संतान की दीर्घायु के लिए हलषष्ठी व्रत का है विशेष महत्व

भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को महिलायें संतान की दीर्घायु के लिए व्रत करती हैं। जिसे ललही छठ, हलषष्ठी, हरछठ अथवा हल छठ भी कहा जाता है। कहा जाता है कि ये व्रत भगवान कृष्ण के भ्राता बलराम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से ठीक दो दिन पूर्व उनके बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था, जो इस बार कृष्ण जन्माष्टमी के दो दिन पहले 1 सितंबर को मनाया जाएगा।
कहा जाता है कि भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म भादों मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हुआ था। इसलिए इस दिन को बलराम जयंती भी कहा जाता है। बलराम को शेषनाग का अवतार माना जाता है। हल और मूसल बलराम के प्रमुख अस्त्र थे, इसलिए इसदिन किसान हल, मूसल और बैल की पूजा करते हैं, इसे किसानों के त्योहार के रूप में भी देखा जाता है। हलषष्ठी के दिन माएं संतान की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन तालाब में उगे अनाज जैसे कि तिन्नी या पसही के चावल खाकर व्रत रखा जाता है, इस दिन व्रतधारी माएं खेत में उत्पन्न अनाज और सब्जियां नहीं खाती। गाय का दूध और दही का इस्तेमाल भी इस व्रत में वर्जित होता है, इस लिए भैंस का दूध, दही और घी का उपयोग किया जाता है। इस व्रत की पूजा हेतु भैंस के गोबर से पूजा घर में दीवार पर हर छठ माता का चित्र बनाया जाता है। गणेश और माता गौरा की पूजा की जाती है। कई जगहों पर महिलाएं तालाब के किनारे या घर में ही तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांस के पेड़ लगाती हैं। इस तालाब के चारों ओर आसपास की महिलाएं विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर हल षष्ठी की कथा सुनती हैं।