मोहब्बत की रस्में अदा कर चुके हम
मिटाकर के ख़ुद को वफ़ा कर चुके हम

इबादत में कुछ और दिखता नहीं है
सज़दे में उन को ख़ुदा कर चुके हम

ये  कैसी  ख़ुमारी  में  भूले  ज़माना
कितनों को जाने खफ़ा कर चुके हम

बड़े बेरहम, बेमुरव्वत हो जानम
शिकवा ये कितनी दफ़ा कर चुके हम

जाता नहीं दर्द दिल का है भारी
हकीमों से कितनी दवा कर चुके हम

-श्वेता सिन्हा