मुल्क की खुशहाली से बाबस्ता है हर एक की खुशहाली

आज विज्ञान भवन में इस्लामिक स्‍कॉलर को संबोधित करते हुए पीएम नरेन्‍द्र मोदी ने कहा कि आतंकवाद और उग्रवाद के ख़िलाफ़ मुहिम किसी पन्थ के ख़िलाफ़ नहीं है। यह उस मानसिकता के ख़िलाफ़ है जो हमारे युवाओं को गुमराह करके मासूमों पर ज़ुल्म करने के लिए आमादा करती है। भारत में हमारी यह कोशिश है कि सबकी तरक्की के लिए सबको साथ लेकर चलें। क्योंकि सारे मुल्क की तकदीर हर शहरी की तरक्की से जुड़ी है। क्योंकि मुल्क की खुशहाली से हर एक की खुशहाली बाबस्ता है। आपकी इतनी बड़ी तादाद में यहां मौजूदगी इस बात का संकेत है कि आने वाली पीढ़ियों को रास्ता दिखाने के लिए आपके मन में कितनी ललक है, कितना जज़्बा है। यह इस बात का भी प्रतीक है कि आपके ज़हन में युवाओं की तरक्की पर ही नहीं, उन्हें इन्सानी उसूलों की तालीम पर भी तवज्जो है। पूरी ख़ुशहाली, समग्र विकास तभी संभव है जब आप यह देखें कि मुस्लिम युवाओं के एक हाथ में कुरान शरीफ़ हो तो दूसरे में कंप्यूटर। मज़हब का मर्म अमानवीय हो ही नहीं सकता। हर पन्थ, हर संप्रदाय, हर परंपरा मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए ही है। इसलिए, आज सबसे ज्यादा ज़रूरत ये है कि हमारे युवा एक तरफ मानवीय इस्लाम से जुड़े हों और दूसरी तरफ आधुनिक विज्ञान और तरक्की के साधनों का इस्तेमाल भी कर सकें। इस मौके पर जॉर्डन नरेश जनाब अब्दुल्ला ईब्न अल हुसैन भी मौजूद रहे।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत की यह राजधानी दिल्ली, पुरानी मान्यता का इन्द्रप्रस्थ है। यह सूफियाना कलामों की सरज़मी भी रही है। एक बहुत अज़ीम सूफी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया, जिनका ज़िक्र कुछ देर पहले किया गया, उनकी दरगाह यहां से कुछ ही दूरी पर है। दिल्ली का नाम ‘देहलीज़’ शब्द से निकला है। गंगा-जमुना के दो-आब की यह देहलीज़ भारत की मिली-जुली गंगा-जमुनी संस्कृति का प्रवेश द्वार है। यहाँ से भारत के प्राचीन दर्शन और सूफियों के प्रेम और मानवतावाद की मिलीजुली परम्परा ने मानवमात्र की मूलभूत एकता का पैगाम दिया है। मानवमात्र के एकात्म की इस भावना ने भारत को ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का दर्शन दिया है। यानि भारत और भारतीयों ने सारी दुनिया को एक परिवार मानकर उसके साथ अपनी पहचान बनाई है। सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता और बहुलता, और हमारे नज़रिये का खुलापन- यह भारत की पहचान है। विशेषता है। हर भारतीय को गर्व है अपनी इस विशेषता पर। अपनी विरासत की विविधता पर, और विविधता की विरासत पर। चाहे वह कोई ज़ुबान बोलता हो। चाहे वह मंदिर में दिया जलाता हो या मस्जिद में सज़दा करता हो, चाहे वह चर्च में प्रार्थना करे या गुरुद्वारे में शबद गाये। अभी भारत में होली का रंग भरा त्योहार मनाया जा रहा है। कुछ ही दिन पहले बौद्ध नव वर्ष शुरु हुआ है। इस माह के अंत में गुड फ्राईडे और कुछ हफ्ते बाद बुद्ध जयंती सारा देश मनायेगा। फिर कुछ ही समय बाद रमज़ान का पवित्र महीना होगा, जिसके अंत में ईद-उल-फितर हमें त्याग और पारस्परिक सौहार्द्र और सामंजस्य की याद दिलायेगा। ये कुछ उदाहरण उन अनेक भारतीय त्यौहारों के हैं जो शान्ति और सौहार्द्र के पर्व हैं।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में डेमोक्रेसी एक राजनैतिक व्यवस्था ही नहीं बल्कि समानता, विविधता और सामंजस्य का मूल आधार है। यह वो शक्ति है जिसके बल पर हर भारतीय के मन में आपने गौरवशाली अतीत के प्रति आदर है, वर्तमान के प्रति विश्वास है और भविष्य पर भरोसा है। हमारी परम्परा की समृद्ध विविधता हमें वह संबल देती है जो आज के अनिश्चितता और आंशका से भरे विश्व में, और हिंसा और द्वेष से प्रदूषित संसार में, आतंकवाद और उग्रवाद जैसी चुनौतियों से लड़ने के लिए बेहद ज़रुरी है। हमारी यह विरासत और मूल्य, हमारे मज़हबों का पैगाम और उनके उसूल वह ताक़त हैं जिनके बल पर हम हिंसा और दहशतगर्दी जैसी चुनौतियों से पार पा सकते हैं। इंसानियात के ख़िलाफ़ दरिंदगी का हमला करने वाले शायद यह नहीं समझते कि नुकसान उस मज़हब का होता है जिसके लिए खड़े होने का वो दावा करते हैं।