ज़िन्दगी की रीत- संजय जैन

जहाँ में कौन है भला जो दर्द से भरा नहीं
जिया वही है शान से किसी से जो डरा नहीं

बुलंद हौंसला है गर कभी न तू हताश हो
गिरा ज़रूर है मगर अभी तलक मरा नहीं

ज़रा ठहर अभी से क्यूँ निराश हो रहा है तू
है कौन सा भला ज़ख़्म कभी भी जो भरा नहीं

निशा के बाद है सहर ये ज़िंदगी की रीत है
है कौन सा शजर भला खिज़ाँ में जो झरा नहीं

किसे मिला है सब यहाँ किसी को भी तू देख ले
जिसे मिला है आसमाँ उसे मिली धरा नहीं

-संजय जैन