रोटी का आविष्कार- भुवनेश्वर चौरसिया

उसके मन में हमेशा खुराफातियों वाले प्रश्न सूझा करते। एक दिन ऐसे ही प्रश्न पूछते मुझसे उलझ गया। भैया मेरे मन में एक प्रश्न कई दिनों से कुलांचे मार रहे हैं। जब से ‘भूख’ शब्द पर पीएचडी करने की सोचा जीना हराम हो गया।
मैंने कहा अब ऐसे ही बकते रहोगे, क्या प्रश्न है तुम्हारा कुछ बताओ भी। वो बोला क्या बताऊं भाई साहब सवाल ही ऐसे हैं जो बताते हुए संकोच हो रहा है। देखो यदि पूछना है तो अभी बताओ अन्यथा रहने दो। वह एक पल को बैचैन होते बोला यही कि रोटी का आविष्कार किसने किया। मेरी हंसी छूट गई। ये भी कोई सवाल है? चलो अब पूछ लिया तो बता देना मेरा फ़र्ज़ है और मैंने उसे कहा रोटी का आविष्कार आपके लिए तो फिलहाल आपके पिताजी ने किया है।
वह असंतुष्ट होते बोला कैसे कुछ प्रकाश डालेंगे पीएचडी के लिए विस्तार से लिखना है। मैंने कहा आपके पिताजी खेती करते हैं। फसल उगाते हैं। अनाज आपके घर तक आपके पिताजी के माध्यम से आता है। फिर आपके मां जी उन अनाजों को छांट बिन कर पीसने के लिए चक्की में दे आती हैं और उसके बाद अनाज से आटा बनकर पुनः आपके घर आ जाता है। उसके बाद रोटी बनती है।
इतना कुछ सुनने के बाद बोला उत्तर बड़ा सरल है। पर शोध के लिए ठीक नहीं है। मैंने कहा तुम्हारे पास फोन है। वो बोला हां, तो मैंने कहा गूगल कर लो। उसने कहा हां ये ठीक रहेगा। जेब से मोबाइल निकाला और डाटा ओन करने के बाद गूगल के सर्च इंजन पर लिखा रोटी का आविष्कार किसने किया! बहुत देर तक सर्च इंजन चलता रहा। फिर एकदम से रूक गया। लिखा था भूख पहले आई फिर रोटी का आविष्कार हुआ। मगर हम आपको यह बताने में असमर्थ हैं कि रोटी का आविष्कार किसने किया। हां इतना जरूर कहूंगा कि रोटी संसार की हम मनुष्यों के लिए सबसे पहली जरूरत है। संतोष जनक उत्तर न पाकर उसने अपना माथा पीट लिया।
भूख पर उसकी पीएचडी पूरी होती इससे पहले ही वह अपना हाथ वापस खींच लिया। उसके पिता जी ने उससे पहले कह दिया था। तूमसे न हो पाएगा।

-भुवनेश्वर चौरसिया ‘भुनेश’
288/22, नियर हनुमान मंदिर,
गांधी नगर, गुड़गांव, हरियाणा