमित मिश्र, डाॅ. चन्द्रश्री पाण्डेय आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे।