सुजाता प्रसाद
शिक्षिका सनराइज एकेडमी,
नई दिल्ली
हर महीने में पूर्णिमा की तिथि आती है, इस तरह पूरे साल में बारह पूर्णिमा की तिथियां आती हैं। लेकिन अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को बहुत खास माना जाता है। क्योंकि चंद्र देव अपनी पूरी सोलह कलाओं के साथ इस रात में सभी लोकों को अपनी शीतल किरणों से आशीष देते हैं। इसे शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। शरद पूर्णिमा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में आती है, इसलिए इसे आश्विन पूर्णिमा भी कहते हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन ही माता लक्ष्मी का अवतरण हुआ था और शरद पूर्णिमा की रात को पृथ्वी पर मां लक्ष्मी का आगमन होता है। एक और मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था, जिस कारण इसे कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है।
जब द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ, तब मां लक्ष्मी राधा रूप में अवतरित हुईं। भगवान श्री कृष्ण और राधा की अद्भुत रासलीला का आरंभ भी शरद पूर्णिमा के दिन माना जाता है। इसलिए इस दिन को रास पूर्णिमा और कौमुदी महोत्सव भी कहते हैं।
यह पूर्णिमा सभी बारह पूर्णिमाओं में सर्वश्रेष्ठ मानी गयी गई है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की बूंदें बरसती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होती हैं।
शरद पूर्णिमा के पावन पर्व की रात शरद चन्द्र की शीतल किरणें सभी वनस्पतियों, वृक्षों और फ़सलों पर अमृतवर्षा करती हैं। सोम की किरणें धरती पर बिखर कर अनाज वनस्पतियों को अपने औषधीय गुणों से सींचती हैं।
वैज्ञानिक मान्यता है कि पंद्रह से बीस मिनट तक चांद को एकटक देखने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। शरद पूर्णिमा के दिन उपवास व्रत पूजा पाठ मंत्रोच्चार करने से हमारा शरीर स्वस्थ, मन प्रसन्न और बुद्धि अलौकिक होती है।
शरद पूर्णिमा का दिन कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। इस दिन उत्तर भारत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और प्रसाद के लिए खीर बनाई जाती है। और इस खीर को रात में चंद्रमा और उसकी चांदनी के तले रखा जाता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चांद से निकलने वाली किरणें अमृत के समान होती है। शरद पूर्णिमा वाली रात को खीर बनाकर चांद की रोशनी में पूरी रात रखा जाता है।
ऐसे मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणें जब खीर पर पड़ती तो खीर में विशेष औषधिय गुण आ जाते हैं। इस खीर में गाय का देसी घी भी मिलाया जाता है। इस खीर का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। इससे इंद्रियां पुनः ऊर्जावान हो जाती हैं। अस्थमा में भी फायदेमंद होता है, कहते हैं इस खीर का सेवन करने से दमे का दम भी निकल जाता है।
शरद पूर्णिमा का एक विशेष धार्मिक महत्व होता है। इस दिन धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। मां लक्ष्मी की विशेष पूजा अर्चना का विधान है।
इस दिन बंगाली समुदाय में कोजागरी लक्खी पूजा का भी विशेष आयोजन किया जाता है। पश्चिम बंगाल में कोजागरी लक्खी पूजा का विशेष महत्व होता है। पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में इस दिन कुमारी कन्याएं प्रातः काल स्नान करके सूर्य और चन्द्रमा की पूजा करती हैं।
माना जाता है कि इससे उन्हें योग्य पति की प्राप्त होती है। इसके अलावा मिथिलांचल में इस दिन कोजागरा व्रत-पूजा का विधान है। ये पूजा नवविवाहितों के लिए एक महत्वपूर्ण पूजा होती है। इसलिए शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
इस प्रकार सनातन धर्म में आश्विन महीने पड़ने वाली पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। शरद पूर्णिमा के दिन से स्नान और व्रत आदि प्रारंभ हो जाते हैं। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के बहुत ही करीब आ जाता है जिस वजह से चांद की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है।