श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी को माँ महागौरी की आराधना-उपासना का विधान है। माँ की शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। माँ की उपासना से भक्तों को सभी क्लेश धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं जाते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।
माँ महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।
दुर्गा अष्टमी का व्रत शारदीय नवरात्रि की अष्टमी यानि आश्विन शुक्ल अष्टमी तिथि को रखा जाता है। पंचांग के अनुसार इस साल आश्विन शुक्ल अष्टमी तिथि 21 अक्टूबर शनिवार को रात 9:53 बजे से शुरू हो रही है और 22 अक्टूबर रविवार को शाम 7:58 बजे तक रहेगी। उदयातिथि के आधार पर दुर्गा अष्टमी रविवार 22 अक्टूबर को है।
22 अक्टूबर को दुर्गा अष्टमी के दिन दो शुभ योग- रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहे हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग प्रात:काल सुबह 6:26 बजे से शाम 6:44 बजे तक रहेगा और रवि योग शाम 6:44 बजे से लेकर अगले दिन सुबह 6:27 बजे तक रहेगा।
रवि योग को किसी भी कार्य को सम्पन्न करने के लिए श्रेष्ठ योग माना जाता है। रवि योग को सूर्य की ऊर्जा से भरपूर और प्रभावशाली माना जाता है। इस योग में किया गया कार्य अनिष्ट की आंशका को नष्ट करके शुभ फल वरदान करता है। वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सर्वार्थ सिद्धि योग में व्यक्ति द्वारा किया गया काम हमेशा सफल होता है। दुर्गा अष्टमी पर इन दोनों योग में माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन, आराधना भक्तों के लिए कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। माँ महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती हैं।
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माँ महागौरी की उपासना से आर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। पुराणों में माँ महागौरी की महिमा को अपरम्पार बताया गया है। माँ मनुष्य की वृत्तियों को सत् की ओर प्रेरित करके असत् का विनाश करती हैं।
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥
स्तोत्र
सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥