Friday, December 27, 2024
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2025 में कब है पौष पूर्णिमा? जानिए सही तिथि और स्नान-दान का महत्व

हिन्दू धर्म में पौष मास को भगवान सूर्य को समर्पित माना गया है, पौष मास में भगवान विष्णु की आराधना का भी विशेष महत्व है। सनातन मान्यता के अनुसार पौष मास में आने वाली पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस माह में आने वाली पूर्णिमा को पौष पूर्णिमा कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास खत्म होते ही पौष या पूस मास शुरू होता है, जो हिंदू कैलेंडर का दसवां महीना है।

हिंदू पंचांग के अनुसार पौष मास की पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ सोमवार 13 जनवरी 2025 को सुबह 5:03 बजे होगा और पूर्णिमा तिथि का सम्मान मंगलवार 14 जनवरी 2025 को तड़के 3:56 बजे होगा। उदयातिथि के अनुसार पौष पूर्णिमा का व्रत और स्नान-दान सोमवार 13 जनवरी 2025 को किया जाएगा। इस वर्ष सोमवार 16 दिसंबर 2024 से पौष मास शुरू हो रहा है, जो सोमवार 13 जनवरी 2025 को समाप्त होगा। पौष मास की पूर्णिमा तिथि सोमवार 13 जनवरी 2025 को होगी। मान्यता के अनुसार पौष मास की पूर्णिमा के निमित्त स्नान और दान सोमवार 13 जनवरी 2025 को किया जाएगा। पौष पूर्णिमा का दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान और अनुष्ठान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

पौष पूर्णिमा के दिन किए गए धार्मिक कार्य का फल कई गुणा अधिक प्राप्त होता है। इसके साथ ही मान्यता यह भी है कि इस दिन वाराणसी के दशाश्वमेध घाट और प्रयाग के त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान अत्यधिक शुभ होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार पौष पूर्णिमा के दिन किये गये दान-पुण्य आदि कर्म सरलता से फलीभूत होते हैं। ये भी मान्यता है कि पौष पूर्णिमा के दिन पवित्र डुबकी लगाने से मनुष्य को जीवन-मरण के अनवरत चक्र से मुक्ति मिलती है। पौष पूर्णिमा के दिन शाकम्भरी जयन्ती भी मनायी जाती है।

पौष पूर्णिमा पर शुभ मुहूर्त में गंगा स्नान के बाद साथ-सुथरे वस्त्र धारण करें. इसके बाद सबसे पहले सूर्य देव को जल अर्पित करें। सूर्य देव को जल चढ़ाते समय ‘ॐ श्रीसवितृ सूर्य नारायणाय नमः’, ‘ऊँ हीं ह्रीं सूर्याय नम:’ या ‘ॐ आदित्याय नमः’ मंत्र का जाप करें। सूर्य देवता को जल अर्पित करने के लिए उगते हुए सूर्य की ओर मुख करके खड़े होकर जल में तिल मिलाकर उन्हें अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। भगवान विष्णु की पूजा के दौरान उन्हें जल, अक्षत, तिल, रोली, चंदन, फूल, फल, पंचगव्य, सुपारी, दूर्वा इत्यादि पूजन सामग्री अर्पित करें। पूजा के अंत में भगवान विष्णु की आरती करें। इस दिन किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देनी चाहिए। दान में तिल, गुड़, कंबल और ऊनी वस्त्र विशेष रूप से देने चाहिए।

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