मैं जिसमें उतर गया कल शब- रामरज फ़ौजदार फौजी

ज़मीर ही था, मैं जिसमें उतर गया कल शब
अचानक आईना देखा तो डर गया कल शब

हरे भरे हुए शादाब दरख़्तों की हवा
चली भी यूँ कि लवादा उतर गया कल शब

जिसे ख़्वाहिश थी मैं दुनिया की तरह हो जाऊं
वो शख़्स मेरे ही अंदर था मर गया कल शब

जनाज़ा है तो ये इमानो-दीन का हमदम
सरे-चौराहा इसे कौन धर गया कल शब

जिन्हें चटानों की सोहबत का तजुर्बा है बहुत
उन्हीं से दामने-गुलशन संवर गया कल शब

खुनक हवा में घुली है विसाल की ख़ुश्बू
कि जैसे चाँद का हर ज़ख्म भर गया कल शब

सुना है कह रहे थे सवेरे कि वो फौजी
शरारती है परेशान कर गया कल शब

-रामरज फ़ौजदार फौजी