आज देवउठनी एकादशी है, इसे देवोत्थान या प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्व है। इस एकादशी पर व्रत करने से बैकुंठ की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि आज ही के दिन भगवान विष्णु निंद्रा से जागते हैं और मांगलिक कार्यों का आरंभ होता है। सभी देवों ने भगवान विष्णु को चार मास की योग निद्रा से जगाने के लिए घंटा, शंख, मृदंग आदि की मांगलिक ध्वनि के साथ श्लोकों का उच्चारण किया था। कार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है, यह दीपावली के बाद आती है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवता शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन देवता उठते हैं, इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं, इसीलिए देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं।
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है। चूंकि तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं, इसलिए जब देवता जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। तुलसी विवाह का अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त कर सकते हैं।