भंवर में फंस गया हूँ प्रभु- प्रभात कुमार

भंवर में फंस गया हूँ प्रभु,
निकलने का तू अब ज्ञान दे।

समर में अटकी जान है,
तू ही अब कोई भान दे।

अमर मैं क्या हो सकूँगा,
कोई इसका भी मुझे प्रमाण दे।

मानवता ही मेरा कर्म हो,
न मुझे कभी अभिमान दे।

दुर्व्यहवार न मैं कर सकूं,
बस इतना स्वभिमान दे।

छल-कपट आये न मुझको,
प्रभु तू ही थोड़ा मान दे।

जानता कौन किसको यहाँ,
बस सबको सब सम्मान दे।

कर रहा हूँ वंदन हे प्रभु,
खुद को समझने का ध्यान दे।

निराश न होवे कोई कभी,
हो सके तो सबको वरदान दे।

-प्रभात कुमार दुबे
(प्रबुद्ध कश्यप)
(सौजन्य साहित्य किरण मंच)