इन्द्रधनुषी रंगोत्सव होली- चन्द्र प्रभा सूद

होली एक सामाजिक त्योहार है जो समाज भाईचारे का संदेश देता है, एकजुट होकर रहने की प्रेरणा देता है। अपनेपन की आज हमें बहुत जरूरत है। हम सब कुछ भूलकर बस अपनी-अपनी दुनिया में खोए रहना पसंद करते हैं। हमें अपने व्यक्तिगत जीवन में किसी की ताक झाँक बिल्कुल पसन्द नहीं है। यह त्योहार हमें मिल-जुल कर रहने की शिक्षा देता है। सदियों से लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाकर गले मिलते हैं। यह परम्परा मनोमालिन्य को दूर करती है व सबको एकसूत्र में बाँधने का कार्य करती है।
कुछ दशक पूर्व तक एक सप्ताह पहले से ही इस त्योहार को बच्चे मनाना शुरू कर देते थे। शहरों में यह त्योहार अब केवल रंग खेलने तक ही सीमित रह गया है परन्तु ग्रामीण इलाकों में आज भी उसी उल्लास से इस त्योहार को मनाया जाता है।
वसन्त ऋतु में चारों ओर रंग-बिरंगे फूल अपनी छटा बिखेरते हैं। यह समय हवा में भी फूलों की सुगंध फैलती है। हवा सुगंधित व शीतल होती है। ठण्ड का प्रकोप भी कम होने लगता है। ऐसे खुशगवार मौसम में त्योहार मनाने की मस्ती छा जाती है। होली का नाम लेते ही मस्तिष्क में रंग-रंगीले रंगों का चित्र उभर आता है। इस उत्सव के विषय मेंआँखों के समक्ष मानो एक रील-सी चलने लगती है। सदियों से ही यह त्यौहार वसन्त ऋतु में मनाया जाता है। फाल्गुण के महीने में इस त्यौहार को मनाने के पीछे एक कारण है। इस समय प्राकृतिक शोभा निहारते ही बनती है। विविध प्रकार के खिले हुए फूल चारों ओर अपनी सुगन्ध और छटा बिखेरते हैं।यदि फूलों के अर्क से होली खेली जाए तो हर व्यक्ति खुशबू से सराबोर हो जाएगा।
रंगों से होली खेलने से पूर्व रात्रि को पारंपरिक होलिका दहन किया जाता है जिसके फेरे लेकर मनोकामना पूर्ण करने का विधान है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। न जलने का वरदान प्राप्त बुआ होलिका जब परम ईश्वर भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर बैठती है तब वह जल जाती है और प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं होता। होलिका दहन करते समय अपने मन में उठने वाले कुविचारों और वैमनस्य की आहुति दे देनी चाहिए। इससे मन के विकार दूर होते हैं और मनुष्य को शान्ति मिलती है। दूसरों के प्रति जाने-अनजाने किए गए अपराधों के लिए की गई क्षमा याचना किसी महान कार्य की सफलता से कमतर नहीं होती। इस प्रयास की पहल मनुष्य को दूसरों से अलग करते हुए एक नई पहचान देती है।
तान्त्रिक लोग इस पर्व पर विशेष पूजा का विधान करते हैं। इन दिनों तन्त्र-मन्त्र का प्रयोग करने लोग नहीं चूकते। होली के त्योहार से लगभग पन्द्रह दिन पहले व एक सप्ताह बाद तक कोई भी शुभकार्य सम्पन्न नहीं किया जाता।
इस दिन कुछ लोग भाँग पीते हैं और कुछ शराब। ऐसा करके वे त्योहार के दिन रंग में भंग डालते हैं। हुड़दंग मचाने से त्योहार की गरिमा नष्ट होती है। इससे बचना हमारा नैतिक दायित्व है। इसके अतिरिक्त लोग पक्के रंगों से खेलते हैं जो साबुन रगड़ कर भी नहीं उतरता बल्कि कई दिनों तक त्योहार की याद ताजा करता है। कुछ लोग कीचड़ आदि से खेलते हैं जो गलत है। लोग टोलियों में घर से बाहर निकलकर त्योहार का लुत्फ उठाते हैं। बच्चे विभिन्न प्रकार की रंग-बिरंगी पिचकारियों व रंग या पानी भरे गुब्बारे फैंककर खुशी प्रकट करते हैं।
ईको फ्रेंडली रंगों से अथवा रंगबिरंगे सुगन्धित फूलों से ही होली खेलनी चाहिए। गन्दगी को हमेशा ही नजरअन्दाज करना चाहिए। वातावरण को दूषित न करके हमें बजाय आनन्द से सराबोर होना चाहिए। जोर-जोर से बजने वाले ढोल-डमाके इस त्योहार की रौनक में चार चाँद लगाते हैं।
बरसाने की लट्ठमार होली भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में भी प्रसिद्ध है। आजकल टीवी इसकी कवरेज करता है। बहुत से ऐसे लोग हैं जो विशेष रूप से बरसाने जाकर इस उत्सव के दर्शक बनते हैं और वहाँ अपनी उपस्थिति को दर्ज करवाते हैं।
घरों में अनेक प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं जिन्हें खाकर सभी लोग उत्साहित होते हैं तथा मित्रों-संबंधियों को दावत भी देते हैं। होली के इस पावन त्योहार पर अपने अंतस् की बुराइयों को दहन करना चाहिए और इसमें होने वाली बुराइयों को यदि हम दूर कर सकें तभी इस त्योहार की सार्थकता है।