कवि की हर वो परिस्थिति जो उसे स्पंदित करे, कविता हो जाती है- डॉ भावना

डॉ भावना सिर्फ बिहार ही नहीं आज देश की जानी-मानी कवयित्री हैं। उनका लेखन उनके पाठकों को खासा प्रभावित करता है। उनकी रचनाएं देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं प्रकाशित हो चुकी हैं। आइए पढ़ते हैं डॉ भावना से राजीव कुमार झा की बातचीत…

प्रश्न- भावना जी आप बिहार की प्रतिष्ठित और साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित कवयित्री हैं, आप अपने साहित्यिक लेखन के बारे में बताएं?
उत्तर- किसी भी रचनाकार का लेखन पहले निजी अनुभवों का गुलदस्ता होता है। सबसे पहले वह डायरी के पन्नों पर लिखता है। लिखते हुए रोता, हँसता और गाता है। कहते हैं कवि का रूदन ही उसका काव्य हो जाता है। पर मैं उसमें कुछ जोड़ते हुए यह कहना चाहूंगी कि कवि की हर वो परिस्थिति जो उसे स्पंदित करे, कविता हो जाती है।
मैंने अपना लेखन नवीं कक्षा से ही शुरू कर दिया था। पर वे रचनाएँ डायरी के पन्नों में ही सिमटी रहीं। डर से किसी को बताया नहीं।महाविद्यालय में पहुँचने पर अपनी रचनाएँ विभिन्न पत्रिकाओं में छपने के लिए भेजने लगी। मेरी पहली रचना पद्मगंधा में, जो शिवहर से निकलती है, छपी थी। इसके बाद स्वाति पथ ,धनबाद, कादम्बिनी, नई दिल्ली इत्यादि।बाद के दिनों में मुख्य धारा की सभी पत्र-पत्रिकाओं मसलन हंस, साहित्य अकादमी की पत्रिका समकालीन भारतीय साहित्य, वागर्थ, नया ज्ञानोदय, पाखी, हरिगंधा, काकसाड, अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका विभोम स्वर, समहुत, गीत गागर, अक्सर, अनभै, नई धारा, बेला, छपते-छपते, कौशिकी, बया, समहुत, सुसंभाव्य इत्यादि। पत्र की बात करूँ तो प्रभात ख़बर, दैनिक भास्कर, हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, अहा जिन्दगी इत्यादि में कविताएँ, ग़ज़लें, समीक्षाएं एवं आलेख आये हैं। मेरी कई कविताओं का अनुवाद अलग-अलग भाषाओं में भी हुआ है।
ईमानदारी से कहूँ तो, मेरे लिए& लेखन पहले शौक था,अब जीवन है। कुछ दिनों तक नहीं लिखने पर बेचैनी होने लगती है। यही बेचैनी मेरे लेखन का हथियार है।

प्रश्न- आपको ग़ज़ल लेखन के लिए पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। ग़ज़ल लेखन की ओर अपने झुकाव के बारे में बताएं और इस काव्य रूप के लेखन के परंपरागत प्रचलन के साथ आने वाले बदलावों के बारे में बताएं? ग़ज़ल लिखने वालों में आपको कौन-कौन रचनाकार प्रिय हैं?
उत्तर- बढ़िया सवाल है आपका, यह सही है कि मुझे ग़ज़ल लेखन के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिसमें अंबिका प्रसाद दिव्य अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार, दुष्यंत कुमार रजत स्मृति सम्मान, लिच्छवी महोत्सव सम्मान इत्यादि प्रमुख हैं। जैसा कि मैंने पहले ही बताया है कि मैं बचपन से ही तुकबंदियां करती थी, पर ग़ज़ल का व्याकरण पता नहीं था। इसलिए कुछ गीत और दोहे लिखे। फिर छंद मुक्त कविताएँ भी लिखी। काव्य की लगभग सभी विधाओं में लिखते हुए अवचेतन में कहीं ग़ज़ल हिलोरे ले रही थी। ग़ालिब, मीर, फ़ैज, फिराक गोरखपुरी, अमीर खुसरो,कबीर, भारतेंदु हरिश्चन्द्र, जयशंकर प्रसाद, जानकीवल्ल्भ शास्त्री, त्रिलोचन, शमशेर बहादुर सिंह,दुष्यंत से लेकर आजतक के ग़ज़लकारों को पढ़ती रहती हूँ। दुष्यंत ने ग़ज़ल को नया आयाम दिया। उन्होंने समाज के भीतर की बेचैनी, सियासत की कुटिलता की वज़ह से उपजा आक्रोश एवं उसकी पीड़ा बड़ी ही खूबसूरती से अभिव्यक्त किया। यही कारण है कि दुष्यंत आज भी सर्वाधिक लोकप्रिय ग़ज़लकार हैं। आज की ग़ज़लों की अगर बात करें तो मुझे यह कहने में बिल्कुल संकोच नहीं कि अब ग़ज़ल अपने कहन, बिम्ब एवं अलग मुहावरे के साथ हिन्दी में लिखी जा रही है। हिन्दी ग़ज़ल से मेरा अभिप्राय ऐसी ग़ज़लों से है जिनकी प्रकृति पूर्ण रूप से हिन्दी से मिलती हो। जिसे पढ़ते हुए आप हिन्दी कविता के उत्कृष्ट स्वरूप का अनुभव कर सकें। ग़ज़ल का मुख्य आकर्षण कम शब्दों में गहरी बात कहना ही तो है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो, ग़ज़ल का प्रत्येक शेर एक कविता है। एक ऐसी कविता जो भीतर तक जाकर दिलों के तार को स्पंदित करे और जुबान पर चढ़ जाये। यही हिन्दी ग़ज़ल की ताकत है और इसी के बल पर यह न केवल पत्र -पत्रिका बल्कि पाठकों की पहली पसंद बन कर उभरी है।
स्पष्ट शब्दों में कहूँ, तो आज की ग़ज़लें परंपरागत ग़ज़लों से बिल्कुल भिन्न है और यह भिन्नता सिर्फ कहन के स्तर पर है। इसके अरूज या व्याकरण में कोई तब्दीली नहीं हुई है।
आज के मेरे प्रिय ग़ज़लकारों की मैं बात करूँ तो अनिरुद्ध सिन्हा, दरवेश भारती, जहीर कुरेशी, हरेराम समीप, दिनेश प्रभात इत्यादि कई नाम हैं ।

प्रश्न- हिंदी में नारी लेखन की धारा से जुड़े रचनाकारों की भी अब विशिष्ट पहचान उजागर हुई है। समकालीन हिन्दी लेखन में नारीवादी साहित्य के अवदान को रेखांकित करें?
उत्तर- सबसे पहले मैं स्पष्ट कर दूं लेखन सिर्फ लेखन होता है। नारी लेखन और पुरूष लेखन का कोई औचित्य कम से कम मेरी नज़र में तो नहीं है। अगर आपका अभिप्राय नारी या पुरूष द्वारा किये गये लेखन से है तो मैं कहना चाहूंगी कि दोनों अपने-अपने नजरिये से लिख रहे हैं। एक स्त्री, स्त्री जीवन की विडंबनाओं से हमेशा दो चार होती है। उसे पता है कि कैसे वह एक बच्चे को जन्म देती है, उसे दूध पिलाती तथा उसी की नींद सोती और जगती है। कैसे एक स्त्री अपने घर-परिवार की जिम्मेदारियां निभाते हुए नौकरी में भी अपना सौ प्रतिशत देती है। अगर वही स्त्री एक लेखक भी हो तब उसका जीवन कैसा होगा? आप केवल महसूस कर सकते हैं कि उसे कितनी परेशानी होती होगी। उसके पास भी वही चौबीस घंटे हैं, जो सबके पास होता है।

प्रश्न- हिन्दी में नारी लेखन की धारा से जुड़े रचनाकारों की अब विशिष्ट पहचान उजागर हुई है। समकालीन हिन्दी लेखन में नारीवादी साहित्य के अवदान को रेखांकित करें?
उत्तर- समकालीन हिन्दी लेखन में अगर नारीवादी साहित्य के अवदान की बात करूँ तो इसकी संख्या बहुत बड़ी है। स्त्री सृष्टि के केन्द्र में है। अतः स्वाभाविक है कि अधिकांश साहित्य सृजन के केन्द्र में स्त्री प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में रहती है। दरअसल नारीवादी साहित्य दो तरह के होते हैं। एक वह जो नारी द्वारा नारी के लिए सृजित हो दूसरा वह जो पुरूष द्वारा भावनात्मक रूप से परकाया प्रवेश के द्वारा सृजित हो। हालांकि दोनों में बहुत अंतर है, जिसे आप स्वयं महसूस कर सकते हैं।

प्रश्न- आप अपनी वेब साहित्यिक पत्रिका आँच के बारे में बताएँ?
उत्तर- आँच हमारी साहित्यिक वेब पत्रिका है ।जिसका उदेश्य उत्कृष्ट साहित्य चाहे वह वरिष्ठों अथवा युवाओं द्वारा सृजित हो उसे ससम्मान पाठकों तक पहुँचाना है। इसे हम निशुल्क हर महीने प्रकाशित करते हैं। इस पत्रिका का लिंक www.aanch.org है। इस पत्रिका में खास बात यह कि यह साहित्य की सभी विधाओं पर एक साथ काम करती है।इस पत्रिका में विशिष्ट कथाकार, विशिष्ट ग़ज़लकार, विशिष्ट गीतकार,विशिष्ट कवि, लघुकथा, पुस्तक समीक्षा, आलेख, बच्चों का कोना तथा ख़ास क़लम इत्यादि काॅलम हैं, जो पाठकों द्वारा बहुत पसंद किये जाते हैं।

प्रश्न- बिहार की समृद्ध लोक कला और संस्कृति के बारे में बताएँ?
उत्तर- मैं बिहार के एक शहर मुजफ्फरपुर से हूँ, जिसे बिहार की सांस्कृतिक राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। यहाँ की मिट्टी सांस्कृतिक चेतना से लबरेज़ है। लीची की खुशबू में डूबा ये शहर और इसके आसपास के गाॅव में सामा चकेवा, झीझीया, अकाल के दिनों में पानी मांगना, जर-जटिन आदि लोक नृत्य बहुत लोकप्रिय रहे हैं। मधुबनी पेंटिंग, कोहबर, स्वास्तिक वगैरह जैसी कला भी काफी लोकप्रिय हैं।

प्रश्न- आप बिहार की हैं। अपने घर परिवार शिक्षा और वर्तमान जीवन के बारे में बताएँ?
उत्तर- मेरा घर बिहार के मुजफ्फरपुर जिला अंतर्गत बलुआ, ढोली पूसा है, लेकिन मेरा बचपन ननिहाल शाही मीनापुर में गुजरा है।मेरी माँ डाॅ शांति कुमारी उन दिनों शाही मीनापुर में ही शिक्षिका थी। बाद में वो बालिका उच्च विद्यालय, शिवहर में पदस्थापित हुईं। जिसकी वज़ह से मेरी भी माध्यमिक स्तर की पढ़ाई शिवहर में हुई। इंटरमीडिएट, मंहथ दर्शन दास महिला महाविद्यालय, मुजफ्फरपुर, बीएससी आनर्स गोपेश्वर काॅलेज, हथुआ, गोपालगंज, पीजी, एलएस काॅलेज, मुजफ्फरपुर, पीएचडी बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर, इसके साथ मैंने एलएलबी तथा डीएनएचई की पढ़ाई भी की है। इस तरह मेरे पठन-पाठन का न केवल क्षेत्र बदलते रहे बल्कि अलग-अलग विषयों की भी शिक्षा हुई।
मेरे पिताजी स्व राम राज राय, पुलिस विभाग में कार्यरत थे। पति डाॅ अनिल कुमार चिकित्सक हैं जो विशेषज्ञ डाॅ (सर्जन) के रूप में शिवहर में पदस्थापित हैं। एक पुत्री है आद्या, जो अभी नवीं कक्षा में पढ़ती है।
फिलहाल मैं आरएसएस महाविद्यालय, चोचहाँ, मुजफ्फरपुर में रसायन शास्त्र विभाग में प्राध्यापिका हूँ । हमारा एक अस्पताल है, जिसका नाम आद्या हाॅस्पिटल है। यह मुजफ्फरपुर में अवस्थित है। मैं यहीं रहती हूँ ।

प्रश्न- आपने बिहार की बोली बज्जिका में भी काव्य लेखन किया है। बज्जिका भाषा और साहित्य के बारे में बताएं?
उत्तर- जी हाँ! मैंने बज्जिका जो कि उत्तर बिहार की एक प्रमुख भाषा है, में भी कविताएँ लिखी हैं। मेरा मानना है कि हम जिस बोली को सुनकर बड़े हुए हैं, वही बोली हमारे सृजन के लिए सबसे सशक्त भाषा होगी। हमने जब होश संभाला तो लोगों को बज्जिका में ही बोलते-बतियाते देखा। स्वाभाविक है कि हमारी संवेदना सबसे अधिक अपनी माटी की जुबान में ही निखरती है। मेरे लिए मेरी भाषा मेरी मां की तरह आदरणीय है।
महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने 1941 में ‘विशाल भारत’ में वैशाली गणतंत्र की बोली को ‘बज्जिका’ कहा था। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘पुरातत्व निबंधावली’ में मातृभाषा का महत्व शीर्षक निबंध में बज्जिका पर सविस्तार विचार किया है। बज्जिका की लिपि ‘कैथी’ है। दरअसल बज्जिका बज्जियों की भाषा है। बज्जी संघ की राजधानी वैशाली रही है जो बौद्ध, हिन्दू और जैन धर्म का संगम स्थल है। व्याकरण के पंडित पाणिनी ने ‘अष्टाध्यायी ‘में बज्जी शब्द का प्रयोग जनपद के अर्थ में किया है। अभी बज्जिका भाषा वैशाली, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, सीतामढी, शिवहर, पूर्वी चम्पारण तथा नेपाल के तराई में बोली जाने वाली अति लोकप्रिय भाषा है। इस भाषा पर कई शोध प्रबंध भी प्रकाशित हुए हैं जिसमें प्रो डाॅ श्रीरंग शाही, अवधेश्वर अरूण, डाॅ शांति कुमारी का नाम बहुत प्रमुखता से लिया जा सकता है। अब तक सैकड़ों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं।

प्रश्न- खेलकूद, सिनेमा, टीवी, माडलिंग, बैंकिंग, काॅलेज एजुकेशन और बिजनस के क्षेत्र में आज विकास की राह पर बढती युवा लड़कियों या महिलाओं के समानांतर बिहार में महिलाओं में पिछड़ेपन क्यों व्याप्त है?
उत्तर- यह सही है कि बिहार की महिलाएं पिछड़ेपन की शिकार हैं। देश के अन्य राज्यों की लड़कियों के लिए आगे बढ़ने के पर्याप्त अवसर हैं, लेकिन बिहार में ऐसा नहीं है। बिहार में फिल्म मेकिंग नहीं होता। मॉडलिंग के लिए अच्छा इंस्टीच्यूट नहीं है। कल-कारखानों का अभाव है। यहां की लड़कियों को अवसर प्रदान करने के लिए माता-पिता को उन्हें दूसरे राज्यों में भेजना पड़ता है। मध्यम व निम्न वर्ग के अधिकतर परिवार बेटियों को आर्थिक कारणों से बाहर नहीं भेज पाते। बिहारी महिलाओं की साक्षरता दर दूसरे राज्यों की अपेक्षा कम है। पिछले दस वर्षों में यहां की लड़कियों को शिक्षित करने के सरकारी प्रयास जरूर हुए हैं, लेकिन अभी भी गांवों में लड़कियों को अच्छी तरह पढ़ा-लिखा कर आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास कम होते हैं। लड़कियों को कॉलेज तक किसी तरह पढ़ा कर शादी कर दी जाती है। सामाजिक स्तर पर अभी भी यहां बेटे-बेटियों में फर्क किया जाता है। अधिकतर लड़कियों की प्रतिभा कुंद हो जाती है, उन्हें ऐसा अवसर नहीं मिलता कि वह खुद के लिए मार्ग बना सके।

प्रश्न- देश के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं के साथ अक्सर घटने वाली यौन अपराध की घटनाएं हमारे समाज के किस यथार्थ को प्रकट करती हैं?
उत्तर- यह सही है कि दुष्कर्म की घटनाओं में इन दिनों काफी वृद्धि हुई है जो बेहद दुखद है। एक तरह से कहा जाए तो समाज में वहशीपन बढ़ा है। अबोध बच्चियों से दुष्कर्म हो रहा है। पुरुषवादी कुंठा से ग्रस्त मनोरोगी इस तरह की घटना को अंजाम दे रहे हैं। ऐसी घटनाओं से यह साफ समझ बनी है कि समाज में अभी भी स्त्री दोयम दर्जे की है एवं एक वस्तु की तरह समझी जाती है। पुरुषों की सहचर स्त्री को बराबरी का अधिकार नहीं मिला है। ऐसी समस्याओं का निराकरण केवल सजा देने से नहीं होगा। सामाजिक स्तर पर जब तक स्त्री को बराबरी का अधिकार नहीं मिलेगा और पुरूष अपनी मानसिकता में बदलाव नहीं लायेंगे, तब तक इस तरह की घटनाएं नहीं रुक सकती।

प्रश्न-आप विज्ञान की प्राध्यापिका हैं और साहित्य के प्रति आपके हृदय में गहरा प्रेम है। इसी प्रसंग में मनुष्य के जीवन में कला और विज्ञान की भूमिका पर प्रकाश डालिये?
उत्तर- बहुत बढ़िया सवाल है आपका। विज्ञान जहाँ तथ्यों पर आधारित है, वहीं साहित्य कल्पना और हकीकत की ऊँची उड़ान है। मेरे विचार से जब साहित्य में विज्ञान का मिश्रण हो तो वह और अधिक स्पष्ट चितंन के साथ अति प्रासंगिक हो जाता है। साहित्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण आज के समय की मांग है। इस तल्ख समय में कोरी कल्पना से बेहतर साहित्य सृजन संभव नहीं।