भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि शनिवार 7 सितंबर को गणेश चतुर्थी से गणेशोत्सव का आरंभ हो चुका है। भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश का जन्मदिन होता है, इसलिए इस दिन गणेश चतुर्थी या भगवान गणेश का जन्मोत्सव मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी से दस दिवसीय गणेशोत्सव का आरंभ होता है और अंतिम दिवस यानी अनंत चतुर्दशी के दिन भक्तों द्वारा स्थापित भगवान भगवान गणेश की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है और भगवान श्रीहरि विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है।
अनंत चतुर्दशी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि सोमवार 16 सितंबर को दोपहर 3:10 बजे प्रारंभ होगी और चतुर्दशी तिथि का समापन मंगलवार 17 अगस्त को सुबह 11:44 बजे होगा। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार अनंत चतुर्दशी मंगलवार 17 सितंबर को मनाई जाएगी और भगवान गणेश की प्रतिमाओं का विसर्जन भी 17 सितंबर को किया जाएगा।
मंगलवार 17 सितंबर को अनंत चतुर्दशी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6:06 बजे से सुबह 11:44 बजे तक है। अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु के अनंत स्वरूप की भी पूजा की जाती है। पंचांग के अनुसार इस वर्ष अनंत चतुर्दशी के दिन रवि योग बन रहा है। रवि योग सुबह 6:07 बजे दोपहर 1:53 बजे तक रहेगा। रवि योग में ही अनंत चतुर्दशी की पूजा होगी। मान्यता है कि रवि योग में पूजा करने से सभी प्रकार के दोष मिट जात हैं, क्योंकि इसमें सूर्य का प्रभाव अधिक होता है। अनंत चतुर्दशी पर धृति योग प्रात:काल से लेकर सुबह 7:48 बजे तक है। उसके बाद शूल योग प्रारंभ होगा, जो 18 सितंबर को प्रात: 3:41 बजे तक रहेगा। अनंत चतुर्दशी पर शतभिषा नक्षत्र सुबह से दोपहर 1:53 मिनट तक है, उसके बाद पूर्व भाद्रपद नक्षत्र है।
अनंत चतुर्दशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है क्योंकि अनंत चतुर्दशी के दिन प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता भगवान गणेश के अलावा भगवान श्रीहरि विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन भक्त पूजन के बाद दाएं हाथ में 14 गांठ वाला अनंत धागा या रक्षा सूत्र बांधते हैं। इन 14 गांठों को 14 लोकों के साथ जोड़ कर देखा जाता है और इस पूजा को अनंत फल देने वाला माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार अनंत धागे से व्यक्ति सुरक्षित रहता है, उसे किसी चीज का भय नहीं रहता है। भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा से उसे जीवन के अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसे वैकुंठ में स्थान प्राप्त होता है।