ये बसंत की मधुर ऋतु प्रिय- श्वेता राय

ये बसंत की
मधुर ऋतु प्रिय!
मन बहकाने आई है

फूलों ने
भौरों पर अपने
सौरभ का जादू डाला
मस्त हुआ
ये मौसम जैसे
पीली यौवन की हाला

गर्म हवाएं
छूकर सबका
तन दहकाने आई है

तरु शाखायें
लदी हुई हैं
कोमल कोमल पात लिये
धरती भी
अब झूम रही है
पीली पीली गात लिये

कोयल की
मधुरिम बोली अब
वन चहकाने आई है

सरस मिलन
ये दो ऋतुओं का
तन मन जिसमे नृत्य रता
देख के
यौवन वसुधा का
आनंदित हो देह लता

बाहों की
माला का सब में
चाह जगाने आई है

ये बसंत की
मधुर ऋतु प्रिय!
मन बहकाने आई है..

🍁 🌴 🍁 🌿 🍁
आसमान बरसा रहा है प्रेम
खिलखिला रही है दूब
खोल पट मिट्टी का

सुनो!
मेरे रूठे प्रेमी!

तुम भी बढ़ाओ
तपिश अपने प्रेम की
कि शिशिर से सुसुप्त पड़ा हमारा साथ

बौरा उठे आम पर
चूने लगे महुआ से
खिल जाये चटक पलाश सा
और दे जाय मदमस्त उभार गेहूं की बालियों को

कि बहने लगे
बनके जीवन धारा
बसंत हमारे नस नस में…

श्वेता राय