कहीं ये प्रेम तो नहीं- शुचि ‘भवि’

सुनो
कैसे जादूगर हो तुम?
न ही नज़रों से किया
न हाथों से ही कभी
स्पर्श मेरा
और
कब्ज़ा सम्पूर्णता से ही
सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारा,,

सिखाओ न मुझे भी
ये फ़न तुम्हारा
कि बिन कुछ कहे
बिन कुछ सुने
समझ लें हम
सार ग्रन्थों का सारा

सुनो
साथ साथ कब से
चल रही तो हूँ तुम्हारे
और तुम भी तो हो ही
सिर्फ़ हमारे
मगर शब्दों ने ये कहने की
ज़हमत ही नहीं उठाई
और मौन ने ही निभाये
अब तक के धर्म सारे,,

आज तक न किया हमने
कोई वादा
न किया कभी कोई
दिखावा ज़्यादा
रिश्ता हमारा
कभी मांगा ही कहाँ
कोई हक़ या कोई जागीर

तुम ने मुझे मुझसा ही जाना
और माना मैंने भी तो तुम्हें
तुम सा ही
आईने ने भी शायद इसलिए
मुझे अक्स दिखाना छोड़ दिया
कि अब दिखती हूँ मैं सबको ही तो
तुम्हारी आँखों में
और
शायद तुम्हें
देख ही लेते हैं सब मुझमें,,,

सुनो
कहीं ये प्रेम तो नहीं???

-शुचि ‘भवि’