एक अहम सवाल- प्रमोद निराला

थाह लिया है हमने
सागर की अतल/गहराईयों को
चूम लिया है हमने
व्योम की अलभ्य/ऊंचाईयों को

बनाकर पनडुब्बी/बना लिया है
पानी के भीतर भी/डगर
बनाकर जहाज/बसा लिया है
पानी के ऊपर भी/शहर

बनाकर विमान/भर ली है उड़ान
कर ली है बात/हवाओं से भी
बनाकर उपग्रह/पसार दिया है पाँव
अंतरिक्ष में/चाँद और मंगल पर भी

बना डाला हमने/मौत का फरिश्ता
कोबरे की जीभ-सा/मिसाइल बम
पलक झपकते/सृष्टि को लीलने वाला
अणुबम/परमाणु बम/ओजोन बम

फूला नहीं समाता/सोचता हूँ
महारत है/टेढी खीर सुलझाने में
सीना तान खड़े/पर्वत-श्रृंखलाओं के
फन पर रख कदम/किल्लोल करने में

लगा दिया हमने/सारा दिमाग
सारी शक्ति/अभीष्ट को पाने में
समझ से परे/असंभव को भी
विवेक से/संभव कर दिखलाने में

समस्याएँ जब भी ललकारा
हमने अपना विवेक लगाया
लगाकर दिमाग/अपनी शक्ति
अपना विवेक/उसे धूल चटाया

समझ नहीं आता/पता नहीं क्यों?
सुलझा नहीं पाए हैं/आजतक
निहायत आसान/सरल/नाचीज-सा
एक अहम सवाल/अभी तक

और वह है/हमारी अपनी ही
संकीर्ण मनोवृत्ति/काफिरता
गंदी सोच/धर्मान्धता/निष्ठुरता
पाश्विकता/कट्टरता से संबंधित?

-प्रमोद निराला
(सौजन्य साहित्य किरण मंच)