गुरुओं के गुरु हैं भगवान शिव

लंबोदर गणेश की आराधना के बिना एवं उनसे बिना आदेश लिए हुए हम भगवान शिव का ध्यान कर ही नहीं सकते हैं। भगवान शिव ने उन्हें यह वरदान दिया है कि कोई भी कार्य करने के पहले गणेशाय नमः कहकर जो भी कार्य शुरू होगा वह कार्य सिद्ध होगा।

नन्दिकेश महाभाग शिवध्यानपरायण ।
गौरीशङ्करसेवार्थं अनुज्ञां दातुमर्हसि ॥

हे महान नन्दिकेश (गणेश) हे महाभाग नन्दिकेश आप शिव के ध्यान में मग्न रहते हैं। आप सदैव गौरी शंकर की पूजा में एवं सेवा में लगे रहते हैं। आपसे प्रार्थना है कि हमें आज्ञा दें कि हम भगवान शिव की पूजा कर सकें।

ऐसा माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही इस ब्रह्मांड की शुरुआत हुई थी। इस दिन ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ, जिससे शक्तिस्वरूपा पार्वती ने मानवी सृष्टि का मार्ग प्रशस्त किया। इसी दिन शक्ति का शिव से मिलन हुआ अर्थात महाशिवरात्रि के दिन शिव पार्वती की शादी हुई। ऐसा कहा जाता है की एक बहुत ही विशाल ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ, ब्रह्मा अपने हंस पर सवार होकर ऊपर की तरफ उनका अंत देखने के लिए गए परंतु उन्हें कोई अंत नजर नहीं आया। भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर नीचे की तरफ उनका अंत जानने के लिए गए, परंतु उन्हें वहां भी कोई अंत नहीं दिखा, अर्थात इस ब्रह्मांड का ना आदि है ना अंत है, अर्थात शिव अजन्मे हैं, अजर हैं, अमर हैं, ना शिव की शुरुआत है ना शिव का कहीं अंत है। शिव अनादि है, संपूर्ण ब्रह्मांड शिव के अंदर समाया हुआ है। जब कुछ नहीं था तब भी शिव थे, जब कुछ न होगा तब भी शिव ही होंगे। शिव में परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य देखने को मिलता है। शिव के मस्तक पर एक ओर चंद्र है, तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उनके गले का हार है। वे अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। गृहस्थ होते हुए भी श्मशानवासी, वीतरागी हैं। सौम्य, आशुतोष होते हुए भी भयंकर रुद्र हैं। शिव परिवार भी इससे अछूता नहीं हैं। उनके परिवार में भूत-प्रेत, नंदी, सिंह, सर्प, मयूर व मूषक सभी का समभाव देखने को मिलता है। वे स्वयं द्वंद्वों से रहित सह-अस्तित्व के महान विचार का परिचायक हैं। ऐसे महाकाल शिव की आराधना का महापर्व है शिवरात्रि। यह काल वसंत ऋतु के वैभव के प्रकाशन का काल है। ऋतु परिवर्तन के साथ मन भी उल्लास व उमंगों से भरा होता है। यही काल कामदेव के विकास का है और कामजनित भावनाओं पर अंकुश भगवद् आराधना से ही संभव हो सकता है। भगवान शिव तो स्वयं काम निहंता हैं, अत: इस समय उनकी आराधना ही सर्वश्रेष्ठ है।

ॐ वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं, वन्दे जगत्कारणम्
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे पशूनां पतिम्
वन्दे सूर्य शशांक वह्नि नयनं, वन्दे मुकुन्दप्रियम्
वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं, वन्दे शिवंशंकरम्

हम उमापति के चरणों में वंदन करते हैं वह जो सभी गुरुओं के गुरु हैं, आदि गुरु हैं, जिनके कारण यह ब्रह्मांड संभव हुआ है। हम उनके चरणों में वंदन करते हैं जिन्होंने सांपों को अपना आभूषण बनाया हुआ है और बाघंबर धारण किया हुआ है जो सभी जीवो के देव हैं हम उनके चरणों में प्रणाम करते हैं। जिनके तीन नेत्र हैं, जिनके तीनों नेत्र में एक सूर्य दूसरा चंद्रमा और तीसरा अग्नि के समान है, हम उनके चरणों में प्रणाम करते हैं। भगवान विष्णु जिनके सबसे प्रिय हैं, हम उन भगवान के चरणों में प्रणाम करते हैं। जो अपने सभी भक्तों को अपने चरणों में आश्रय देते हैं और अपने सभी भक्तों को आशीर्वाद देते हैं ऐसे शिव शंकर का हम बारंबार वंदन करते हैं।

भगवान शिव के पाँच शीशों की चर्चा धार्मिक ग्रंथों में मिलती है। उनके यह पांच मस्तक पांच तत्व के द्योतक है अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल और आकाश यह पांच तत्व ही पूरे ब्रह्मांड की रचना करते हैं। शिव का पांचवा मस्तक ऊपर आकाश की ओर देखता है। भगवान शिव के नटराज रूप में शिव की एक हाथ में अग्नि दिखाया गया है। जहां एक और शिव तीनों लोगों का विनाश कर सकते हैं, वही यह अग्नि इस बात का द्योतक है। शिव ही सभी जीवों को भस्म होने से बचाते भी हैं। भगवान शिव अर्थात नीलकंठ महादेव के विष को कंठ में धारण करने का बहुत हीं गूढ़ जीवन का संदेश है। विष को कंठ में रखना अर्थात व्यक्ति को न तो अपनी नकारात्मकता को बाहर हीं फैलाना चाहिए और न हीं उसे अपने व्यक्तित्व में समाना चाहिए, बल्कि बीच का रास्ता अपना कर जैसे कि कंठ में विष को शिव ने रोक लिया, उसी प्रकार नकारात्मकता की दशा और दंश में बदलाव कर देना चाहिए। जब व्यक्ति अपने क्रोध जैसी नकारात्मकता को दबाने की कोशिश करता है, तो उसके अन्दर विकार उत्पादन होता है, जैसे पित्त का बढ़ना दम्मा बेचैनी पेचिश आदि। उसी प्रकार क्रोध जैसी नकारात्मकता को बाहर निकालने से समाज में नकारात्मकता का आप प्रसार करते हैं। भगवान शिव का नीलगंठ यह संदेश देता है कि अपनी ईच्छा शक्ति से क्रोध की दिशा और दशा बदल कर उसे सकारात्मकता की ओर ले चलो अर्थात प्रेम व स्नेह का संचार करने से आप की आत्मा में भरा प्रेम आप के संपर्क में आने वालों के भी क्रोध को हर सकता है व उनमें प्रेम का संचार अवश्यंभावी हीं है।

गौरी वल्लभ कामारेय काल कूट विशासना
माम उद्धहारे पद्मभोजे त्रिपुर अग्न्यता कानतका

हे भगवान शिव कामारेय आप हमारी रक्षा करें आप माता गौरी के परम प्रिय हैं। आप माता गौरी के पति हैं। आपने कालकूट विश्व को पी लिया, जो समुद्र मंथन से निकला था और विश्व को जो नष्ट कर सकता था, आप जो तीनों लोकों का संघार कर सकते हैं, आपसे विनती है कि मुझे अपनी भक्ति प्रदान करें, हमारा उद्धार करें
ऊँ नमः शिवाय

-रश्मि किरण