Gangaur Puja 2025: गणगौर व्रत को सौभाग्य तृतीया के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सुहागिन स्त्री अपने पति की लंबी उम्र और सुख-सौभाग्य के लिए व्रत करती हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्यतः हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न प्रांतों में मनाया जाता है। ब्रज में भी यह त्यौहार अत्यन्त लोकप्रिय है।
गणगौर पूजा के दिन अविवाहित कन्यायें एवं विवाहित स्त्रियाँ भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा करती हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार पूर्ण श्रद्धाभाव से इस व्रत का पालन करने से अविवाहित कन्याओं को इच्छित वर की प्राप्ति होती है तथा विवाहित स्त्रियों के पति दीर्घायु एवं आरोग्यवान होते हैं। गणगौर पूजन में महिलायें बालू अथवा मिट्टी की गौरा जी का निर्माण करके उनका सम्पूर्ण श्रृंगार करती हैं। तत्पश्चात उनका विधि-विधान से पूजा करती हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष गणगौर तीज का व्रत सोमवार 31 मार्च 2025 को रखा जाएगा। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का प्रारम्भ सोमवार 31 मार्च 2025 को सुबह 9:11 बजे होगा और तृतीया तिथि का समापन मंगलवार 1 अप्रैल 2025 को सुबह 5:42 बजे होगा।
गणगौर तीज के दिन ही भगवान शिव ने माता पार्वती और पार्वती ने महिलाओं को सौभाग्यवती का वरदान दिया था। इस दिन का खास महत्व है। सुहागिनें व्रत धारण से पहले रेणुका (मिट्टी) की गौरी की स्थापना करती हैं और उनका पूजन किया जाता है।
गणगौर व्रत कथा
पुरातन काल में चैत्र माह की शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि के दिन माता पार्वती भगवान शिव से आज्ञा लेकर नदी में स्नान हेतु गयीं। स्नान के पश्चात माता पार्वती ने बालू से पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर उनका विधि-विधान से पूजन किया। पूजन के दौरान माता पार्वती ने बालू से निर्मित पदार्थों का ही भोग लगाया तथा उन्हीं में से दो कणों का प्रसाद ग्रहण किया। अन्त में प्रदक्षिणा आदि कर पूजन सम्पन्न किया।
देवी पार्वती के श्रद्धापूर्वक पूजन से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ उस पार्थिव शिवलिंग से प्रकट हुये तथा माता पार्वती को वरदान देते हुये बोले कि आज के दिन जो भी स्त्री मेरा पूजन तथा तुम्हारा व्रत करेगी, उसका पति चिरंजीवी एवं दीर्घायु होगा तथा सुखी जीवन व्यतीत कर अंत में मोक्ष को प्राप्त होगा। माता पार्वती को यह वर प्रदान कर भगवान शिव वहाँ से अंतर्ध्यान हो गये।
पार्थिव शिवलिंग का पूजन सम्पन्न करते हुये लौटने में देवी पार्वती को बहुत विलम्ब हो गया। माता पार्वती नदी से लौटकर भगवान शिव के समक्ष आयीं, वहाँ देवर्षि नारद भी उपस्थित थे। भगवान शिव ने देवी पार्वती से उनके विलम्ब से आने का कारण पूछा। भगवान शिव के प्रश्न करने पर माता पार्वती कहा कि नदी के तट पर मुझे मेरे भाई-भौजाई आदि कुटुम्बीजन मिल गये थे। वह मुझसे दूध-भात ग्रहण करने तथा विश्राम करने का हठपूर्वक आग्रह करने लगे। उनका आग्रह स्वीकार कर में वही प्रसाद ग्रहण करके आ रही हूँ।
भगवान शिव लीला करने हेतु कहते हैं कि मुझे भी दूध-भात भोग ग्रहण करना है तथा भगवान शिव नदी के तट की ओर चल दिये। माता पार्वती मन ही मन भगवान शिव से प्रार्थना करने लगीं, हे भोलेनाथ! यदि मैं आपकी अनन्य पतिव्रता हूँ तो इस समय मेरी लाज रख लीजिये नाथ! मेरे वचनों की रक्षा कीजिये प्रभु!
माता पार्वती मन ही मन इस अन्तर्द्वन्द में उलझी भगवान शिव के पीछे-पीछे ही चल रही थीं कि नदी के तट पर उन्हें विशाल एवं भव्य महल दिखायी दिया। महल में प्रवेश करने पर माता पार्वती के भाई-भौजाई आदि सभी कुटुम्ब सहित वहाँ उपस्थित थे। उन सभी ने भगवान शिव का भव्य रूप से स्वागत-सत्कार किया तथा नाना प्रकार से उनकी स्तुति करने लगे। उनकी आवभगत से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दो दिवस तक उस महल में निवास किया। तब तीसरे दिन माता पार्वती, भगवान शिव से प्रस्थान करने हेतु आग्रह करने लगीं। किन्तु भगवान शिव अधिक समय उस महल में निवास करना चाहते थे। अतः माता पार्वती ने अकेले ही वहाँ से प्रस्थान कर दिया। अन्ततः भगवान शिव भी देवर्षि नारद सहित माता पार्वती के पीछे-पीछे चल दिये।
चलते-चलते बहुत दूर आ जाने पर भगवान शिव को अकस्मात स्मरण हुआ कि वह अपनी माला तो ससुराल में ही भूल आये हैं। यह सुनकर माता पार्वती तुरन्त ही माला लेने के लिये जाने लगीं, किन्तु भगवान शिव ने उन्हें रोकते हुये देवर्षि नारद को माला लाने की आज्ञा दी। देवर्षि नारद ने नदी के तट पर पहुँचने के उपरान्त देखा कि वहाँ पर तो कोई महल ही नहीं है। अपितु उस स्थान पर एक सघन वन है, जिसमें नाना प्रकार के हिंसक पशु, जीव-जन्तु आदि विचरण कर रहे हैं। यह भीषण दृश्य देखकर देवर्षि नारद अचरज में पड़ गये तथा विचार करने लगे कि कहीं वह किसी अन्य स्थान पर तो नहीं आ गये। किन्तु भगवान शिव की लीला से उस स्थान पर भीषण बिजली कौंधी, जिसके देवर्षि नारद को एक वृक्ष पर भगवान शिव की माला लटकी हुयी दिखायी दी। देवर्षि उस माला को लेकर भगवान शिव के समक्ष उपस्थित हुये तथा आश्चर्यपूर्वक सम्पूर्ण वृत्तान्त भगवान शिव को कह सुनाया।
देवर्षि नारद ने भगवान शिव से कहा- हे भोलेनाथ! यह आपकी कैसी विचित्र लीला है? उस स्थान पर न तो वह भव्य महल है और ना ही माता पार्वती के कुटुम्बीजन। अपितु वह स्थान तो हिंसक पशुओं से युक्त एक घनघोर वन में परिवर्तित हो चुका है। हे लीलाधर! कृपया मेरे मेरे आश्चर्य का निवारण करें।
देवर्षि नारद को आश्चर्यचकित अवस्था में देख भगवान शिव मन्द-मन्द मुस्कुराते हुये बोले, हे देवर्षि! यह मेरा कार्य नहीं है, यह तो देवी पार्वती की मायावी लीला है, जिसने आपको अचरज में डाल दिया है। देवी पार्वती अपनी पार्थिव शिवलिंग पूजन को गोपनीय रखना चाहती थीं, इसीलिये उन्होंने सत्य छुपाया। भगवान शिव के वचनों को सुनकर माता पार्वती ने कहा, हे स्वामी! मैं किस योग्य हूँ? यह तो आपकी ही कृपादृष्टि का ही फल है।
भगवान शिव एवं देवी पार्वती की लीला को देखकर देवर्षि नारद बोले, हे माते! जगतजननी! आप पतिव्रताओं में सर्वोच्च हैं। आपके पतिव्रत के प्रभाव से ही यह लीला सम्पन्न हुयी है। सांसारिक स्त्रियों को आपके स्मरण मात्र से अटल सौभाग्य की प्राप्ति होती है। आपसे ही समस्त सिद्धियाँ उत्पन्न होती हैं तथा आप में ही विलीन हो जाती हैं। अतः आपके लिये यह लीला रचना क्षण भर का ही कार्य है। हे माँ! गुप्त पूजन साधारण पूजन से अधिक फलदायी एवं प्रभावशाली होता है। अतः मैं यह आशीष प्रदान करता हूँ कि जो भी स्त्रियाँ गुप्त रूप से पति की पूजा अर्चना करके उनके निमित्त मंगलकामना करेंगी, भगवान शिव की कृपा से उन्हें दीर्घायु एवं उत्तम पति-पुत्रादि की प्राप्ति होगी।