खग्रास चंद्रग्रहण की पौराणिक मान्यताओं के साथ पढ़ें आधुनिक वैज्ञानिक विश्लेषण

पं अनिल कुमार पाण्डेय
प्रश्न कुंडली एवं वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ
साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया
सागर, मध्य प्रदेश- 470004
व्हाट्सएप- 8959594400

इस वर्ष 28 एवं 29 अक्टूबर अर्थात अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णमासी को खंड चंद्र ग्रहण लग रहा है। भारतीय समय के अनुसार ग्रहण का प्रारंभ रात्रि में 1:05 बजे मध्य से रात्रि 1:44 बजे तक तथा मोक्ष 2:30 रात्रि पर होगा। यह खग्रास चंद्रग्रहण ऑस्ट्रेलिया जापान कोरिया रूस अटलांटिक महासागर हिंद महासागर पश्चिमी और दक्षिणी प्रशांत महासागर अफ्रीका यूरोप एशिया और दक्षिण अमेरिका की के पूर्वी उत्तरी भाग आदि से भी देखा जा सकेगा।

ज्योतिष के अनुसार ग्रहण के समय चंद्रमा अश्वनी नक्षत्र एवं मेष राशि में रहेगा। मिथुन, कर्क, वृश्चिक, धनु एवं कुंभ राशि के लिए यह ग्रहण शुभ, सिंह तुला और मीन राशि के लिए मिश्रित फलदाई है तथा मेष, वृष, कन्या और मकर राशि के लिए अशुभ फलदाई है।

एक बात हम और जान ले कि सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या के दिन तथा चंद्र ग्रहण हमेशा पूर्णमासी को लगता है।

हम सबसे पहले ग्रहण के आधुनिक मत की चर्चा करेंगे। हम सभी जानते हैं कि सौर मंडल के पृथ्वी समेत सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर काटते हैं। चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। अतः यह पृथ्वी के चारों ओर चक्कर काटता है। इस दौरान आधुनिक विज्ञान के अनुसार एक समय ऐसा आता है जब सूर्य पृथ्वी और चंद्रमा तीनों एक लाइन में होते हैं तथा पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है। जिसके कारण सूर्य की किरणों चंद्रमा पर नहीं पहुंच पाती है और चंद्रमा दिखाई देना बंद हो जाता है। इसी क्रिया को पूर्ण चंद्रग्रहण कहते हैं। कई बार चंद्रमा का कुछ हिस्सा तो नहीं दिखाई देता है, परंतु कुछ हिस्सा दिखाई देता है ऐसे ग्रहण को खग्रास ग्रहण कहते हैं। जैसा कि 28 एवं 29 अक्टूबर 2023 को होगा।

आपको मैं यह भी बताना चाहूंगा की खगोल शास्त्रियों नें गणित से निश्चित किया है कि 18 वर्ष 18 दिन की समयावधि में 41 सूर्य ग्रहण और 29 चन्द्रग्रहण होते हैं। एक वर्ष में अधिकतम 5 सूर्यग्रहण तथा 2 चन्द्रग्रहण तक हो सकते हैं।

अब हम पारंपरिक पौराणिक मान्यता के संबंध में चर्चा करेंगे। मत्स्य पुराण और स्कंद पुराण  में देव और दानवों के द्वारा समुद्र मंथन का उल्लेख आता है। मत्स्य पुराण के 291 अध्याय के श्लोक क्रमांक 1 से 15 के बीच में देवता बनकर अमृत पी रहे राहु के सिर को काटे जाने का उल्लेख मिलता है।

इस कथानुसार समुद्र मंथन के दौरान अंत में भगवान धन्वंतरि अपने कमंडल में अमृत लेकर प्रकट हुए और इस अमृतपान को लेकर देवों और दानवों के बीच विवाद हुआ। इसको सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग लाइन में बिठा दिया। लेकिन राहु छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान कर लिया। देवों की लाइन में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने राहू को ऐसा करते हुए देख लिया। इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहू का सर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन राहू ने अमृत पान किया हुआ था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सर वाला भाग राहू और धड़ वाला भाग केतू के नाम से जाना गया। इसी कारण राहू और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को ग्रस लेते हैं। इसलिए चंद्र ग्रहण होता है।

उपरोक्त बातें पुराणों में लिखी है परंतु कब लिखी गई है इसका पता नहीं है। संभवत यह पुराणों में मुगल काल में हुए बदलाव के दौरान लिखी गई हैं। आधुनिक विज्ञान के अनुसार हम जानते हैं कि यह सब कपोल कल्पना है।

मुस्लिम धर्म ग्रंथों में भी ग्रहण का उल्लेख मिलता है। हदीस में कहा गया है कि जब भी सूरज और चांद ग्रहण लगे तो घर में रहो, नमाज पढ़ो और दुआ करते रहो। यह भी कहा गया है कि यह ग्रहण खुदा द्वारा अपनी ताकत बताये जाने के लिए किया जाता है। ऐसा बुखारी साहब ने अपने हदीस के खंड 2 में तथा पैरा 1240 में लिखा है।

ईसाई धर्म में चंद्र ग्रहण को ईश्वर के गुस्से का प्रतीक बताया है।

हिंदू धर्म के मूल ग्रंथ वेद में भी ग्रहण के बारे में उल्लेख है। वैदिक काल के ऋषि अत्री ग्रहण विज्ञान के पहले शोधकर्ता ऋषि थे। ऋषि अत्री ने ही सर्वप्रथम ग्रहण के बारे में वेदों में अपनी ऋचाएं लिखी हैं। ऋग्वेद के पांचवें मंडल के 40वें सूक्त में बताया गया है ऋषि अत्री ने देवताओं को ग्रहण से मुक्ति दिलाई अर्थात उन्होंने देवताओं को ग्रहण से मुक्ति के समय को गणना कर बताया।

ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में राहु और केतु का उल्लेख नहीं है । लेकिन अथर्ववेद में केतु का उल्लेख मिलता है। केतु का स्वरूप पुच्छल तारे से मिलता जुलता है।

महाभारत की जयद्रथ वध कथा में सूर्य ग्रहण का उल्लेख मिलता है।

यह चंद्र ग्रहण मेष राशि पर लग रहा है। अतः सबसे ज्यादा असर मेष राशि पर ही होगा।

चंद्र ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को घर से निकलना वर्जित है। इसका कारण संभवत यह है कि उस समय निकलने वाली किरणें बच्चे के ऊपर खराब असर डाल सकती हैं। चंद्र ग्रहण का असर पशु पक्षियों पर भी पड़ता है और वे इस समय अजीब अजीब व्यवहार करते हैं। जैसे ग्रहण के दौरान मकड़िया अपने जाले को तोड़ना प्रारंभ कर देती है तथा ग्रहण समाप्त होते ही फिर से बनाना प्रारंभ कर देती है। पक्षी अचानक अपने घोसले की तरफ लौटने लगते हैं।

अंत में मैं कहना चाहूंगा कि चंद्र ग्रहण एवं सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना है और उससे निकलने वाले रश्मियों का असर मानव एवं पशु पक्षी पर पड़ता है। परंतु इतना नहीं होता है कि उससे हमको डरना चाहिए। हां आवश्यक सावधानियां लेना चाहिए।