भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की नज़रबंदी बढ़ी

सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई और उनकी गिरफ्तारी मामले में एसआईटी जांच की मांग वाली इतिहासकार रोमिला थापर एवं अन्य की याचिका पर उनकी नजरबंदी चार हफ्तों के लिए बढ़ा दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी यह नहीं चुन सकता कि कौन सी जांच एजेंसी को मामले की जांच करनी चाहिए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पांचों कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
जस्टिस खानविलकर ने कहा कि यह गिरफ्तारियां राजनीतिक अहसमति की वजह से नहीं हुई हैं, बल्कि पहली नजर में ऐसे साक्ष्य हैं जिनसे प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के साथ उनके संबंधों का पता चलता है। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए. एम. खानविलकर और जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने 20 सितंबर को दोनों पक्षों के वकीलों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, हरीश साल्वे और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी-अपनी दलीलें रखी थीं। पीठ ने महाराष्ट्र पुलिस को मामले में चल रही जांच से संबंधित अपनी केस डायरी पेश करने के लिये कहा था। बता दें कि पांचों कार्यकर्ता वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा 29 अगस्त से ही अपने-अपने घरों में नजरबंद हैं। इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक एवं देवकी जैन, समाजशास्त्र के प्रोफेसर सतीश देशपांडे और मानवाधिकारों के लिये वकालत करने वाले माजा दारुवाला की ओर से दायर याचिका में इन गिरफ्तारियों के संदर्भ में स्वतंत्र जांच और कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई की मांग की गई थी।